हर साल हमारा देश १४ सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाता है | आज की यह रचना हिंदी दिवस को समर्पित है |
अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी। मैंने देखा - रंजीत का कॉल था। मुझे याद आया,
अभी कुछ ही दिन पहले तो उससे एक समारोह में भेंट हुई थी। मेरे यह पूछने पर कि ऑफिस का काम -धाम कैसा चल रहा है, वह लगभग फट सा पड़ा था और शिकायत भरे लहजे में बोला था।
क्या बताऊँ भाई साहब ? संस्थान में मेरी नियुक्ति तो हुई है राज भाषा अधिकारी के रूप में पर कार्यालय में सब काम करता हूँ सिवाय राज भाषा से संबंधित काम के।
यहाँ तो राज भाषा कार्यान्वयन को कोई गंभीरता से लेता ही नही ,न कर्मचारी और न अधिकारी। बस रिपोर्ट में गलत डेटा भरकर ऊपर के कार्यालय को भेजना और कार्यान्वयन के नाम पर हिंदी दिवस या हिंदी पखवारा मना कर लीपा-पोती करना ही काम रह गया है।
आज फिर रंजित का कॉल आया है। मैंने उसका कॉल रिसीव किया। उधर से रंजीत की चहकती आवाज़ सुनाई पड़ी।
भाई साहब ... क्या आपके पास टाइम है मुझसे बात करने का।
हाँ.. हाँ, बोलो। में अभी घर पर ही हूँ।
इसपर रंजीत बोला- भाई साहब आज हमारे कार्यालय में दिल्ली से केंद्र सरकार की राजभाषा कार्यान्वयन कमिटी के लोग आए थे यह जांच करने के लिए कि कैसा काम हो रहा है। उसमें सचिव स्तर के अधिकारी थे।
वे सब निरीक्षण के बाद काफी असंतुष्ट लग रहे थे।कह रहे थे कि आपलोग गलत डेटा भेजते है औऱ कार्यालय "क" क्षेत्र में होने के बाबजूद राज भाषा मे काम नही होता है और इसका जिक्र वे अपनी रिपोर्ट में अवश्य करेगें।
कुछ देर चुप रहने के बाद रंजीत फिर बोला। और तो और, निरीक्षण के समाप्ति पर कार्यालय के कर्मचारियों, कुछ गणमान्य लोगों और अखवारों, तथा इलेट्रॉनिक मीडिया वालों के लिये एक बैठक का आयोजन किया गया था।
उस बैठक में बड़े साहब को बोलने के लिये हिंदी में लिखकर मैंने पहले ही दे दिया था तथा निवेदन किया था कि एक या दो बार पढ़ ले पर उन्होंने उसे बिना पढ़े पॉकेट में डाल लिया था। जब मीटिंग में उनके बोलने की बारी आई तो उन्होंने मेरा लिखा कागज़ पढ़ना शुरू किया। वे उसे ठीक से पढ़ भी नही पा रहे थे तथा कई शब्दो का उच्चारण भी उन्होंने गलत किया। सब लोग मुँह दबाकर हँस रहे थे। हमारे कार्यालय की पूरी किरकिरी हो गई।
अब रिपोर्ट तो खराब जायगी ही साथ ही कल के अखवारों में जब ये सब छपेगा तो साहब लोगो की अक्ल ठिकाने आयेगी।
मैंने पूछा - रिपोर्ट मिल गया ?
इसपर रंजीत बोला, कल बारह बजे उनलोगों का फ्लाइट है। दस बजे वे रिपोर्ट देंगे और फिर एयरपोर्ट के लिए निकल जाएंगे।
अच्छा, अब कल बात करूँगा , कह कर रंजीत ने फोन काट दिया।
दूसरे दिन मैँ उत्सुकतावश रंजीत के फोन का इंतजार करने लगा। शाम तक जब फोन नही आया तो मैंने ही फोन किया,और पूछा भाई - रिपोर्ट का क्या हुआ ?
उधर से रंजीत की मरी सी आवाज आई, भाई साहब आप ठीक कहते थे। लगता है अच्छी खातिरदारी और महंगे गिफ्ट ने अपना काम कर दिया। रिपोर्ट में सब कुछ अच्छा -अच्छा ही लिखा हुआ है तथा अखवार वालो ने भी राज भाषा मे अच्छा काम करने के लिए कार्यालय की काफी बड़ाई की है।
सुनकर मुझे कोई आश्चर्य नही हुआ क्योंकि आज तक तो इसी तरह राजभाषा के साथ धोखा होता आया है और आजादी के इतने सालों के बाद आज भी हमे हिंदी दिवस औऱ हिंदी पखवारा मनाने जैसे टोटके करने पड़ रहे हैँ।
किशोरी रमण।
very nice...
आपने सही लिखा | हमलोग राजभाषा के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति करते है |
हमें दिल से इसे अपनाने की ज़रुरत है , तभी हिंदी का वांछित विकास होगा |