आज यहाँ इतना अंधेरा क्यो है
अलग सूरजअलग सबेरा क्यों है
हम सब तो हैं एक खुदा के बंदे
फिर आपस में मेरा तेरा क्यों है
जो जोंक बन गरीबो का खून चूसते है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
मेरे अपने भी हैं ऐसे कई लोग
जो अलग ही दुनियाँ मे जीते हैं
जिन्हें थी गैरबराबरी की शिकायत
आज वो छुप कर अमृत पीते हैं
जो मसीहा बन गरीबो के घर लूटते हैं
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते है
जिनका वादा था, इन्कलाब लाएगें
भेदभाव रहित नया समाज बनायेगें
लोगो ने थमाये थे हाँथों में मशाल
ये सोच कर कि वे रौशनी फैलाएंगे
घरों को जला कर जो हाथ सेकतें है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते है
जो पूछते थे कभी सत्ता से सवाल
दलाल बन उनके चरणोमें लोटते है
जो देते थे कभी संबिधान की दुहाई
आज वे संबिधान का गला घोटते हैं
जो अपने को क़ानून से ऊपर बूझते है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
अखण्ड भारत के नारों का क्या होगा
अब नफरत भरे विचारों का क्या होगा
देश बनता है इसमे रहने वाले लोगों से
उजाड़ दिए गए परिवारों का क्या होगा
जो हाथों में तिरंगा ले कर देश लूटते हैं
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
किशोरी रमण
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वाह, बहुत सुंदर कविता ।
Very nice.