
एक बार की बात है कि गौतम बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनन्द के साथ नदी के किनारे टहल रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक युवा राजकुमारी पालकी के पास खड़ी है। वह काफी चिंतित दिख रही थी। बुद्ध उसके पास गये तब उन्हें पता चला कि वह पास के राज्य से लौट रही है। यह यात्रा थका देने वाली थी इसलिए पालकी को ढोने वाले सेवक थक गए थे। थकान के कारण पालकी को ढो कर आगे ले जाना उनके बस से बाहर हो रहा था। लेकिन राजकुमारी को किसी खास अवसर के लिए महल जल्दी पहुँचना था इसलिए राजकुमारी चिंतित थी। बुद्ध ने फैसला किया कि वे राजकुमारी को मदद का प्रस्ताव देंगे। इस प्रस्ताव से राजकुमारी की परेशानी थोड़ी कम हो गई। बुद्ध ने राजकुमारी को पालकी में बिठाया और अपने शिष्य आनन्द के साथ पालकी को ढो कर काफी दूर तक ले गए। बुद्ध के इस उदारता से सेवकों को भी अपने को तरोताजा करने का अवसर मिल गया। जब सेवकों की थकान दूर हो गई तब उन्होंने राजकुमारी को महल पहुंचाने का भार अपने कंधों पर ले लिया।
इस तरह बुद्ध और उनके शिष्य आनन्द को राजकुमारी को अलविदा कहने का अवसर मिल गया। दोनों ने बड़े आदर के साथ राजकुमारी को प्रणाम कहा और अपने रास्ते चल पड़े। लेकिन राजकुमारी ने इस कार्य के लिए दोनों के प्रति किसी तरह का आभार नहीं दिखाया। बस उसने हाथ उठाकर अलविदा कह दिया। आनन्द राजकुमारी के इस बर्ताव से अंदर ही अंदर काफी नाराज थे लेकिन वह चुपचाप चल रहे थे इस उम्मीद में की बुद्ध इस पर कोई प्रतिक्रिया देंगे। मगर इसके विपरीत बुद्ध के चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी। इस खामोशी के साथ उनके चेहरे पर अपार शान्ति भी थी। इस बात से आनन्द और हैरान हुआ। अब चुप रहना उसके लिए मुश्किल होता जा रहा था। उसने नाराजगी भरे लहजे में कहा। वह हमारी सहायता के लिए थोड़ा तो आभार व्यक्त कर सकती थी। क्या आपको नहीं लगता की उस राजकुमारी को शिष्टाचार सिखाने की जरूरत थी। बुद्ध धीरे से मुस्कुरा कर बोले। आनन्द, किसी चीज से बहुत ज्यादा उम्मीद लगा लेना हमारे निराशा का कारण बन जाता है। आनन्द को यकीन नहीं हुआ कि बुद्ध ऐसा कैसे बोल सकते हैं। उसने कहा, हम उसे इतनी दूर तक ले कर आए हैं, कम से कम वह मुस्कुराकर हमें अलविदा तो कह सकती थी। क्या एक मुस्कान भी उसके लिए बहुत कीमती थी। मुझे सच में बहुत गुस्सा आ रहा है। आखिरकार हम उसे ढो कर इतनी दूर तक ले गए थे। बुद्ध ने जवाब दिया, मैं उस पालकी को घंटों पहले नीचे रख चुका हूँ लेकिन तुमने अभी भी उस बोझ को क्यों उठा रखा है ? बुद्ध कहते हैं कि सकारात्मक लोगों को भी नकारात्मक विचार आते हैं। पर वे खुद को उन विचारों के नियंत्रण में नहीं आने देते हैं। विचार मेहमान की तरह हैं, उन्हें आने और जाने दो।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि किसी चीज से बहुत ज्यादा उम्मीद लगा लेना हमें नकारात्मक सोच की ओर ले जाता है। कोई कितना भी सकारात्मक क्यों ना हो उसे भी नकारात्मक विचार आयेगें। बस उसे खुद को नकारात्मक विचारों के नियंत्रण में नहीं आने देना है।
किशोरी रमण
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Very nice.
बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद कहानी।