थाना प्रभारी मदन सिंह थाने के बरामदे में बैठे थे। उनके सामने एक फ़ाइल थी जिसके स्टडी में वे डूबे हुए थे। तभी फोन की घंटी बजी और कुछ देर रिंग होकर कट गया। किसी ने फोन नही उठाया।
मदन सिंह का ध्यान भंग हुआ। उन्हें लगा, कोई न कोई तो फोन उठाएगा पर जब नहीं उठा और फोन कट गया तो वे मन ही मन बुदबुदाये.... साले, यहां सारे कामचोर हैं, एक एक को ठीक करना होगा।
तभी फोन की घंटी फिर बजी। इस बार मदन सिंह चिल्लाये, अरे नालायको ....फोन तो उठाओ।
उधर से मुंशी जी की आवाज आई, साहब .….सब दिन की गस्ती पर बाहर निकले हैं, यहाँ कोई नही है।
तो तुम ही क्यों नही उठा ले रहे हो ? क्या तुम लाट साहब हो गए हो ? गुस्से से मदन सिंह ने कहा।
मुंशी जी ने फोन उठाया और किसी से बात करते ही खुशी से चीख पड़ा, साहब जी... मिल गया....
मदन सिंह ने आश्चर्य से पूछा, क्या मिल गया ?
मुंशी जी बोले , अरे वही साहब , जिसे हम सारे थाना के लोग तीन दिनों से खोज रहे थे।
क्या? मिल गया ? कह कर मदन सिंह भी उछल पड़े।
दरअसल एक हप्ता पहले ही मदन सिंह इस थाने के इंचार्ज बन कर आये थे। अभी वे अपने इलाके को समझ ही रहे थे कि एक बड़ा ही अनूठा केस आ गया था। ऊपर से पुलिस सुपरटेंडेंट का फोन आया कि उनके परिचित तपन जी का कुत्ता गुम हो गया है। तपन जी इलाके के काफी सम्मानित और बड़े ब्यापारी थे। बड़े बड़े लोगो के साथ उठना बैठना था। सांसद महोदय से भी उनकी खूब बनती थी।
पुलिस सुपरटेंडेंट का फोन आते ही सारे स्टाफ एक्टिव हो गए। कहाँ कोई फरियादी थाने आता था प्रथम सूचना रिपोर्ट (F I R) दर्ज कराने तो हप्तों निकल जाते थे ..और अगर दर्ज हो भी गया तो बिना पूजा-पानी के पत्ता भी नही हिलता था। थाने का तो सीधा सा हिसाब होता है, पूजा के बाद दक्षिणा नही बल्कि पहले दक्षिणा फिर पूजा।
पर यहाँ तो सिपाहियों से लेकर सारे स्टाफ में होड़ मची थी- कुत्ता को बरामद करने औऱ नए साहब का विश्वास पात्र बनने की। वैसे होली, दीवाली पर तपन जी के यहाँ से भी थाने में उपहार आता ही था।
दो दिन के भाग दौड़ के बाद भी जब कुत्ता नही मिला था तो सुपरटेंडेंट साहब खुद थाने आ गए और सारे स्टाफ की क्लास लगा दी। उन्होंने कहा कि अगर दो दिनों के अंदर कुत्ता बरामद नही हुआ तो सारे थाने के स्टाफ को लाइन हाजिर कर दूँगा।
तभी एक नए रंगरूट सिपाही ने कुछ कहना चाहा। थाना इंचार्ज मदन सिंह ने उसे खा जाने वाली नजरो से देखा मानो कह रहे हो ....तेरी इतनी हिम्मत कि सुपरटेंडेंट साहब के सामने अपनी जुबान खोले ?
लेकिन जब सुपरटेंडेंट साहब ने उसे बोलने को कहा तो वह बोला --, साहब जी क्यो न हम लोग लोकल अखबार में कुत्ते के गुमशुदगी का विज्ञापन दे ?
साहब को बात पसन्द आयी और आनन फानन में अखबार में गुमशुदगी की रिपोर्ट और बिज्ञापन छपवा दिया गया।
और आज उसका परिणाम भी मिल गया। अभी जो फोन आया था वह कुते से ही संबंधित था। तभी फोन उठाते ही मुंशी जी खुशी से बोला था , मिल गया साहब... मिल गया। मदन सिंह बरामदे से उठे औऱ लपकते हुए उस कमरे में पहुँचे जहाँ फोन था। उन्होंने फोन मुंशी के हाँथ से लिया और बोले -हेलो...मैं थाना इंचार्ज मदन सिंह बोल रहा हूँ। क्या कुत्ता आपके पास है ?
हमारे पास तो नहीं पर हमारे गेट के बाहर दो दिनों से बैठा है। हमने उसे यहाँ से भगाने का बहुत प्रयास किया, कुछ खाने को भी नही दिया ताकि वह अपने मालिक के पास लौट जाय पर कुत्ता तो यहाँ से जाता ही नही । बस भूखा प्यासा बैठा बंगले की तरफ देखता रहता है।
मदन सिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, आप कहाँ से बोल रहीं हैं ?
उधर से आवाज आई, मैं बृद्धाश्रम की इंचार्ज सिस्टर रजनी बोल रही हूँ। दरअसल हमारे बृद्धाश्रम में एक पचहत्तर साल की बृद्धा एक हप्ते पहले ही आयी है। यह कुत्ता उनका परिचित है। तीन दिन पहले वह भाग कर यहाँ आ गया है और तब से गेट के बाहर बैठा हुआ है।आज जब अखबार में इस कुत्ते के गुमसुदगी की रिपोर्ट देखी तो फोन कर रही हूँ।
मदन सिंह ने कहा, कुत्ता तो शहर के मशहूर ब्यापारी तपन जी का है, फिर आपके बृद्धाश्रम में रहने वाली बृद्धा से उसका क्या सम्बन्ध है ?
इस पर सिस्टर रजनी बोली, वह बृद्धा और कोई नही , तपन जी की माँ है जिसे एक सप्ताह पहले तपन जी इस बृद्धाश्रम में रख गये थे। जिस दिन वे यहाँ अपनी माँ को छोड़ने आये थे तो वो कुत्ता भी साथ था जो अपनी मालकिन को छोड़ कर जाना नही चाहता था । उसे तपन जी जबतदस्ती अपने साथ ले गए थे ।
थानेदार मदन सिंह सुनकर स्तब्ध रह गए। उनके मुहँ से बस इतना ही निकला ,बफादार कौन ? आदमी या कुत्ता।
किशोरी रमण।
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Very nice story....
अरे वाह! लाजवाब कहानी है। आज के समाज को वाकई आईना दिखाता हुआ। माँ से प्यारा कुत्ता और कुत्ते को प्यारा माँ। कहानी जितनी छोटी है सीख उससे कई गुणा बड़ी। लेखन की कला सराहनीयऔर शीर्षक "वफादार कौन" सटिक।
:-- मोहन"मधुर"
वफादार कौन ...कुत्ता या इंसान।
भावुक कर देने वाली कहानी ।