एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि गुरु जी, कृपया आप बताये कि सफलता का रहस्य क्या है ? वह कौन सी चीज है जिसकी प्राप्ति हो जाने पर लोग अपनी जिंदगी को सफल समझते है ? गुरु जी कुछ देर तक सोंचते रहे फिर गंभीर होकर बोले। वत्स, अगर तुम सचमुच ही सफलता का रहस्य जानना चाहते हो तो कल जरा जल्दी उठना। सूरज उगने के पहले तुम कुटिया के पास वाली नदी के तट पर आ जाना। वही मै तुम्हे सफलता का रहस्य बताऊँगा।
उस रात शिष्य को ठीक से नींद नही आई। सुबह वह जल्दी उठा और नदी के तट पर पहुँच गया। वह जानने को उत्सुक था कि गुरुजी सफलता के लिए जरूरी कौन से रहस्य का रहस्योद्घाटन करेंगे ? गुरुजी नदी के तट पर पहले से ही उपस्थित थे। शिष्य गुरुजी के पास पहुँचा और उनको प्रणाम किया। अब गुरुजी उसको लेकर नदी के किनारे वाले पत्थर पर पहुँचे। जब वे दोनों पत्थर पर पहुँचे तो अचानक गुरुजी ने शिष्य को तालाब में ढकेल दिया।
तालाब में गिरते ही वह शिष्य घबरा उठा। वह तैरने की कोशिश करने लगा। पानी में हाथ पैर मारने लगा। गुरुजी जानते थे कि वह तैरना नहीं जानता है फिर भी उन्होंने वैसा किया। शिष्य अब अपनी पूरी कोशिश करने लगा, अपना पूरा दमखम लगाने लगा, साथ ही साथ व चिल्लाने भी लगा- गुरु जी मुझे बचाइये। यह सब सुनकर बाकी शिष्यगण भी वहाँ पहुँच गए। अपने सहपाठी को डूबता देख उन सबो ने गुरु जी के सहयोग से उसे तालाब से बाहर निकाला।
वह शिष्य जोर जोर से सांस लेने लगा, फिर गुरु जी से बोला। गुरु जी, मैं तो सफलता का रहस्य आपसे जानना चाहता था। आपने क्यों किया ऐसा मेरे साथ ? आखिर मुझसे ऐसी क्या भूल हो गई थी ? गुरुजी ने कहा - देखो वत्स, जब तुम पानी में गिरे और डूबने लगे उस वक्त तुम्हारा सबसे जरूरी काम क्या था ? शिष्य ने कहा, मैं तैरने की कोशिश करने लगा, और जोर-जोर से सांसे भी लेने लगा। गुरु जी ने कहा- क्या असल में तुम तैरना जानते थे ? उसने कहा- नहीं गुरु जी। फिर गुरुजी ने कहा कि यह जानते हुए भी कि तुम तैरना नहीं जानते हो तुमने तैरने की कोशिश की। तुम जानते थे कि तुम बच नहीं पाओगे फिर भी तुमने अपना प्रयास जारी रखा क्योंकि उस समय तुम्हारा सबसे जरूरी काम किसी भी तरह अपनी जान बचाना था। इसके लिए तुमने अपनी पूरी शक्ति लगा दी। शिष्य ने कहा, हाँ गुरु जी।
गुरुजी ने कहा- यही सफलता का रहस्य है । लोग इसे जान कर भी अंजान रह जाते हैं। तुम्हारा एक और सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि कैसे भी कर के अपनी जान बचाना। तुम्हारा ध्यान एक पल के लिए भी कहीं नहीं भटका। तुम पूरी तरह एकाग्रचित्त हो गए थे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए।
शिष्य ने कहा, अब मैं समझ गया हूँ गुरु जी। उसने गुरु जी के चरणों को स्पर्श किया। गुरुजी ने उस शिष्य को गले लगाया और अन्य शिष्यों को भी बताया कि यही सफलता का रहस्य है। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति को एकाग्रचित्त रहता है उसे इस संसार की कोई भी शक्ति अपने लक्ष्य से भटका नहीं सकती।
किशोरी रमण
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very nice.....
प्रेरणादायक कहानी
Very nice motivational story..