यह बिल्कुल सत्य है कि-" विचार कभी नहीं मरते "
शरीर तो नश्वर है। जो जन्मा है उसे मरना ही है। पर ये विचार ही है, जो कभी नहीं मरते। नाथूराम गोडसे ने 75 साल पहले आज के ही दिन यानी 30 जनवरी 1948 को बापू की हत्या कर दी थी। लेकिन उसे क्या हुआ ? आज भी लोगों के विचारों में गाँधी जी जिंदा हैं। जब कोई हाड मांस के मानव से विचारों में तब्दील हो जाता है तो- उन विचारों की हत्या नहीं की जा सकती।
आज पूरा विश्व उनके विचारों को, उनके सत्य, अहिंसा और शांति के दर्शन को मानता है। विश्व में जब भी युद्ध होते हैं, अशान्ति होती है, सब आशा की नजरों से गाँधी जी और उनके गाँधीवाद को देखते हैं। यानी आज उनके विचार देश काल में सीमित ना होकर सीमाओं से परे हैं। हाँ यह सही सही है कि युद्ध को चिंगारी देने वाले पश्चिमी देश दोमुहाँ व्यवहार करते हैं। हमारे देश में भी भय,भूख और बेरोजगारी से बेहाल जनता की मदद करने की बजाय कुछ लोग नफरत और बाँटने की राजनीति कर रहे हैं। देशभक्ति की अपनी परिभाषाएं गढ़ रहे हैं। वे मूलभूत समस्याओं से लोगों का ध्यान भटका कर पूरी मानव जाति को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। आज जबकि संपूर्ण विश्व बाजारवाद की दौड़ में शामिल हो चुका है, लालच और नफरत की परिणिति युद्ध के रूप में हो रही है, गाँधी जी के विचार और भी प्रासंगिक होते जा रहे हैं। उनके सहिष्णुता, प्रेम, मानवता, भाईचारे जैसे उच्च आदर्शों को और भी फैलाने की जरूरत महसूस हो रही है। गाँधी जी धर्म और नैतिकता में अटूट विश्वास रखते थे। उनके लिए धर्म, प्रथाओं, आडम्बरों की सीमा में बंधा हुआ नहीं वरन आचरण की एक विधि थी। गाँधी जी साधन और साध्य दोनों की शुद्धता पर बल देते थे। उनके अनुसार साधन और साध्य के मध्य बीज और पेड़ के जैसा संबंध है। एक दूषित बीच होने की दशा में एक स्वस्थ पेड़ की कल्पना करना बेकार है।
गाँधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है बल्कि उसमें पारंपरिक और आधुनिकता का मेल भी है। गाँधी जी ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ छुआछूत उन्मूलन, हिंदू मुस्लिम एकता, चरखा और खादी को बढ़ावा, ग्राम स्वरोजगार का प्रसार, प्राथमिक शिक्षा और पारंपरिक चिकित्सा को बढ़ाने का काम साथ साथ किया। उनके सत्य के प्रयोग ने आम जनता में यह भावना भर दी कि सत्य की सदा जीत होती है। सही रास्ता सत्य का ही है।
हाँ, आज के समय में एक तरफ तो लोगों में गाँधी जी के प्रति असीम श्रद्धा है, जनमानस उन्हें पूजता है वहीं दूसरी तरफ एक विचित्र बात पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रही है। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी लोग उनके विचारों के प्रति, उनके द्वारा किए गए कार्यों के प्रति आलोचना का भाव रखने लगे हैं। किसी के गुण दोष पर आलोचना करना गलत नहीं है पर किसी विशेष मकसद से किसी का चरित्र हनन करना, उसके किए गए अच्छे कार्यों को खारिज कर देना हमारी अज्ञानता को दर्शाता है। निश्चित ही आज के वे तथाकथित बुद्धिजीवी जो उस ऊंचाई तक नहीं पहुँच सकते जिसे गांधी जी ने हासिल किया था तो वे कुंठा का शिकार हो उनकी आलोचना करते हैं। उनके द्वारा खींची गई लकीर से दूसरी बड़ी लकीर खींच पाने में असमर्थ लोग उनके लकीर को ही छोटा करने पर तुले हैं।
हम यह भूल जाते हैं कि उनका नाम पूरे विश्व के मानस पटल पर इतना गहरा है कि कोई भारत का उल्लेख उनके नाम से किनारा करके नहीं कर सकता। नाथूराम गोडसे ने भले ही उसकी हत्या कर दी हो पर गाँधी जी न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में आज भी अमर है और आगे भी रहेंगे।
आज हमें अगर देश, समाज और इस दुनिया को बचाना है तो गाँधी जी के विचारों को न सिर्फ बचाना होगा बल्कि उसे अपनाना भी होगा,उनके बताए रास्ते पर चलना भी होगा।
"शहीद दिवस" के अवसर पर बापू को शत शत नमन एवं अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
किशोरी रमण
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बापू को शत शत नमन
सत् सत् नमन.
शहीद दिवस पर बापू को शत शत नमन।