
जयन्त बैंक के डोरंडा शाखा में आयोजित ऋण वसूली शिविर में भाग लेने के लिए पटना से राँची आया था। तत्काल में वह पटना के अंचल कार्यालय में कार्यपालक के रूप में कार्यरत था। वैसे वह राँची शहर से पूर्ण परिचित था क्योंकि उसकी पढ़ाई लिखाई राँची में ही हुई थी जब उसके पिता जी यहाँ पोस्टेड थे। बाद में पिता जी के पटना ट्रांसफर होने पर उसका पूरा परिवार पटना आ गया था और ग्रेजुएशन के बाद कॉम्पटीशन की तैयारी के लिए वह दिल्ली चला गया था।
ऋण वसूली शिविर में काफी भीड़ थी। बहुत सारे लोग जिनका ऋण खाता एन.पी.ए. हो गया था वह अपने खाते को समझौता के तहत सेटल कराने हेतु आ रहे थे। जयन्त बैंक के समझौता पॉलिसी के अनुसार आवश्यक राशि उनसे जमा करवाकर उनके ऋण खाते का निष्पादन करवा रहा था। बैंक शाखा में ही बहुत सारी कुर्सियां लगाई गई थी जिस पर लोग बैठे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। बैंक का एक अधिकारी ऋण का विस्तृत विवरण एक फॉर्म में भरकर उसे जयन्त के पास भिजवा रहा था जो केबिन में बैठे हुए थे। उनके पास ही शाखा के प्रबंधक भी बैठे हुए उनकी मदद कर रहे थे।
जयंत ने ध्यान दिया कि बाहर कोने में एक बुजुर्ग व्यक्ति बहुत देर से बैठे हुए हैं । उसने रिकवरी में लगे बैंक के अधिकारी से कहा कि क्यो न उन बुजुर्ग ब्यक्ति का काम पहले कर दिया जाय ? बेचारे बहुत देर से बैठे हुए हैं। वह अधिकारी उन बुजुर्ग ब्यक्ति के पास गया और लौट कर जयन्त को बताया कि वे आपसे अकेले में बात करना चाहते हैं इसलिए कैम्प के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।
और जब कैम्प खत्म हुआ तो दो बजे गये थे। मैनेजर ने लंच के लिए पास के होटल में चलने का आग्रह किया।तभी जयन्त को उस बुजुर्ग की याद आई जो अभी भी बैठा उसके बुलावे का इंतजार कर रहे थे। जयंत ने उस बुजुर्ग व्यक्ति को चेंबर में बुलवाया। फिर उनके हाथ में पकड़े कागज को लिया जिस पर लोन का डिटेल भरा हुआ था। उनके बेटे रवि ने बैंक से विदेश में उच्च शिक्षा के लिए ऋण लिया था जिसमे बुजुर्ग गारंटर थे। उनका घर ऋण के प्रतिभूति (सिक्युरिटी) के रूप में बैंक में बंधक था। चूँकि बेटा ऋण की राशि नही चुका रहा था अतः गारंटर होने के कारण बैंक बुजुर्ग से ऋण चुकाने की माँग कर रहा था। ऋण राशि नही चुकाने पर बैंक ने बंधक रखे घर को नीलाम करने की करवाई शुरु कर दी थी।
जयन्त उस बुजुर्ग व्यक्ति से बोला, बाबा,इसमें तो हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं। ऋण तो आपको चुकाना ही होगा। अगर आप नहीं चुकाते हैं तो आपके घर को बेचकर हम अपनी राशि वसूल कर लेंगे। अच्छा होगा अगर आप खुद इसे बेचे तो शायद ज्यादा पैसों में बिके और बैंक की राशि चुकाने के बाद आपके पास कुछ पैसे बच जाए।
यह सुनकर उस बुजुर्ग व्यक्ति की आंखें भर आई। वे लड़खड़ाती जुबान से बोले, अगर घर बेचूँगा तो रहूंगा कहाँ ? मेरी एक कुंवारी बेटी है। हम कहाँ जाएंगे ?
क्यो ? जिस बेटे को आपने पढ़ाया लिखाया, उसे विदेश में शिक्षा दिलाने के लिए शिक्षा ऋण लिया वह क्या आपकी मदद नही करेगा ? आप उससे बात तो कीजिये, प्रवन्धक ने कहा।
इतना सुनना था कि वे बुजुर्ग बच्चों की तरह फफक कर रो पड़े। फिर बोले, बेटा तो अब विदेश में ही सेटल हो गया है। वहीँ अपनी मर्जी से शादी ब्याह कर अपना परिवार बसा लिया है। पिछले पाँच वर्षो से यहाँ आया ही नही। पहले तो हमारे चिट्ठियों का जबाब भी देता था। अब तो हमारा फोन भी नही उठाता। जिस बेटे के लिए हमने अपना खून पसीना एक किया, पढ़ाया लिखाया, आज बुढ़ापे में हमें और अपनी कुवाँरी बहन को अकेला किस्मत पर छोड़ दिया है।
कुछ देर खामोश रहने के बाद बुजुर्ग ने कहना शुरू किया। मेरे आँखों पर पट्टी पड़ गई थी। पुत्र मोह में हमने अपनी बेटी के साथ अन्याय किया। मेरी बेटी पढ़ने में बहुत तेज थी और डॉक्टर बनना चाहती थी। पर हमारे पास सीमित साधन थे और उसमें एक ही बच्चों को पढ़ा सकते थे। हमने बेटी की पढ़ाई छुड़वा दी ताकि बेटे की पढ़ाई को जारी रखा जा सके। बेटा पढ़ने में औसत ही था फिर भी पैसा लगाकर उसको अच्छी शिक्षा दिलवाई। उसकी पढ़ाई के चलते अपने स्वर्गीय पत्नी के सारे गहनें, जेवर जो उसने अपनी बेटी की शादी के लिये बचा कर रखे थे सब बिक गये। अंत में मैंने उसके विदेश में शिक्षा की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए इस घर को भी बंधक रखकर ऋण लिया। पैसों के अभाव में मैं न तो बेटी को उच्च शिक्षा दिलवा पाया और न ही अबतक उसकी शादी कर पाया हूँ , क्योंकि हर जगह दहेज की माँग होती है जो मेरे पास नही है। अब तो उसकी उम्र भी काफी हो गई है। उसी घर के एक हिस्से को हमने किराये पर उठा दिया है और बाकी के दो छोटे कमरों में गुजरा करते है। बेटी घर पर ही ट्युशन पढ़ाती है जिससे दो वक्त की रोटी नसीब होती है। अगर घर ही नही रहेगा तो हम कहाँ जायेगें ? इतना कह कर वे बुजुर्ग फिर रोने लगे।
जयन्त को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले ? कैसे इस केस को हैंडल करें ? आज तक उसने बहुत सारे खाते सेटल किए थे, पर इस तरह के मुश्किल केस उसके सामने पहले कभी नहीं आया था। कुछ देर चुप रहने के बाद जयन्त बोला- एक काम करें, आप अपने बेटे का विदेश का पता, वहाँ वह किस कंपनी में काम करता है ? उसका कांटेक्ट नंबर क्या है ? उसका पासपोर्ट और वीजा का डिटेल हमें दें। हम खुद बैंक के माध्यम से उससे बात करने का प्रयास करेंगे। इस बीच हम आप के विरुद्ध चल रहे कानूनी कार्यवाही एवं घर को नीलाम करने की प्रक्रिया को थोड़े समय के लिए स्थगित करवा देंगे। इतना सुनकर उस बुजुर्ग को कुछ राहत महसूस हुआ। अपने हाथों को जोड़कर उसने धन्यवाद कहा। फिर बोला, बेटे की नौकरी और उसके पते के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन मेरी बेटी के पास सारे डिटेल मौजूद हैं। आप कहे तो कल मैं अपनी बेटी को शाखा में भेज दूँ।
इस पर मैनेजर साहब ने कहा, नहीं.. नहीं, उसे क्यों भेजेंगे यहाँ ? कल सुबह मैं बैंक आने के पहले साहब को लेकर आपके घर आ जाऊँगा और वहीं आपके घर चाय भी पिएंगे और फिर सारे डिटेल भी ले लेंगे। क्यों चाय पिलायेंगे न आप ?
मेरा अहो भाग्य जो आप हमारे यहाँ पधारेंगे, उस बुजुर्ग ने कहा और फिर वे चले गये।
उनके जाने के बाद प्रबंधक महोदय ने जयन्त से कहा, चलिए इसी बहाने मैं उस सिक्योरिटी यानी घर को देखना चाहता हूँ क्योंकि आज तक मैंने सिक्योरिटी का विजिट नहीं किया है। साथ ही हम अगल बगल से यह भी पता कर लेंगे कि यह बुजुर्ग जो कह रहे हैं वह सच कह रहे हैं या नाटक कर रहे है।
जयन्त ने प्रबंधक से पूछा- आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं ? इस पर प्रबंधक बोले, सर जी, यहाँ तो लोन न चुकाने के सौ बहाने होते हैं। आजकल लोग काफी स्मार्ट हो गए हैं। अतः ऑंख मूंदकर किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
दूसरे दिन शाम को करीब चार बजे जयन्त की वापसी की फ्लाइट थी। सुबह में मैनेजर उन्हें लेने होटल में आया। दोनों ने होटल में ही नाश्ता किया फिर उस बुजुर्ग के बताए पते पर उससे मिलने उसके घर की ओर चल दिये। कुछ ही देर में वे बताये पते पर पहुँच गये। बाहर से देखने पर वह मध्यम आकार का पुराना सा घर था। वे बुज़ुर्ग घर के बाहर ही खड़े थे। उनके साथ एक लड़की भी खड़ी थी जो दूर से इन दोनों को आता देख झट घर के अंदर चली गई। बुजुर्ग ने बरामदे में रखी कुर्सी पर दोनों को बैठाया और फिर बेटी को आवाज देते हुए कहा, बेटी चाय लेकर आओ। और हाँ,बेटे रवि का पता और उसका कांटेक्ट नंबर भी साथ लेते आना। थोड़ी देर के बाद एक लड़की कमरे से बाहर आई। उसके हाथों में एक ट्रे थी । उस ट्रे में चाय के तीन कप रखे हुए थे और साथ में कुछ बिस्किट भी थे। लड़की ने अपने चेहरे को दुपट्टे से इस तरह से ढक रखा था जिससे केवल उसकी आँखे ही नजर आ रही थी।
बेटी को चेहरा ढके देखकर बुजुर्ग ने आश्चर्य से पूछा- बेटी तुमने अपना मुहँ क्यों ढक रखा है ?
इसपर उस लड़की ने कहा-पिताजी, अभी-अभी एक ततैया ने मेरे चेहरे पर काट लिया है। मेरा चेहरा फूल कर बदसूरत हो गया है और तब मैंने इसे ढकना ही उचित समझा। जयन्त और मैनेजर दोनों ने चाय का प्याला हाथों में लिया और तब बुजुर्ग ने कहा, बेटी, रवि का पता और उसका सेल नंबर कागज पर लिखकर साहब को दे दो। लड़की कमरे के अंदर गई और कुछ ही देर बाद एक कागज पर हाथ से लिखे पते और अन्य डिटेल को लेकर बाहर आई और जयंत को थमा दिया। जयन्त ने कागज पर लिखे सुंदर हैंडराइटिंग की तारीफ करते हुए पूछा। आप कहां तक पढ़ी है ? वह बोली,बस ग्रेजुएशन ही कर पाई हूँ। इससे आगे पढने का मौका ही नही मिला। उसकी बातों में उसका दर्द साफ झलक रहा था। जयन्त ने पूछा, आपने अपने भाई से आखरी बार कब बात की थी ?
इस पर वह लड़की बोली, करीब दो साल पहले, जब बैंक से वसूली हेतु नोटिस मिला था। पर भाई ने पैसे भेजने से साफ मना कर दिया था। वह बोला था कि वह बाल बच्चे वाला हो गया है तथा उसके खर्चे बढ़ गए हैं। वह हमारी मदद नहीं कर सकता है। यह बोलते बोलते उस लड़की की आवाज भर्रा गई। लगा वह अपनी रुलाई को बहुत प्रयत्न से रोक पा रही है। चाय पीकर दोनों वहां से उठे और उनकी गाड़ी वापस ब्रांच की ओर चल पड़ी। रास्ते में जयन्त ने मैनेजर से कहा कि उसे होटल में ड्राप कर दे।वह कुछ देर आराम करना चाहता है। थोड़ी देर बाद वह शाखा पहुँचेगा।
होटल के कमरे में पहुंचकर जयन्त काफी परेशान लग रहा था। वह लड़की के बारे में ही सोच रहा था। उसकी हैंडराइटिंग, उसकी आवाज, चलने का अंदाज सब कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। उस लड़की का अपना चेहरा छुपाना सब कुछ बड़ा अजीब सा लग रहा था। वह याद करने का प्रयास करने लगा कि लड़की कहीं उसकी परिचित तो नहीं ? आखिर कौन है वो लड़की ? (क्रमश)
शेष अगले अंक में.....
किशोरी रमण
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Very nice...
कहानी जानदार है। भावनाओं को झकझोर देने वाली।अगले अंक का बे करारी से इंतजार है।
कहानी में उत्सुकता बनी हुई है।