रमेश को जब यह खबर मिली की उसका ट्रांसफर बैंक के गुमला ब्रांच में सिनियर मैनेजर के पद पर हुआ है तो वह चौंक उठा। पांच साल पहले भी तो वह गुमला जिले के सिसई ब्रांच में ब्रांच मैनेजर के रूप में पोस्टेड था। जब उसने गुमला जॉइन किया तो दो तीन दिनों के बाद जिला कार्यालय तथा अनुमंडल कार्यालय में जाकर साहब लोगो से मिलने का प्रोग्राम बनाया ताकी कुछ गवर्नमेंट डिपाजिट ब्रांच को मिल सके। जब अनुमंडल कार्यालय पहुंचा तो चैम्बर के बाहर नेमप्लेट देख कर चौंक गया। श्री नेम चंद। जब वह सिसई में था तो वहाँ के बी डी ओ साहब का भी तो यही नाम था। चैम्बर के बाहर स्टूल पर बैठे चपरासी ने पूछने पर बताया कि साहब तो प्रमोट होकर सिसई से ही आये है। जब उसे मालूम हुआ कि वह साहब का परिचित है तो बोला ,साहब अभी अभी यहाँ से अपने कोठी पर गये हैं। कोठी इस ऑफिस के पीछे ही है अतः आप वही जाकर मिल लीजिये। रमेश ऑफिस के बगल में ही बने अनुमण्डल पदाधिकारी निवास में गया। निवास क्या था बँगला था, अंग्रेजो का बनवाया हुआ। पेड़ पौधे ,फूल ,सजावट सब कुछ था। गेट पर खड़े गार्ड ने उसे बरामदे में रखे कुर्सी पर बैठाया और साहब को जाकर खबर किया।
कुछ ही देर में एक इक्कीस या बाइस साल की आदिवासी लड़की घर से निकली और सामने टेबुल पर पानी का ग्लॉस रखी। उसका चेहरा रमेश को जाना पहचाना सा लगा। वह भी रमेश को देख कर चौंक गई और कुछ कहना ही चाह रही थी कि तभी साहब को आते देखा और वह घर के अंदर भाग गई। साहब आते ही रमेश को पहचान गये और गर्मजोशी से मिले। बहुत सारी पुरानी बातें हुईं । उन्होंने रमेश को यह आश्वाशन भी दिया कि उसकी शाखा को गवर्नमेंट डिपाजिट अवश्य दिलवाएंगे। रमेश वहाँ से निकला तो उसका मन खुश था वह वहाँ से निकल कर कुछ ही दूर गया था कि देखा कि वही लड़की जो साहब के बंगले पर उसके लिए पानी का ग्लॉस लेकर आई थी उसे रुकने का इशारा कर रही थी। रमेश रुका तो वह बोली -तोय मोके नी पहचनले की। यानी तुमने मुझे नही पहचाना क्या ? रमेश ध्यान से उसे देखा और उसे पहचानने का प्रयास करने लगा। तब उसने कहा मैं आभा कुजूर , गाँव पिलखी, ब्लॉक सिसई। इतना सुनना था कि रमेश उसे पहचान गया। पांच साल पहले की बाते उसे याद आने लगी। चुकि ब्लॉक में उसका बैंक एकलौता बैंक था अतः सारे शिक्षकों के वेतन का भुगतान इसी बैंक से होता था । प्रधानाध्यापक से लेकर सारे शिक्षक रमेश के परिचित थे। पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को झंडा फहराने के बाद हाई स्कूल के छात्र छात्राओं के लिए स्पोर्ट्स मीट होता था जिसमे सौ मीटर एवम चार सौ मीटर की दौड़ तथा लंबी कूद और ऊंची कूद की प्रतियोगिता आयोजित होती थी।प्राइज और अन्य खर्चो की ब्यवस्था बैंक की तरफ से होता था। प्रतियोगिता का आयोजन स्कूल के शिक्षक करते थे तथा पुरस्कार वितरण बी डी ओ साहब के हाँथो से होता था।
पंद्रह अगस्त को झंडा फहराने के बाद दौड़ के आयोजन की तैयारी होने लगी। जब लड़को के लिए एक सौ मीटर का रेस शुरू होने वाला था तो देखा कि एक लड़की लड़को वाली कतार में दौड़ने के लिये खड़ी हो गई है। लाख समझाने पर भी वह लड़को के साथ ही दौड़ने के लिये अड़ गयी। उसके हौसले को देखते हुए उसे लड़को के साथ दौड़ने की अनुमती मिल गयी। जब दौड़ शुरू हुआ तो वह लड़की बंदूक के गोली की तरह छुटी और फिनिसिंग पॉइंट पर रस्सी को छूकर ही रुकी। वह दूसरे नंबर पर आने वाले लड़के से काफी आगे थी। कुछ ही देर में जब चार सौ मीटर का दौड़ शुरु हुआ तो वह फिर लड़को के लाइन में दौड़ने के लिए खड़ी थी और इस बार भी वही फर्स्ट आयी। हाँ इस बार रेस खत्म होने के बाद वह थकी थकी सी लग रही थी। वह वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
रमेश जी थोड़े घबरा गए औऱ पूछा ,क्या हुआ, तुम ठीक तो हो ना ? उसने जो बताया उसे सुनकर रमेश जी सन्न रह गये। सुबह से उसने कुछ भी नही खाया था। रात का बासी भात ही खाकर वह स्कूल के लिए निकलती थी। चूँकि उसके बाबा(पिता) को शहर जाना था अतः रात का पानी मे डालकर रखा गया भात जो थोड़ा सा ही था उसके बाबा खा गये। दिन के ग्यारह बज रहे थे और वह खाली पेट ही दौड़ी थी।सुनकर रमेश को काफी तकलीफ हुआ। वे वहाँ गए जहाँ जलेबी का ठोंगा रखा हुआ था। चुकि जलेबी कम थी और भीड़ ज्यादा अतः भीड़ के छटने का इन्तेजार हो रहा था। रमेश जी ने ठोंगे से दो जलेबी पत्ते वाली प्लेट में डाली औऱ उस लड़की को खाने के लिये दिया।एक स्टाफ पानी का ग्लॉस ले आया। जलेबी खा कर तथा पानी पी कर उसे चैन मिला। इसके बाद रमेश जी ने उस लड़की के बारे में स्कूल के प्राचार्य जो खुद आदिवासी थे तथा बी डी ओ साहब से चर्चा की तथा कहा कि लड़की को अगर समुचित खान पान तथा ट्रेनिंग की सुविधा मिले तो यह राष्ट्रीय स्तर की धाविका बन सकती है।
उसके घर वाले उसकी पढाई एवम उसके दौड़ने के बिलकुल खिलाफ थे। वो कह रहे थे कि गाँव मे रहेगी तो खेती में मदद मिलेगी। जब रमेश जी ने समझाया कि अगर वह दौड़ने में अच्छा करेगी तो उसे सरकारी नौकरी मिलेगा तो वे चुप हो गए। रमेश जी ने उस लड़की को मदद दिलाने के लिये जिला पदाधिकारी से भेंट कर मदद की गुहार लगायी। जिला पदाधिकारी ने उसे जिला स्तर पर दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने की सलाह दी तथा कहा कि अगर जिला स्तर पर मेडल मिलेगा तो जरूर मदद करेंगे। वह लड़की जिला स्तर पर चार सौ मीटर में प्रथम आई और उसे राज्य स्तर पर जिले की तरफ से भेजा गया। राज्य स्तर पर भी उसे द्वितीय स्थान मिला।
एक स्वयं- सेवी संस्था ने उसे दौड़ने वाले जूते औऱ कपड़े तथा कुछ सामान उसे उपलब्ध कराए बाकि जगहों से आश्वाशन ही मिला। ट्रैनिंग के लिए कोच और पौष्टिक भोजन के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी। फिर रमेश जी का सिसई से ट्रांसफर हो गया औऱ वे चले गए। पांच सालों के बाद वे वापस गुमला आये तो आभा को घरेलू नौकरानी के रूप में देख कर उन्हें काफी दुख हुआ। इसके आगे की कहानी आभा ने बताई।
रमेश जी के जाने के बाद जो थोड़ी बहुत मदद स्वयम सेवी संस्था से मिलती थी वो भी बंद हो गई। एक बार खुद आभा कलेक्टर साहब से मिली और आर्थिक मदद या काम दिलाने का निवेदन किया। कलेक्टर साहब ने उसे एस डी ओ साहब के पास भेज दिया। एस डी ओ साहब जाने पहचाने थे तो उसे कुछ आशा जगी। एस डी ओ साहब ने उससे कहा अभी तो कोई जगह खाली नहीं हैं तुम कहो तो आदिवासी कन्या विद्यालय में कुक यानी रसोईये की डेली- वेज का काम दिलवा देते हैं, रोज दो सौ पचास रुपए मिलेंगे।। कुछ देर चुप रहने के बाद आभा फिर बोली - साहब जी,पिछले दो सालों से मैं कुक वाला काम कर रहीं हूँ इस आशा में कि शायद पक्की नौकरी मिल जाय। इसके लिए शाम में दो घंटे एस डी ओ साहब के यहाँ मुफ्त चाकरी करनी पड़ती है।साहब जी अब तो दौड़ना भी छूट गया है। खाली पेट कैसे दौड़ती ?
रमेश को समझ नही आ रहा था कि वह क्या बोले तभी आभा बोल उठी, साहब...आपने धाविका बनने, देश का प्रतिनिधित्व करने और देश के लिए मेडल जितने का और फिर अच्छी नौकरी का जो सपना मुझे दिखाया था उसकी कहानी बस यहीं खत्म होती हैं।
अब आभा के आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे। उसके सपनो के टूटने का दर्द रमेश जी भी महसूस कर रहे थे। पहले उन्होंने सोचा कुछ सांत्वना के शब्द कहे पर फिर उन्हें लगा कि यह भी एक झूठ होगा और अब वे झूठ नही बोल सकते। भारी मन से रमेश जी वहाँ से चल दिये।
हाँ, उन्हें अब इस प्रश्न का जवाब मिल गया था कि एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाला अपना देश ओलम्पिक या अन्य प्रतियोगिताओ में मेडल क्यो नहीं जीत पाता ? किशोरी रमण
Wonderful story.....
मार्मिक कहानी |
कहानी अच्छी है। एक होनहार लड़की या लड़के के सपने जब खण्डित होते हैं तो यह सिर्फ उसके हौसले की हार नहीं होती। यह हार आने वाली अगली पीढ़ियों के मनोबल की हार होती है,जिसे अंततः देश को भुगतना पड़ता है।
हमें इससे सीख लेनी चाहिए।
:-- मोहन"