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संस्मरण " आलू-चोर "

Writer: Kishori RamanKishori Raman

अभी जब कड़ाके की ठंड पड़ रही है तो अपना गाँव और बचपन याद आ रहा है। हालाँकि यहाँ शहर में घर को गर्म रखने के सारे साधन मौजूद हैं पर गाँव की ज़िंदगी का एक अलग ही मजा है। पुआल के गद्दों पर सोना, सुबह शाम गली में अलाव तापना और चुपके चुपके बोरसी में आलू पकाना और हाँथ सेकना आज भी खूब याद आता है। दादी के लिए रोज "बोरसी" भरी जाती थी। शाम को जलाए गए बोरसी में दूसरे दिन सुबह आठ नौ बजे तक आग रहता था। दादी सुबह का काम निबटा कर सात बजे के बाद ही बोरसी सेंकती थी। मेरी दादी थोड़ी कड़क स्वभाव की थी। उन्होंने बच्चों को बोरसी सेकने की सख्त मनाही कर रखी थी। उनका मानना था कि एक तो बोरसी की आदत बच्चों को आलसी बनाती है दूसरे बच्चें बोरसी को बेतरतीब ढंग से खोद कर उसकी आग को बुझा देते है। सर्दी का मौसम, खासकर दिसंबर के आखरी सप्ताह और पूरा जनवरी का महीना हम स्कूली बच्चों के लिए तो वैसे भी मौज मस्ती का समय होता था। दिसंबर के मध्य में वार्षिक परीक्षा, फिर दिसंबर के अंत मे रिजल्ट और फिर नए साल में नई कक्षा, नई पुस्तके, बस अपने तो मजे ही मजे होते थे। घर वाले भी पढ़ने के लिए दबाव नही बनाते थे। सही ढंग से पढ़ाई तो सरस्वती पूजा के बाद से ही शुरू हो पाती थी। जाड़े में तो वैसे भी सुबह उठने का मन नही करता है और जब स्कूल जाना भी नही हो तो क्या कहने। माँ दो बार मुझे उठ कर मुहँ हाँथ धोने को कह चुकी थी। अतः न चाहते हुए भी उठा और माँ द्वारा सर और कानों को ढकने के लिए बांधी गई गाती को खोलकर फेंका। फिर मै बरामदे में आया। बरामदे में दादी जी की खाट तो खाली था पर उनकी बोरसी वही पड़ी हुई थी। मैंने अगल बगल देखा और वहाँ किसी को न पाकर थोड़ी देर बोरसी में हाँथ सेकने का निश्चय किया। बोरसी की सतह पर आग की तपिश कम थी। नीचे की आग को ऊपर लाने के लिए मैं कई बार दादी को बोरसी को खोरते देख चुका था। मैंने भी खोरने के लिए बोरसी में हाथ लगाया। तभी मेरी ऊँगली किसी गोल वस्तु से टकराई। मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि वे आलू थे। पके हुए आलू। उनसे सोंधी सोंधी खुशबू आ रही थी। मैंने इधर उधर देखा। वहाँ कोई नही था। मैंने जल्दी जल्दी बोरसी की आग को और कुरेदा तो दो और पके आलू मिले। मैंने उन आलुओं को अपने पॉकेट में डाला और गली में आ गया। गरम आलूओं की खुशबू जब बर्दाश्त नही हुआ तो उन्हें बिना मुहँ धोये ही एक एक कर खा गया। आलू खाने के बाद जब वापस घर आया तो देखा कि दीदी बार बार बोरसी का चक्कर लगा रही है और आग तापने के बहाने चुपके चुपके आलू खोज रही है, पर आलू हो तब न मिले। तभी बोरसी तापने के लिए दादी आई। बोरसी की आग तो बुझ चुकी थी और दादी इसके लिए दीी द को झाड़ लगा रही थी। एक तो आलू भी गया और ऊपर से इतनी डांट, दीदी का चेहरा देखने लायक था। दूसरे दिन मैं जान बूझ कर जल्दी उठा और बोरसी से पके आलू खोज कर निकाल लिया। फिर घर के बाहर आया। आज कागज की पुड़िया में नमक भी साथ लाया था। नमक के साथ पके आलू को खा कर मजा ही आ गया। जब मै घर वापस गया तो दीदी को अपनी ओर गुस्से से घूरते पाया। शायद उसे शक हो गया था कि मैं ही बोरसी से आलू निकालता हूँ। पर मैं निश्चित था कि दीदी किसी को बतायेगी नही वरना उसकी भी चोरी पकड़ी जायेगी। तभी दादी जी अपनी बोरसी को बुझी पा दीदी को डांटने लगी। दीदी लाख सफाई दे रही थी कि उसने बोरसी को हाँथ भी नही लगाया है पर दादी इसे मानने को तैयार नही थी। तीसरे दिन मैं फिर थोड़ा जल्दी उठा और बरामदे मे आया। बरामदे में दादी नही थी। उनकी खाट दीवाल के सहारे खड़ी थी और नीचे बोरसी पड़ी थी। किसी को वहाँ न पाकर मैं बोरसी के पास बैठ कर जल्दी जल्दी आलू खोजने लगा। एक पका आलू नजर आया। उसे हाथों में उठाया जो काफी गरम था। जब हाथ जलने लगे तो सोंचा इन्हें पैंट की जेब मे रख लूँ। तभी भूचाल आ गया। दीवाल के सहारे खड़े खाट की ओट से दादी और दीदी बाहर निकली। घबराकर साक्ष्य मिटाने के ख्याल से आलू को मैंने अपने मुहँ में डाल लिया पर वे इतने गर्म थे कि मुझे उन्हें जल्दी से उगल देना पड़ा। हाँ, इस चक्कर मे मेरे मुहँ भी जल गए। और फिर शुरू हुआ दादी के हाथों धपा- धप पिटायी। दीदी घर के सारे लोगों को इकठ्ठा कर ली मानो कोई बड़ा चोर पकड़ा गया हो। बोरसी मेंआलू डालने का इल्जाम भी मुझ पर ही लगा। और जब मैं मार खा रहा था तो दीदी के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान थी मानो वह कह रही हो कि मैंने अपना बदला ले लिया। पर बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई। दीदी ने मुझे "आलू-चोर" कह कर चिढाना शुरू कर दिया और उसकी देखा देखी मेरे दोस्त भी मुझे "आलू-चोर" कहने लगे। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




 
 
 

3 Comments


Unknown member
Feb 08, 2022

bahut hi sundar kahani .....

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sah47730
sah47730
Jan 19, 2022

वाह! बचपन की शरारतपूर्ण मजेदार कहानी ।

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verma.vkv
verma.vkv
Jan 19, 2022

वाह, बहुत रोचक संस्मरण।

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