जैसे ही मैं अपने ऑफिस पहुँचा, मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी। देखा तो राजन का कॉल था। सोंचा, बात कर लूँ लेकिन फिर कुछ सोंच कर अपना ईरादा बदल लिया। क्योंकि वे बातों को बहुत खींचते थे और लंबी लंबी बातें किया करते थे अतः पहले आवश्यक काम निबटाने और फिर उनसे बात करने का निर्णय किया।
मैंने आवश्यक काम निपटाए और फिर चाय का आर्डर दिया। चाय पीते हुए सोंच ही रहा था कि राजन को कॉल करूँ तभी उनका कॉल आ गया। मैंने कॉल रिसीव किया। उधर से राजन जी शिकायती लहजे में कह रहे थे कि भाई साहब आप तो मेरा कॉल ही नहीं उठाते हैं। मुझसे कोई नाराजगी है क्या ?
अरे नही भाई साहब, भला आप से क्या नाराजगी ? दरअसल मैं एक मीटिंग में ब्यस्त था। बस आपको कॉल करने ही वाला था कि आपका कॉल आ गया।
राजन जी इस शहर के उभरते हुए बिज़नेस मैन थे। प्रशासन और राजनीतिक गलियारों में उनकी अच्छी पकड़ थी। गाहे बगाहे वे हमारे संस्थान की मदद करते रहते थे।
मैंने पूछा-हाँ भाई साहब, बताईए, मुझे कैसे याद किया ?
राजन जी ने कहा- आज शाम को मैं आपको अपने बंगले पर आमंत्रित कर रहा हूँ। आप दर्शन देने जरूर आईयेगा।
मैंने कहा, आपका हुकुम सर आँखों पर। कोई विशेष आयोजन है क्या ?
अरे नही भाई। बस मन किया कि दोस्तो के साथ चाय पी जाएं और कुछ गप शप हो तो मैंने एक छोटी सी पार्टी रख दी। शाम को ऑफिस से लौटते समय जरूर आईयेगा।
शाम को मैंने अपने काम जल्दी जल्दी निबटाए और राजन जी के घर की ओर चल पड़ा। मैं अभी उनके बरामदे में पहुँचा ही था कि एक हृष्ट-पुस्ट बिदेसी नस्ल का कुत्ता दौड़ता हुआ आया। पहले वो भौंका और फिर दुम हिलाने लगा।
राजन जी घर से बाहर निकले। अभिवादन के बाद कुत्ते की तरफ इशारा करते हुए पूछा, पहचाना इसे ?
फिर उन्होंने बड़े गर्व से उसे सहलाते हुए कहा- यह वही टॉमी है , जब पिछले बार आप आये थे तो यह कितना कमजोर और मरियल सा था, लेकिन अब देखिए। कहते हुए उनके आँखो में एक चमक आ गयी।
अरे.... मैंने आश्चर्य से कहा, ये आखिर हुआ कैसे ?
आपके सलाह से, उन्होंने पहेली बुझाने वाले लहजे में कहा। जरा याद कीजिए, आज से करीब चार महीने पहले आप मेरे यहाँ चाय पार्टी में आये थे तो मैंने आपसे इस बाबत चर्चा की थी।
मुझे याद आ गया। आज से करीब चार महीने पहले इसी तरह की चाय पार्टी में यहाँ आया था। तब उन्होंने एक बिदेसी नस्ल के कुत्ते के पिल्ले को दिखाते हुए चिंतित स्वर में कहा था - भाई साहब, न तो ये ठीक से खाता है न ही इसकी बृद्धि हो रही है। मैं क्या करूँ ?
चुँकि उन्हें मालूम था कि मैंने एग्रीकल्चर की पढ़ाई की है और वहाँ एग्रीकल्चर में एनिमल हसबेंडरी के अंतर्गत पालतू जानवरों के बारे में भी पढ़ाया जाता है, अतः वे मुझसे सलाह ले रहे थे।
मैंने पूछा, इसे खिलाते क्या है ?
अच्छे ब्रांड का डॉग फूड खिलाता हूँ और इसे दूध भी देता हूँ , उन्होंने कहा।
आप इसे केवल खिलाते ही हैं या इससे एक्सरसाइज भी करवाते है ? मैंने अगला प्रश्न किया।
मेरा प्रश्न सुनकर वे चौक गये। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा- अरे भाई, खाना पचेगा तभी तो इसके शरीर मे लगेगा। आप इसे फील्ड में ले जाकर खूब दौड़ाइये। जितना ज्यादा ये दौड़ेगा और एक्टिव रहेगा उतना ही यह स्वस्थ और मजबूत बनेगा।
वे चिंतित स्वर में बोले, यहाँ तो किसी के पास समय नही है कि इसे टहलाने को बाहर ले जाये। बस यह घर मे ही बँधा भौकता रहता है।
तभी चाय आई और मैं भूत काल से निकल कर बर्तमान में आ गया। वहाँ मेरे अलावा तीन अन्य दोस्त, राजन और उसकी मिसेज कुल छ लोग थे। हम सभी चाय और भिन्न भिन्न तरह के स्नैक्स का मजा ले रहे थे।
मैं अपनी उत्सुकता को दबा नही पाया और पूछ ही लिया, हाँ तो राजन जी आपने बताया नही की आपका कुत्ता इतनी जल्दी हृष्ट-पुस्ट कैसे हो गया ?
राजन जी मुस्कुराते हुए बोले, बताता हूँ भाई, पर पहले कुछ दिखाना चाहता हूँ। कहते हुए वे उठे और एक तरफ बढ़े। हम लोग भी उनके साथ हो लिए और बरामदे में आये जहाँ एक मशीन कवर कर के रखा हुआ था। उन्होंने बड़े शान से कवर को उठाया। नीचे घर पर ही वाकिंग करने का मशीन ट्रेड मिल था।
मै चौक कर बोला-- अरे, कब खरीदा इसे ? और आप इस पर दौड़ते भी हैं या यूँ ही यह पड़ा रहता है ?
मैंने अपने लिए थोड़े खरीदा है, राजन जी बोले।
फिर ? मैंने पूछा।
इसे तो मैंने अपने टॉमी के लिए खरीदा है। पूरे पचपन हजार खर्च किया है। राजन जी बड़े गर्व से बोल रहे थे।
मुझे आश्चर्य चकित देख राजन जी फिर बोले-भाई साहब, अपने प्यारे कुत्ते टॉमी के लिए इतना करना तो बनता ही था। आपकी बात मेरे दिमाग मे बैठ गयी थी कि जब तक टॉमी को एक्सरसाइज नही कराया जाएगा वह स्वस्थ नही होगा। मैंने एक वेटरिनरी डॉक्टर से सलाह ली और उन्होंने ट्रेड मिल का आईडिया दिया। शुरू में तो टॉमी ट्रेड मिल पर चढ़ने में भी डरता था पर कुछ ही दिनों में उस पर आराम से दौड़ने लगा और फिर देखिए, आज टॉमी कितना स्वस्थ और मजबूत हो गया है।
चाय पार्टी खत्म हो चुकी थी और हम लोग उनके घर से बाहर निकल रहे थे। साथ मे राजन जी और उनकी पत्नी भी थीं। बरामदे में एक बारह तेरह साल की लड़की खड़ी थी जिसका मुहँ चल रहा था। शायद वह कुछ खा रही थी। उसका मुहँ चलता देख राजन जी की पत्नी रुक गई और उसे डाँटते हुए पूछा- क्या खा रही हो ?
जरूर टॉमी का बिस्कुट खा रही होगी। वह बच्ची डर गई। उसने मुहँ चलाना बन्द कर अपनी नज़रे झुका ली।
उनकी मिसेज अब मेरी तरफ मुख़ातिब थी। उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी और वह मुझसे पूछ रही थी।
भाई साहब, भूख मारने वाली दवा तो होती होगी न ?
क्यो भला ? मैंने आश्चर्य से पूछा।
इस भुक्खड़ को खिलाना है। उनकी पत्नी का इशारा उस छोटी लड़की की तरफ था जो शायद उनकी नौकरानी थी। जब देखो खाती ही रहती है। इसका भूख तो हम लोगो को कंगाल बना देगा। वह बड़बड़ाये जा रही थी पर मेरे समझ मे कुछ नही आ रहा था।
मैं वहाँ से निकल अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते भर मेरे दिमाग मे बस यही बात आ रही थी।
हाय रे किस्मत, हाय रे जमाना।
गरीबो के लिए भूख और जहालत, कुत्ते के लिए ट्रेड मिल और खाना।
किशोरी रमण
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Kishori Raman
आज का समय ऐसा ही है। तभी तो दिनकर जी ने कहा है --
स्वानों को मिलता दूध-वस्त्र,
भूखे बच्चे चिल्लाते हैं।
मां की छाती से चिपक ठिठुर,
जाड़े की रात बिताते हैं।
बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण। आज के समाज के लिए आईना।
Very nice story....
वाह, बहुत सुंदर संस्मरण ।