दोस्तो, देश तो देश मे रहने वालों से बनता है। यहाँ रहने वाले लोगों से प्रेम करना ही देशभक्ति है। प्रेम से भाईचारा और आपसी विश्वास बढ़ता है और हमारी एकता सुदृढ़ होती है। इससे देश में शांति और सहयोग का माहौल तैयार होता है जो किसी भी देश के विकास के लिए आवश्यक होता है। जब देश विकसित होता है तो वहाँ रहने वाले लोगों में खुशहाली और संपन्नता आती है।
हमारे देश की यह विशेषता है कि हम अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं जो बहुत अच्छी बात है। पर वही जब यहाँ के लोगों से प्रेम करने की बात होती है, एक साथ मिलजुल कर रहने की बात होती है, एक दूसरे के मान्यताओं, रीति रिवाजों और धर्मों को आदर देने की बात होती है तो हम उस पर खरा नहीं उतरते। तब हमारे मन में एक दूसरे के प्रति बहुत सारी शिकायतें होती है।
तब हम सोंच में पड़ जाते हैं कि यह विडंबना क्यों है ? देश-प्रेम का मतलब तो केवल इस के नक्शे से प्रेम करना नहीं होता है। अगर नक्शे में बनाए गए देश से प्रेम बहुत गहरा है लेकिन देश के अंदर रहने वालों के प्रति प्रेम सवालों के घेरे में है तो सच मानिए ऐसा प्रेम विवादास्पद और अकल्याणकारी होता है।
जब हम अपने पड़ोसियों से मामूली सी बात पर लड़ते हैं, रिक्शा-ठेले वाले को मजदूरी कम देते हैं और विरोध करने पर उन्हें गाली देते हैं ...अपने बड़े होने और ऊंची पहुँच का रोब गाँठते हैं तब भी हमारा देश प्रेम सवालों के घेरे में होता है। जब कोई नागरिक अपने काम के लिए हमारे दफ्तर में आता है और हमारे दफ्तर के कर्मचारी रिश्वत माँगते हैं तो उस समय हमारा देश प्रेम कहाँ होता है ? हमें यह क्यों नहीं महसूस होता है कि सामने वाला भी उसी देश का हिस्सा है जिससे प्रेम करने का हम दावा करते हैं। दिन में कई बार जय हिंद कहने वाली पुलिस को किसी से रिश्वत वसूलते या उसकी पिटाई करते समय यह क्यों नहीं महसूस होता है कि पीटने वाला वह गरीब भी उसी जय हिंद का निवासी है जिसकी वह जय करता है। धर्म और जाति के नाम पर दंगा कराने वालों को तब देश क्यों नहीं याद आता है जब वे नफरत फैलाते हैं और समाज में आग लगाते हैं ?
आज देश को लोग तभी याद करते हैं जब उन्हें अपना कोई काम निकालना होता है या अपना कोई हित साधना होता है। अब तो हमारे नेतागण और उनके आका समय और अपनी जरूरतों के हिसाब से देशभक्ति की परिभाषा तय करते हैं। जो जितना जोर से देशभक्ति का नारा लगाएगा वह उतना ही बड़ा देशभक्त कहलायेगा। अब तो वे ये भी कहते हैं कि जो हमारी नीतियों से सहमत होगा, हमारी वाहवाही करेगा वही देश भक्त कहलायेगा।
इन सब बातों के बीच से देशवासी गुम होते जा रहें हैं। अगर किसी ने गलती से भी देशवासियों और उसके दुख और जरूरतों पर सवाल उठा दिया तो उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है। आजकल एक और प्रचलन शुरू हो गया है। हम सब बड़े आस्थावान हो गए हैं। हर छोटी-छोटी बातों से हमारी आस्था पर चोट लग जाती है। किसी ने हमारे विचारों से इतर कोई बात की तो हमारी आस्था घायल हो जाती है। फिर तो हम भी दूसरों के आस्था पर चोट पहुंचाने को निकल पड़ते हैं। हमें अपनी अभिव्यक्ति की आजादी बहुत प्यारी है और दूसरों पर हम कुछ भी बोल देते हैं। पर अगर कोई गलती से भी हम पर कुछ बोलता है तो अभिव्यक्ति की आजादी की ऐसी-तैसी करने हम लट्ठ लेकर निकल पड़ते हैं।
जब देश आजाद हुआ था तो ये माना गया था कि समय के साथ जब लोग शिक्षित होंगे तो समझदारी आएगी। एकता,भाईचारा और सहिष्णुता बढ़ेगा जिससे हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा। पर आज क्या ये नहीं लगता है कि पढ़ लिख कर और विज्ञान में इतनी तरक्की देखकर भी हम उसी पुराने दौर में लौटने को आतुर हैं ...जहाँ से हम चले थे ?
किशोरी रमण
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वाह, सही तथ्यों के साथ हमारी भावनाओं को प्रकट की गई।
Very nice...