पटना मार्केट का घनचक्कर
आलोक पटना मार्केट के बाहर खड़ा अपने दोस्तों का इंतजार करते करते थक चूका था। उसे जोरो की भूख लग रही थी और दोस्तो पर गुस्सा भी आ रहा था। वह गुस्से में बुदबुदाया, साले.....लड़की देखी नही कि पीछे लग जाते है। यहाँ माँ बाप ने मेडिकल परीक्षा की तैयारी और कोचिंग के लिए भेजा है पर बेटा तो लडकियों के चक्कर लगा रहा है। उसने निश्चय कर लिया कि अगर दस मिनट के अन्दर वे दोनों नहीं लौटे तो वह यहाँ से चल देगा। राजीव, रवि और आलोक थे तो अलग अलग इलाको से पर पटना के शब्जी बाग इलाके में लॉज में एक ही कमरे में रह कर मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी कर रहे थे। शाम को चार से साढ़े सात बजे तक राम मोहन राय सेमिनरी स्कूल खजांची रोड पटना में कोचिंग करते और दिन में पढ़ाई। आलोक गरीब परिवार से सीधा साधा लड़का था, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने वाला जब की राजीव और रवि, पढ़ाई कम और मस्ती ज्यादा करते थे। शाम को जब कोचिंग से छूटते तो आलोक तो वहाँ से निकल कर मछुआ टोली के पास आर्या होटल में खाना खाने आ जाता जहाँ बारह आने में चार रोटी, दाल और शब्जी तथा दिन में सवा रुपए में एक प्लेट चावल, दाल, शब्जी और भुजिया मिलता था।माँगने पर होटल वाला दाल और शब्जी दूबारा भी देता था। खाना खाकर वह लॉज में वापस आकर पढ़ाई में लग जाता। वहीं राजीव और रवि अशोक राजपथ पर कुछ देर मस्ती करते फिर वापस लॉज आते। आज चूँकि मेडिकल टेस्ट का फॉर्म भरने के लिए पोस्टल आर्डर खरीदना था अतः तीनो कोचिंग के बाद शब्जी बाग के पास पीरबहोर पोस्ट ऑफिस आये थे।यह पोस्ट आफिस रात आठ बजे तक खुला रहता था। उन दिनों (1977 की घटना का वर्णन है) परीक्षा फीस के लिये बैंक ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर की मांग की जाती थी। तीनो लड़के पोस्टल आर्डर के लिए लाइन में लगे थे कि राजीव के कानो में एक सुरीली सी आवाज सुनाई पड़ी क्या आप मुझे अपना पेन देंगे प्लीज। राजीव पहले तो सकपकाया फिर बोला, हाँ... हाँ, क्यो नही ? और उसने पेन लड़की की तरफ बढ़ा दिया। कुछ देर के बाद तीनों दोस्त पेन वापस मिलने के इंतज़ार में लड़की के पास खड़े थे। लड़की एक पत्र लिख रही थी जिसे शायद उसे आज ही पोस्ट करना था। उसके साथ एक बारह तेरह साल का लड़का भी था जो बोर हो रहा था और उस लड़की से कुछ कह रहा था। खीज कर लड़की उस लकड़े से बोली, पटना मार्केट भागे थोड़े जा रहा है जो तुम इतनी जल्दी मचा रहे हो। राजीव और रवि तो चोर नजरो से लड़की को ही घूरे जा रहे थे। जब लड़की ने पेन वापस करते हुए राजीव को थैंक्यू कहा तो वह तो मानो निहाल हो गया। आखिर उसने लड़की से पूछ ही लिया- क्या आप पटना मार्केट जा रहीं है ? हाँ, मैं तो अक्सर जाती रहती हूँ और अपनी सारी शॉपिंग वहीं से करती हूँ। सच पूछा जाय तो पटना में और कोई ढंग का मार्केट है ही नही सिवाय पटना मार्केट के। फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा, हाँ... वहाँ आप गोलगप्पे और चाट का भी मजा ले सकते हैं। राजीव के मन मे लड्डू फूटने लगे। उसने चौकने का नाटक करते हुए कहा- अरे... हम लोग भी उधर ही चल रहे हैं। लड़की मुस्कुराते हुए बोली -अच्छा ? तो चलिए। सब लोग टहलते हुए ही बगल में ही अवस्थित पटना मार्केट पहुँचे। पटना मार्केट के अन्दर की पतली गली जैसे रास्ते और भीड़ भाड़ को देख कर आलोक ने मार्केट में जाने से साफ इंकार कर दिया। बोला , मै यही बाहर तुम सब का इंतज़ार करता हूँ। रवि ने आलोक के कान में कहा -यार , इसी भीड़ भाड़ में तो असली मजा है पर आलोक तैयार नहीं हुआ। राजीव, रवि, वह लड़की और उसके साथ का लड़का सब मार्केट के अन्दर गये। भीड़ भाड़ में चलना मुश्किल था। कुछ लड़के जान बूझ कर टक्कर मारने के चक्कर मे लग रहे थे। पहले गोल गप्पे फिर चाट और लस्सी, हर बार पैसे देने के लिए लड़की अपना पर्स टटोलती पर कभी राजीव तो कभी रवि पेमेन्ट कर दे रहे थे। दोनों ही लड़की को इम्प्रेस करने का कोई मौका नही छोड़ रहे थे। इधर बाहर आलोक बोर हो रहा था, उसे भूख भी लग रही थी। वह वहाँ से चलने ही वाला था कि उसने देखा, राजीव और रवि उसकी ओर आ रहे है। अरे, वह लड़की कहाँ है ? आलोक ने पूछा । राजीव ने ठंढी आह भरते हुए कहा - पता नही यार कहाँ चली गई ? थी तो साथ ही पर बाहर निकलते समय भीड़ में खो गई, कुछ उदास होते हुए रवि बोला। कुछ नाम पता पूछा ? या सिर्फ उसे चाट पकौड़े ही खिलाते रह गये आलोक ने फिर पूछा। पूछा तो था पर टाल गई थी। देखो अब कब उससे भेंट होती है ? रबि ने कहा। आलोक बोला चलो आर्या होटल, खाना खाने, जोरो की भूख लगी है। इसपर राजीव बोला- यार आज तो महंगू होटल चलेंगे मटन और तंदूरी रोटी खाने। आज तो सेलिब्रेट करेंगे लड़की के साथ घूमने के उपलक्ष्य में। खाना खाने के बाद बैरा बिल टेबल पर रख गया। कुल छब्बीस रुपये का बिल देख कर आलोक चौक गया क्यो कि उसके पास इतने पैसे नही थे। इस पर राजीव बोला - यार आज बिल का पेमेंट मैं करूँगा । उसने पर्स निकालने के लिए पॉकेट में हाँथ डाला। फिर चौक कर अपने सभी पॉकेट में पर्स तलाश करने लगा। फिर बोला -यार लगता है पर्स कहीं गुम हो गया। इसपर रवि बोला , यार लड़की के चक्कर मे तू तो दीवाना हो गया था, कहीं गिरा दिया होगा अपने पर्स को। चलो कोई बात नही .…मैं पेमेंट कर देता हूँ । रवि ने पर्स निकालने के लिये अपने पॉकेट में हाँथ डाला। इस बार चौकने की बारी रवि की थी। वह बोला...यार, मेरा भी पर्स गायब है। यह कैसे हो सकता है कि हम दोनों ने एक साथ अपना पर्स कहीं गुम कर दिया ? अब क्या होगा ? छब्बीस रुपये का बिल टेबल पर पड़ा मुँह चिढ़ा रहा था। आलोक ने अपने सारे पॉकेट से खोज कर नोट और सिक्के निकाले। कुल बीस रुपये चार आने थे यानी पांच रुपये पचहत्तर पैसे कम। चूँकि राजीव और रवि अक्सर महंगू होटल में खाते थे अतः होटल का मालिक पांच रूपए पचहत्तर पैसे उधारी उनके खाते में दर्ज कर मान गया। इस तरह उस दिन तीनो की इज्जत बच गई। इस घटना के करीब एक सप्ताह बाद शाम को जब तीनो दोस्त कोचिंग के लिए निकल रहे थे तभी पोस्टमैन लॉज में आया। पोस्टमैन हमेशा मनीऑर्डर लेकर आता था लेकिन आज उसके हाँथ में एक छोटा सा पार्सल था। उसने पार्सल राजीव को देकर उससे रिसीविंग कराई। पार्सल देख कर सभी दोस्त चौक गये। राजीव ने पार्सल खोला तो चौक गया। इसमे उसका और रवि का पर्स था जो पटना मार्केट में गुम हो गया था। पर्स खाली था । हाँ ,एक पत्र भी था जिसमे लिखा हुआ था " दोनों पर्स से कुल तीन सौ सत्रह रुपये मिले है और लॉज का पता भी। रुपये मैं रख रही हूँ और पर्स वापस भेज रही हूँ इस रिमार्क के साथ की जो लड़कियो पर बूरी नजर रखते हैं या कुछ गलत सोचते है उनका हाल वही होता है जो आप सबो के साथ हुआ है। आशा है अब आगे आप सब अपनी पढ़ाई पर ध्यान देंगे लड़कियों पर नही....। तीनो दोस्त एक दूसरे का मुहँ देख रहे थे पर उनकी समझ मे कुछ भी नही आ रहा था कि आखिर ये हुआ कैसे ? क्या आपको कुछ समझ मे आया ? किशोरी रमण। BE HAPPY.....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
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वाह, सीख देने वाली कहानी, ।
कहानी रोचक व सीख भरी है। पर इसमें कथा कार कौन है? राजीव,रवि या आलोक। हा!हा!हा!
:-- मोहन"मधुर"
कहानी पढकर मै अपने पुराने दिनो मे लौट गये है।