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Writer's pictureKishori Raman

लाल मिरची





रविवार का दिन था और समय यही करीब बारह बज रहे थे। दीपक अपने कुछ दोस्तों के साथ एक छोटे से मैदान में फुटबॉल खेल रहा था। बॉल तो रबर की ही थी पर थी थोड़े बड़े साइज की। एक खाली और बंद बंगले के अहाते को सब स्कूली बच्चों ने अपना खेलने का मैदान बना लिया था। उस बंगले के चारो ओर लोहे की तार की फेंसिंग कई जगहों से टूट गई थी। कंपाउंड में देख भाल नही होने के करण बडे बडे घाँस उग आये थे। उस बंगले का कोई केयरटेकर दिन में नही रहता था अतः सब बच्चों की मौज थी।


आस पास के बच्चे छुट्टी के दिनों में अक्सर वहाँ गेंद खेलने पहुँच जाते। ईंट रख कर गोल पोस्ट बनाये जाते। जितने भी बच्चे उपस्थित रहते ,उन्हें बराबर संख्या में बांटकर दो टीमें बन जाती और फिर खेल शुरू हो जाता।


अभी खेल शुरू ही हुआ था कि राजा दिखा जो साइकिल से कहीं जा रहा था। उसने बच्चो को खेलते देखा तो वो भी आ गया और अपनी साइकिल को स्टैंड पर खड़ा करते हुए बोला - मैं भी खेलूँगा। राजा दबंग स्वभाव का और मजबूत कद काठी का लड़का था। स्कूल से भाग कर चुपके चुपके पिक्चर देखने जाना और मार के डर से घर मे झूठ बोलना उसकी आदत थी। जब भी वह पिक्चर देख कर आता तो अपने साथियो को उसकी कहानी एक्टिंग कर के सुनाता।


दीपक और वे थे तो पक्के दोस्त पर दोनों एक दूसरे के बिलकुल उलट स्वभाव के थे। दीपक सीधा साधा दब्बू स्वभाव का था लेकिन था पढ़ने में तेज। वही राजा थोड़ा दबंग औऱ शरारती था पर पढ़ने में कमजोर भी था। उसके घर वाले दीपक के साथ उसको देखते तो खुश हो जाते और उससे कहते " कुछ तो अपने दोस्त से सीखो


अब जब राजा ने खेलने का निश्चय कर ही लिया तो भला किसकी हिम्मत थी कि उसे मना कर दे। पर दीपक ने जरूर उसको याद दिलाया कि तुम तो किसी काम से जा रहे थे ? इसपर राजा ने कहा , हाँ... मुझे कुछ काम से जाना है पर अभी तो उसमें बहुत टाइम है। थोड़ी देर खेल कर चला जाऊँगा। खेल शुरू हुआ तो लंबा चला क्योंकि दोनों तरफ की टीमें मजबूत थी । राजा की जिद थी कि बिना गोल किये वो मानेगा नही क्योंकि यह उसके लिए इज्जत की बात थी। और बहुत प्रयास के बाद जब राजा ने गोल किया तो वह खुशी से उछल पड़ा। तभी उसे अपने काम की याद आई तो वह अपनी साइकिल की ओर बढ़ा।


तभी बिनय ने एक रिक्शे की तरफ इशारा किया, जिसपर एक लड़की बैठी थी औऱ सामने खड़े आदमी से कुछ पूछ रही थी। लड़की लाल ड्रेस में थी। उसे देखते ही राजा जोर से बोला ओ..हो...लाल मिरची। लड़की ने उसकी बात सुन ली और उसे घूरा और कुछ बड़बड़ाई... शायद गाली दी जिसे राजा और उसके दोस्त नही सुन सके। फिर रिक्शा आगे बढ़ गया।


राजा ने भी अपनी साइकिल उठाई औऱ एक तरफ चल दिया। बाकी बचे बच्चों ने अपना खेल जारी रखा। करीब आधे घंटे के बाद बच्चो ने राजा को मुँह लटकाये हुए वापस आते देखा। वह दीपक के पास आकर खुशामद भरे लहजे में बोल- यार तुझे मेरे साथ मेरे घर तक चलना होगा।

दीपक चौक कर पूछा "क्यो भला"?

राजा बोला यार, बहुत बड़ी गलती हो गई है मुझसे। तुम साथ रहोगे तो शायद मैं पिटाई से बच जाऊँगा या फिर थोड़ी ही मार पड़ेगी।

आखिर तुमसे हुआ क्या है ? दीपक ने पूछा।

इसपर राजा ने कहा, मुझे स्टेशन जाना था । मेरे एक रिश्तेदार बनारस से आने वाले है ...पहली बार वे आरा आ रहे हैं , 12.50 की शटल से। मैं उन्हें ही लेने को स्टेशन जा रहा था कि बॉल खेलने के चक्कर मे भूल गया। जब स्टेशन पहुंचा तो शटल ट्रेन आ कर जा चुकी थी। रोज तो ये ट्रेन लेट आती थी...कभी भी डेढ़ बजे के पहले नही आती थी पर पता नही कैसे आज राइट टाइम आ कर निकल गई। वहाँ स्टेशन पर मुझे कोई नही मिला इसलिये वापस आ गया। अब घर वालो को क्या बताऊँगा ?


दीपक राजा के साथ उसके घर पहुँचा। माँ ने दोनों को घर मे घूसते देखा तो गुस्से में बोली- अरे तुमको तो मैंने स्टेशन भेजा था ? तुम्हे बताया तो था कि तुम्हारी मामा की बेटी पिंकी पहली बार अकेले ही यहाँ बनारस से आ रही है, जाकर उसे स्टेशन से ले आओ पर तुम्हे खेलने से फुर्सत मिले तब ना। बेचारी अकेले पता पूछते पूछते बड़ी मुश्किल से आ पाई है। फिर माँ ने पिंकी को आवाज दी ...देखो तुम्हारा भाई राजा आ गया, जिसके बारे में तुम पूछ रही थी।


तभी पिंकी कमरे में पहुँचीं और राजा को देख कर चौक पड़ी और उसके मुँह से इतना ही निकल ...भैया तुम ? दीपक भी चौक गया। यह तो वही रिक्शे वाली लड़की थी, लाल ड्रेस वाली , जिसे राजा ने छेड़ते हुए लाल मिरची कहा था। अब तो शर्म के मारे राजा का बुरा हाल था और वो अपनी नजरें पिंकी से नही मिला पा रहा था।


पिंकी राजा और दीपक के पास आई और शरारत से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- क्यो भैया- "लाल मिरची" राजा ने हाँथ जोड़ते हुए कहा ,प्लीज... माँ को मत बताना। फिर उसने अपने कान भी पकड़ लिया। राजा की रोनी सूरत देखकर पिंकी जोर से हँस पड़ी और दीपक भी अपनी हँसी नही रोक पाया।



किशोरी रमण


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4 comentários


Membro desconhecido
18 de out. de 2021

Very nice story....

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sah47730
sah47730
02 de out. de 2021

बचपन अपनी शरारत से बाज नही आता।

लेकिन शरारत जब इस कहानी जैसा उल्टा पड़ जाए तो समझ आ जाती है।

कहानी सीख भरी है। सुन्दर प्रस्तुति।

:-- मोहन"मधुर"

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verma.vkv
verma.vkv
01 de out. de 2021

वाह, बहुर सुन्दर प्रस्तुति |

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surendrasinghpnb
01 de out. de 2021

वाह बास । End जल्दी हो गया कहानी

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