आज 11 अक्टूबर है, जय प्रकाश नारायण जी का जन्मदिन। पर आश्चर्य, आखिर इतनी खामोशी क्यो है आज ? कोई शोर गुल नहीं , कोई बड़े आयोजन नहीं जबकि सत्ता के सारे प्रतिष्ठानो पर उनके शिष्यगण ही काबिज हैं।
जय प्रकाश नारायण जी न केवल महान स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि गाँधीवाद और गाँधीवादी मूल्यों के कट्टर समर्थक भी थे जिन्होंने अंतिम सांस तक उसे अपने आंदोलनों की प्राण वायु बनाये रखा और एक नई क्रांति जिसे उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नाम दिया था की शुरुआत की। उनके ही कुशल नेतृत्व में आपातकाल के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ और एक नये राजनीतिक युग का आरम्भ हुआ।
चंबल के डाकू की समस्या का समाधान हो, नक्सल समस्या या फिर नागालैंड की समस्या, जयप्रकाश जी ने उसके समाधान का प्रयास किया। चूँकि वे सबसे विश्वसनीय और बेदाग ब्यक्तित्व के मालिक थे अतः सबो ने उनपर बिश्वास किया और वे अपने मकसद में सफल रहे। भूदान आन्दोलन में बिनोवा भावे के सहयोगी बन भूमिहिनो में जमीन बांट कर समता मूलक समाज की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान दिया।
वे केवल सत्ता परिवर्तन से खुश नही थे इसीलिए उन्होंने सामाजिक परिवर्तन का भी आह्वान किया जिसमें " जातपात तोड़ो,तिलक दहेज छोड़ो " जैसे नारे सम्पूर्ण क्रांति के मूल आधार बने। हाँ, यह भी सही है कि उनके ही अनुयायियों ने सत्ता के मिलते ही उनके साथ धोखा किया और उनका सम्पूर्ण क्रांति का सपना अधूरा रह गया।
आज आखिर उनके अपने लोग ही क्यों उन्हें अप्रसांगिक बनाने का षड्यंत्र कर रहे है ? क्या इसलिए कि उनके विचार न तो वोट दिला सकते है और न तो राजनीतिक गोलबंदी में सहायक हो सकते है।
या फिर उन्हें ये डर तो नही कि आज के हालात और परिस्थितियों में इतिहास अपने आप को दुहराने लगे और जनता फिर से जाग जाए । और फिजाओं में दिनकर की ये कविता फिर से गूँजने लगे कि " सिंघासन खाली करो की जनता आती है "
जन जन के मन मे आप हमेशा विराजमान रहेंगे प्रेरणा- श्रोत बनकर । आपको नमन, शत शत नमन।
किशोरी रमण ।
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Great moment.....
लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।
संपूर्ण क्रांति के प्रणेता को शत शत