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गाँव... प्यारा गाँव....

Writer's picture: Kishori RamanKishori Raman

इस ख्याल से ही उसका मन पुलकित हो गया और उसमें नई ऊर्जा का संचार हुआ कि वह अपने गाँव जा रहा है। हाँ वही गाँव जहाँ वह पैदा हुआ और उसका बचपन बीता, जहाँ के मिट्टी पानी मे खेल कर वह बड़ा हुआ। पहले पढ़ाई के लिए और फिर नौकरी के सिलसिले में वह शहर आया तो शहर का ही होकर रह गया। गाँव तो छूट गए पर उसके मन मस्तिष्क से गाँव कभी ओझल नहीं हुआ। वह कल्पनाओं मे विचरता ,नदी पोखर में छलाँग मारता, कभी खेतों में तितलियों के पीछे भागता और इस तरह अपने ख्वाबों में ही सही अपने गाँव और दोस्तों को जिंदा रखता। शहर उसे कभी रास नही आये। यहाँ तो सब तेज रफ्तार से भागते ही रहते है। कोई रुककर किसी का हाल चाल नहीं पूछता। कोई अगर गिर गया तो उसे कोई नही उठाता बल्कि उसे कुचल कर आगे बढ़ जाते हैं। लोग डरते हैं कि अगर उठाने के लिए रुके तो हजारो लोग उससे आगे निकल जाएंगे। बीबी अलग सुनाती है..कहती है , इतना दिन हो गए तुम्हे शहर में रहते हुए, इतने बड़े पोस्ट पर पहुँच गये पर आदतें तो अभी भी गँवारों जैसी है।ऑफिस से आते ही टाई को यूँ फेंकते हो मानो वह टाई न हो साँप हो।बस, लूँगी- बनियान में ही बाहर निकल जाते हो टहलने। पार्क में बेंच पर न बैठ कर घाँस पर ही पसर जाते हो और लगते हो माली स्वीपर से गप्पे हाँकने। वह बस चुप रहता। वह जानता है कि जिसने गाँव देखा नही वह क्या समझेगा गाँव को ? वह तो गाँव को उसी चश्मे से देखता है जो फिल्मों वाले दिखाते हैं या जैसा वर्णन कहानियों या उपन्यासों में होता है कहीं स्वर्ग जैसा तो कहीं नरक जैसा। पर हमारा गाँव ऐसा ही है क्या ? सच तो ये है कि गाँव तो बस गाँव है न स्वर्ग और न नरक। सब कुछ अपने देखने पर निर्भर करता है । कभी साँप रस्सी तो कभी रस्सी साँप नजर आती है। गाँव मे घूसते ही हवा के मन्द मन्द झोंको ने उसका स्वागत किया। खेतो में गेहूँ सरसो और आलू की फसलों से आती सुगन्ध ने उसे मदमस्त कर दिया।आम के पेड़ों में मंजर आ गए थे जिनकी खुशबू फिजाओं में पसरी हुई थी। कोयल कूक रही थी मानो उसका स्वागत कर रही हो। बच्चो का अमराइयों में मंडराना अभी शुरू नही हुआ था क्योंकि आम के टिकोले अभी बहुत ही छोटे थे। रामरतन पोखर में बंसी डाले बैठा था मछली पकड़ने के लिए। पूछने पर बोला , बस पोठिया ही पड़ता है, हाँ कभी कभार गरई और मांगुर भी फँस जाता है। आगे बढ़ा तो माया भौजी मिल गई । वह चौक उठा , अपने समय की तेज तर्रार और सुन्दर भौजी आज तो बूढ़ी नजर आ रही है। "गोड़ लागी भौजी " सुनकर आश्चर्य से उसने देखा और सहसा उसकी आँखों मे चमक आ गई। फिर बोली खुश रहो देवर जी ,आज कैसे गाँव का रास्ता भूल गये ? और देवरानी जी को क्यों नही साथ लाये ? भौजी की आँखों मे चमक देख उसकी आँखों मे भी चमक आ गयी और भौजी के हँसी ठिठोली याद आने लगे। हाँ, गाँव की गलियां अब पक्की हो गई हैं। नल जल योजना में पीने का पानी भी घरों में पहुँचने लगा है। बहुत सी दुकानें भी खुल चुकी हैं। बहुत से घरों में टी वी और मोबाइल भी आ चुके हैं। यानी गाँव मे काफी बदलाव हुए है। पर उसके लिए तो गाँव के मिट्टी की सोंधी खुशबू, खेतो की हरियाली, बलखाती इठलाती मद -मस्त हवायें सब पहले जैसे ही हैं। घरों से गूंजते लोकगीत, भौजी की ठिठोली और अम्मा का प्यार और मनुहार सब पहले जैसा ही तो है। गाँव... प्यारा गाँव.... किशोरी रमण। BE HAPPY.....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE।

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76 views4 comments

4 comentarios


Miembro desconocido
18 oct 2021

Very nice story....

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sah47730
sah47730
14 oct 2021

अच्छा लगा "गाँव....प्यारा गाँव"। गाँव की आवोहवा का (ग्रामीणों से मधुर मुलाकात,मधुर रिश्ते,शहर की भाग-दौड़ से अलग इत्मिनान का जीवन जो शहर में नहीं मिलता) चित्रण बहुत अच्छा लगा।

:-- मोहन"मधुर"

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verma.vkv
verma.vkv
13 oct 2021

सचमुच गांव की मिटटी की खुशबू प्यारी होती है, जहां बचपन गुज़रा हो ।

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kumarprabhanshu66
kumarprabhanshu66
12 oct 2021

हमारा गाँव बदल रहा है।

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