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संस्मरण.... मेरी पहली रैगिंग

Writer's picture: Kishori RamanKishori Raman


आज मैं आप सबों को अपना एक संस्मरण सुनाने जा रहा हूँ जो राँची एग्रीकल्चर कॉलेज में हुई मेरी पहली रैगिंग से संबंधित है। आप सोचेंगे कि इसमें सुनाने लायक बात क्या है ? जो कॉलेज में एडमिशन लेते हैं उनकी रैंगिंग तो होती ही है । पर मेरी रैंगिंग इस लिए विशेष है कि वह मेरे कॉलेज में एडमिशन लेने के पहले ही हुआ था। अपने उसी संस्मरण को में आज आप सबो के साथ साझा कर रहा हूँ। यह 1977 का वाकया है। उस समय मैं पटना में रहकर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा था। जैसा कि अक्सर होता है मेडिकल कम्पटीशन के फॉर्म के साथ हमलोग एग्रीकल्चर और वेटरिनरी कॉलेज में एड्मिसन हेतु होने वाली परीक्षा का फॉर्म भी भरते हैं। अब इसे इतेफाक ही कहेंगे कि एग्रीकल्चर वाली प्रतियोगिता परीक्षा पहले आयोजित हो गई, और मेरा सेन्टर राँची एग्रीकल्चर कॉलेज में पड़ा। बड़ा धर्म संकट हो गया। जाऊं ? कि ना जाऊं ? क्योंकि कुछ ही दिनों के बाद मेडिकल वाली परीक्षा भी होने वाली थी। राँची जाना और आना, कम से कम दो दिन तो बर्बाद होने ही थे।निर्णय नही कर पा रहा था कि कम्पटीशन दूँ या इसे छोड़कर मेडिकल वाले कम्पटीशन पर ध्यान केंद्रित करूँ। बहुत सोच विचार के बाद हमने निर्णय लिया कि हम रात की स्टेट बस से पटना से राँची जाएंगे और सुबह डायरेक्ट सेंटर पर पहुंचेंगे। फिर परीक्षा देकर वापस रात में ही बस से पटना आ जाएंगे। और इस तरह परीक्षा के एक दिन पहले शाम को मैं पटना के गांधी मैदान बस डिपो से रांची के लिए चलने वाली बस में सवार हो गया। जुलाई का महीना था औऱ जबरदस्त वारिश हो रही थी।बस रात 9 बजे खुली और नवादा तक ठीक-ठाक पहुँच गई। नवादा से थोडा आगे रोड पर ही फिसलन के कारण एक ट्रक पलट गया था जिससे आधा रोड जाम हो गया था। आधे बचे रोड से पुलिसवाले बारी-बारी से दोनों तरफ के ट्रैफिक को निकाल रहे थे। हमारे बस का कंडक्टर चिंतित होते हुए बोला - पता नहीं कितनी देर लगेगी यहाँ से पार निकलने में ? एक घंटे बाद जब हमारे तरफ की बारी आई तो हमारी बस आगे बढ़ी। हमारे आगे आगे एक हेवी लोडेड बड़ा सा ट्रक था जो लोड के कारण बहुत धीरे धीरे चल रहा था और फिसलने के डर से थोड़ा भी बायें दाएं नहीं जा रहा था।हमारे बस के ड्राईवर ने कंडक्टर से कहा कि इस ट्रक के करण जरूर जाम लगेगा। अगर इसके पीछे रहेंगे तो हम भी फसेंगे। उसने कुछ सोंचा और बस को कच्ची सड़क पर उतार दिया और रॉन्ग साइड से उस ट्रक को ओवरटेक करने लगा। कच्ची सड़क पर उतरते ही हमें लगा कि हमारी बस फिसल रही है। कई लोगों की तो चीखें निकल गई । पर ड्राइवर काफी होशियार था। उसने बस को उस ट्रक से आगे निकाल लिया और फिर तो बस अपनी स्पीड में आगे बढ़ने लगी। इस तरह सुबह आठ बजे मैं राँची बस स्टैंड में पहुंच गया। फिर जल्दी से मैं वहां से ऑटो पकड़ कर फिरायालाल पहुँचा और वहां से पिठौरिया जाने वाली मिनी बस में सवार हुआ । और इस तरह से मैं सही टाइम पर अपने सेंटर पर पहुंच गया। एग्जाम सही से निबट गया। अब चिन्ता थी तो जल्दी से जल्दी बाहर निकल राँची के लिए और फिर वहाँ से पटना के लिये बस पकड़ने की। क्योंकि मुझे मालूम था कि अगर लेट हुआ तो बस में जगह नही मिलेगी। फिर एक दिन और बर्बाद करना पड़ेगा । मैं तेज कदमो से एग्जामिनेशन हॉल से बाहर आया और पोर्टिको में पहुँचा। अभी इक्का-दुक्का लोग ही बाहर निकल रहे थे। अभी मैं पोर्टिको में ही पहुँचा था कि एक व्यक्ति सामने आ गये और उन्होंने पूछा, एग्जाम कैसा रहा ? मुझे जल्दी थी इसलिए मैंने टालने वाले अंदाज में कहा ठीक ही रहा । मैं जब आगे बढ़ा तो वो ब्यक्ति भी मेरे साथ चलते रहे और पूछा , इस बार फिजिक्स का सवाल कैसा था ? ज्यादा टफ तो नहीं था ? । मैं उन्हें टालना चाहता था लेकिन वह तो ऐसे थे कि बस चिपके ही जा रहे थे । उन्होंने प्रश्न पेपर देखने को मांगा तो मैंने कहा, भाई मुझे जल्दी है। पर वह फिर बोले 2 मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा। मैं उसे देखकर तुरंत दे दूंगा । मेरे लोग भी यहाँ कंपटीशन दे रहे हैं। मैं जानने को उत्सुक हूँ कि इस बार प्रश्न कैसा आया है ? तभी मैंने देखा कि उनके साथ दो तीन और लोग भी आ गए हैं और वह भी उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं। वे कहने लगे की चलते चलते ही इसे देख लूँगा। तब मजबूरन मुझे प्रश्न पेपर देना पड़ा। वे सब भी मेरे साथ चल रहे थे और मुझसे बात भी कर रहे थे। तभी मैंने देखा कि वे सब कॉलेज गेट की तरफ जाने वाली सड़क पर ना जाकर पोर्टिको से बायें वाली सड़क पर मुड़ गए हैं। मैंने उससे पूछा भी आप मूझे उधर क्यों ले जा रहे हैं ? मुझे तो कॉलेज गेट की तरफ जाना है। इसपर वे बोले थोड़ा किनारे होकर प्रश्न पेपर देखते हैं। पर वे रुके नही और मजबूरी बस मैं भी उनके साथ चलता रहा। तभी थोड़ी दूर सामने एक लाइन से कुछ बिल्डिंगें नजर आने लगी और मैंने अंदाजा लगाया कि वह सब कॉलेज हॉस्टल है। अब मेरा माथा ठनका। मुझे लगा कि मैं जाल में फँस चुका हूँ। मेरा प्रश्न पेपर जिनके पास था वे आगे चलते ही जा रहे थे और उसके पीछे में तीन चार लोगों से घिरा मैं भी चल रहा था। यह तो मैंने सुन रखा था कि जब मेडिकल कॉलेज या इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन होता है तो फ्रेशर्स का सीनियर लोग रैगिंग करते हैं, पर एडमिशन के पहले इस तरह से भी रैंगिंग होगी इसका अंदाजा मुझे नहीं था। मैंने एक बार और उन लोगों से रिक्वेस्ट किया और उन्हें बताया कि मैं कल रात को ही पटना से चला हूँ और सुबह से मैंने कुछ भी खाया नहीं है। इस पर एक व्यक्ति ने कहा कि कोई बात नहीं, थोड़ी ही देर तुमसे बात करेंगे और फिर तुम्हें कैंटीन में नास्ता भी करायेगे। तुम चिंता मत करो। और इस तरह मैं हॉस्टल नंबर तीन के सामने पहुँच गया। इन लोगों ने तैयारी पहले से कर रखी थी क्योंकि एक कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। बाहर भी कुछ लोग खड़े थे जो मुझे देखते ही आपस में फुसफुसाने लगे कि एक और मुर्गा पकड़ में आया है। उनकी बातें सुनकर लगा कि और भी मुर्गा पहले से पकड़ में आया हुआ है। जब मैं कमरे में घुसा तब मुझे पता चला कि मुझसे पहले भी एक और व्यक्ति वहाँ है जिसकी रैंगिग हो रही है। वह सामने के टेबल पर मुर्गा बना हुआ था और उसको कुकडु कू बोलने के लिए कहा जा रहा था। और वह कुकडु कू बोल भी रहा था । मैं खड़ा अभी कुछ सोच ही रहा था कि एक व्यक्ति मेरे पीछे की ओर देखते हुए चिल्लाया अबे कौआ तू क्यों शांत है ? और फिर मेरे पीछे से -कांव कांव की आवाज आने लगी। मैंने घूम कर देखा तो एक लड़के को अलमीरा पर बैठे पाया जो कौवा की आवाज निकाल रहा था। तो इस तरह से उस कमरे में हम तीन मुर्गे थे। मुझसे एक बॉस ने फरमाइश की , तुम गाना गाओ। मैंने उनसे कहा कि मुझे गाना नहीं आता, हाँ आप कहे तो मैं आप सबको कविता सुना सकता हूँ। इस पर एक बॉस ने पूछा क्या तुम कवि हो ? मैंने कहा, बस थोड़ा बहुत तुकबंदी कर लेता हूँ। और मैं बॉस की फरमाइश पर कविता,शेरो शायरी और चुटकुले सुनाता रहा। करीब आधे घंटे तक यह सिलसिला चला। फिर उनमें से एक जो शायद सीनियर बॉस थे, कहा- अब बस करो। इन तीनो को कैंटीन में ले जाकर नास्ता कराओ और कॉलेज गेट पर ले जा कर बस में बैठा दो। मैं और बाकी के दो लड़के उनके साथ कैंटीन जाने के बजाय सरपट कॉलेज गेट की तरफ़ भाग लिए। और कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मेडिकल में तो मैं वेटिंग लिस्ट में रह गया लेकिन एग्रीकल्चर कॉलेज में मेरा सिलेक्शन हो गया। जब मैं एडमिशन के लिए राँची एग्रीकल्चर कॉलेज आया तो पहले ही दिन जब मैं काउंटर पर एडमिशन की फॉर्मेलिटीज पूरा कर रहा था तो कुछ बॉस लोगों ने मुझे पहचान लिया । और आपस में ही बात करने लगे कि कवि ने हम्मरे ही कॉलेज में एडमिशन लिया है।


अब मैं अंत में आप सब को दो बात बताना चाहता हूँ। पहला कि जिन तीन लोगों का उस दिन रैगिंग हुआ था उसमें दो लोग, मैं और मो. असगर जमाली दोनों ने क्वालीफाई कर राँची एग्रीकल्चर कॉलेज में एडमिशन लिया था। और दूसरा जब मैं कॉलेज गेट पर बस का इंतजार कर रहा था तो पिठौरिया के तरफ से एक बस आयी जो खचाखच भरी हुई थी। खलासी ने मुझे बस के ऊपर चढ़ने के लिए कहा, पर मैंने मना कर दिया। मैं किसी तरह से बस के अंदर घुस गया। हाँ, हमारे कुछ साथी बस के ऊपर भी सवार हो गए। जब हमारी बस कांके चौक पहुंची तो जोरों की बारिश शुरू हो गई। छत पर बैठे कुछ लोग के पास छाता था। उन्होंने छाता लगा लिया। जब वह बस पोटपोटो नदी के पुल को पार कर रही थी जिसपर ऊपर में लोहे के गाटर लगे थे। जो लोकल थे और उस पुल से वाकिफ थे या जिन्होंने उसे पहले देख लिया उन्होंने तो अपना सर झुका लिया। लेकिन जिन्होंने छाता लगा रखा था और बाहर का होने के कारण जिन्हें पहले से पुल के बारे में जानकारी नही थी वे उससे टकरा गये। उनमें से पांच लोग का सर फट गया था। उनकी मरहम पट्टी राँची में ही हो सकी थी। उन घायलों में एक मेरा भी दोस्त था जो पटना में मेरे साथ लॉज में रह कर तैयारी कर रहा था। चूँकि मैं बस के अंदर था अतः इस दुर्घटना से बच गया था। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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3 Comments


sah47730
sah47730
Dec 23, 2021

वाह! सुन्दर अनुभव प्राप्त किए। संयोग अच्छा था कि बस की छत पर नहीं चढ़े।

सही निर्णय सही समय पर लेना ही बुद्धिमानी है।

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Unknown member
Dec 23, 2021

Bahut hi Sundar kahani hai.. ..

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verma.vkv
verma.vkv
Dec 23, 2021

वाह, बहुत मजेदार घटना।हमलोग भी रैगिंग का सामना किये थे।

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