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शरमाने लगें है

Writer: Kishori RamanKishori Raman

जिन्हे घुघरूओं की खनक से चिढ़ थी

वे   ही  आज  कोठे  पे  जाने  लगे  है

जो सभ्यता, संस्कृति की देते थे दुहाई

अब खुद ही रास लीला रचाने  लगे है


जो क्रांतिका मतलब समझते थे माफी

अब खुद को क्रांतिकारी बताने लगे है

जिन्होंने धर्म को बनाया सत्ता की सीढी

अब दूसरेधर्मो पे ऊंगली उठाने लगे है


नही  था  जिन्हे  लोकतंत्र  पर भरोसा

वे  संविधान  की  कसम  खाने लगे है

जो  देते  थे  हर  दम  बापू  को  गाली

अब  वे  गांधी  जयंती  मनाने  लगे  हैं


भूल  गए  वे  सबके विकास का नारा

अब  चंद  लोग  ही  उन्हें  भाने लगे है

जबसे फूटा  है उनके झूठका  गुब्बारा

वे जुमलो  के सरदार नजर आनेलगे है


जो मिटाने चले थे किसी  का इतिहास

अब खुद हासिए पर नजर आने लगे है

हां, रंग बदलने  में वे है बड़े ही माहीर

अब उनसे गिरगिट भी शरमाने लगे है



किशोरी रमण



आप सब खुश रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें

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1 comentário


verma.vkv
verma.vkv
19 de dez. de 2024

सुंदर रचना।

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