
एक बार की बात है कि तथागत बुद्ध एक बृक्ष की छाया में बैठे अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे। तभी उन्होंने एक ब्यक्ति को देखा जो हाथ जोड़कर दूर खड़ा था। बुद्ध ने बड़े प्यार से उसे अपने पास बुलाया। वह ब्यक्ति बुद्ध के चरणों मे गिर पड़ा और बोला- मैं बहुत ही दुखी ब्यक्ति हूँ। मुझे अपने दुखों को दूर करने का उपाय बताएं।
बुद्ध ने उस व्यक्ति को अपने बैठाया और कहा कि तुम व्यर्थ में चिंतित हो रहे हो। सुख दुख हमेशा समान नहीं रहते। इस संबंध में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ। इसे ध्यान से सुनो।
किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बड़ा ही उदार एवं परोपकारी था। उसके दरवाजे पर जो भी आता था वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देता था और दिल खोल कर उसकी मदद करता था। एक दिन उसके यहाँ एक आदमी आया। उस आदमी के हाथ में एक पर्ची था और उसे वह बेचना चाहता था। उस पर्ची पर लिखा था .. सदा ना रहे..। भला इस पर्ची को कौन खरीदता ? पर उस सेठ ने उस पर्ची को खरीद लिया और उसे अपने पगड़ी के एक छोर पर बाँध कर रख लिया। नगर के कुछ लोग उस सेठ से ईर्ष्या करते थे। यह तो होता ही है कि अच्छे लोगों को भी कुछ लोग पसंद नहीं करते हैं। उन लोगों ने राजा के पास जाकर उसके खिलाफ कई बार शिकायत की। राजा ने बिना कुछ सोचे समझे या उसके बारे में पता लगाएं उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया। जेल में काफी दिन निकल गये। सेठ काफी दुखी था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ? एक दिन अचानक उसका हाथ अपनी पगड़ी पर गया। जब उसका हाथ अपने पगड़ी के गाँठ पर पड़ा तो उसे गाँठ में बँधे पर्ची का ख्याल आया। उसने गाँठ खोलकर पर्ची को निकाला और पढ़ा,-- सदा ना रहे। उसे पढ कर उसकी आँखें खुल गई। उसने मन ही मन कहा कि मैं दुखी भला किस बात के लिए हो रहा हूँ ? यह जो दुख है ये तो सदा नहीं रहेगा। इस विचार के आते ही वह जोर-जोर से हँसने लगा। वह बहुत देर तक हँसता ही रहा। जब चौकीदार ने उसे इस तरह हँसते सुना तो उसे लगा कि सेठ दुख से पागल हो गया है। उसने इसकी खबर राजा को दी। जब राजा को इसकी खबर लगी तो राजा उस सेठ से मिलने पहुँचा और पूछा कि असली बात क्या है ? सेठ ने राजा को सारी बातें बता दी। आदमी दुखी क्यों होता है ? जब कि सुख औऱ दुख जीवन के दो पहलू हैं। अगर आज सुख है तो कल हमे दुख भी देखना पड़ सकता है। और आज अगर दुख है तो कल सुख भी आएगा ही क्योंकि सब दिन एक समान नही रहते। राजा ने उस सेठ को जेल से निकलवा दिया। अब राजा को भी ज्ञान हो गया था कि सुख दुख सदा समान नही रहते।
यह कथा सुनकर उस दुखी व्यक्ति के मन का बोझ हल्का हो गया। उसने गौतम बुद्ध से आशीर्वाद लिया और अपने घर की ओर चल पड़ा।
किशोरी रमण
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bahut hi sundar kahani hai.....
Nice story...
रोचक और शिक्षाप्रद
बहुत सुंदर कहानी।