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संस्मरण " धन्य होती है माँ "

  • Writer: Kishori Raman
    Kishori Raman
  • Jan 7, 2022
  • 4 min read


आज 8 जनवरी है, मेरी माता जी की पुण्यतिथि। आज से 9 साल पहले, 5 जनवरी को पिता जी का और इसके तीन दिनों के बाद 8 जनवरी को माता जी का स्वर्गवास हुआ था। आज अपने स्वर्गवासी माता पिता को मैं अपने और सभी परिवार वालो की तरफ से नमन करता हूँ, भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित हूँ। आज जो कुछ भी हम हैं वो अपने माता पिता के आशीर्वाद एवं पुण्य-प्रताप से ही है। हमें आपके मार्गदर्शन और आशीर्वाद की हमेशा ही जरूरत रहेगी। आज प्रस्तुत है एक संस्मरण " धन्य होती है माँ " चूँकि गांव में प्राइमरी स्कूल ही था अतः तीसरी कक्षा पास करने के बाद चौथी कक्षा में एडमिशन के लिए बगल के गाँव मे स्थित बुनियादी मध्य विद्यालय ओन्दा में मेरा नाम लिखवाया गया। उस समय उस स्कूल की ख्याति आस-पास के गाँव में फैली हुई थी क्योंकि वहाँ बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ बागवानी, सूत की तकली से कताई और अन्य बुनियादी बातों की शिक्षा भी दी जाती थी। गाँधी जी के विचारों पर आधारित इस स्कूल में सभी बच्चों को खादी का वस्त्र पहनना अनिवार्य था। सर के ऊपर गाँधी टोपी भी लगानी पड़ती थी। अन्य बच्चों की तरह मुझे भी बागवानी के लिए एक छोटी सी क्यारी अलॉट हुआ था। मैंने अन्य साथियों की देखा- देखी उस क्यारी में लहसुन लगाया था। जब बाग़वानी का क्लास होता था तो हम सब स्टोर रूम से कुदाल, फावड़ा, पानी पटाने के लिए बाल्टी इत्यादि लेते थे और अपना काम करने के बाद वापस उसी स्टोर रूम में रख देते थे। चूँकि बच्चे ज्यादा थे और औजार या बाल्टी कम अतः हम सब बच्चे दौड़कर स्टोर रूम में पहले पहुँचने का प्रयास करते थे ताकि अच्छे वाले औजार और बाल्टी ले सके। जो पिछड़ जाता था उसे टूटी औजारों या फूटी हुई बाल्टी से काम चलाना पड़ता था। फूटीं बाल्टी से पास वाले गढ़े से पानी लाने के दौरान रास्ते में ही आधा पानी गिर जाता था और आधा पानी ही हम क्यारी में डाल पाते थे। एक दिन मैंने देखा कि मेरे लहसुन वाली क्यारी की मिट्टी में दरार पड़ रहा है इसका मतलब था उसे सिंचाई की जरूरत है। उस दिन मैंने निश्चय किया कि जब बागवानी का क्लास होगा तो मैं उसमे पानी डालूँगा। जब घंटी बजी तो और बच्चों की तरह मैं भी स्टोर रूम की तरफ दौड़ पड़ा ताकि सही वाली बाल्टी उठा सकूँ। स्टोर रूम में बहुत सारे कबाड़ बिखरे पड़े थे। तभी मेरा पैर एक नुकीली चीज पर पड़ा। और मैं दर्द से कराह उठा। झुक कर देखा तो पाया कि एक बड़ी सी कील मेरे जूतों को चीरते हए मेरे पैरों में धँस गई है। मैं दर्द से कराह उठा। किसी तरह लड़खड़ाते हुए पैर से उस कील को बाहर निकाला। फिर लड़खड़ाते हुए वहाँ से बाहर आया। मेरे साथियों ने पहले कुकरोधे की पत्तियों का रस घाव पर लगाया और जब छुट्टी हुई तो किसी तरह से लंगड़ाते हुए दो किलोमीटर का रास्ता तय कर घर पहुँचा। माँ को जब मालूम हुआ तो वो घबरा गई। उसने पहले घाव को पानी से धोया, फिर देसी इलाज और सेंक देने से दर्द थोड़ा कम हो गया। लेकिन जब अगली सुबह सोकर उठा तो पैर काफी फूल गया था तथा मुझसे चला नही जा रहा था। अगले सप्ताह से वार्षिक परीक्षा होने वाली थी। अगर यही हाल रहा तो भला परीक्षा कैसे दे पाऊँगा ? क्योंकि जाने के लिए कोई सड़क नही थी। हम लोग खेतो से होते हुए पैदल ही चलकर स्कूल आते जाते थे। गाँव में कोई डॉक्टर नही था जिसे दिखाया जा सके । ओन्दा गाँव मे ही एक हकिम जी थे जो अंग्रेजी दवा भी चलाते थे और जिनकी काफी ख्याति थी। उनसे ही दिखाने की सलाह लोगो ने दी। पर मुश्किल ये था कि वहाँ तक मुझे ले कैसे जाया जाए ? क्यो की वहाँ तक की दूरी पैदल ही तय करनी थी और मैं चलने में असमर्थ था। घर मे या पास पड़ोस में कोई दूसरा व्यक्ति था नही जो मुझे गोद मे या पीठ पर उठा कर दो किलोमीटर दूर डॉक्टर के पास ले जा सके। फिर माँ ने निर्णय लिया कि मुझे अपने गोद में उठाकर डॉक्टर के पास ले जाएगी | रास्ते में थोड़ी दूर चलने के बाद ही जब वह हाँफ जाती तो थोड़ी देर के लिए रूकती, अपने साँसों को ठीक करती है और फिर मुझे कभी गोद में तो कभी पीठ पर उठाकर चल देती। इस तरह हम डॉक्टर के पास पहुँचे। डॉक्टर साहब ने देखने के बाद खाने की कुछ दवाई दी । दवाई ने जादू जैसा असर किया। तीसरे दिन मेरे घाव पक गए उससे बहुत सारा मवाद निकला। फिर धीरे-धीरे घाव भरने लगा और मैं चलने लायक हो गया। ये घटना जब भी मुझे याद आती है तो मेरा मन माँ के चरणों मे नतमस्तक हो जाता है और मुहँ से बस यही निकलता है --धन्य होती है माँ और धन्य होती है उनकी ममता। और अंत मे एक शायर की चंद पंक्तियों को दुहराना चाहता हूँ। फना कर दो अपनी ज़िंदगी अपनी माँ के कदमो में यारो दुनिया मे यही एक मोहब्बत है जिस में बेवफ़ाई नहीं मिलती | किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com




3 commentaires


Membre inconnu
08 févr. 2022

sadar naman.....

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sah47730
sah47730
08 janv. 2022

माता पिता देव तुल्य होते हैं। उनके उपर तो देव ही हैं। शत शत नमन।

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verma.vkv
verma.vkv
08 janv. 2022

शत शत नमन।

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