कविता " सवाल पूछतें हैं "
- Kishori Raman
- Dec 20, 2022
- 1 min read
Updated: Dec 21, 2022

आज यहाँ इतना अंधेरा क्यो है
अलग सूरजअलग सबेरा क्यों है
हम सब तो हैं एक खुदा के बंदे
फिर आपस में मेरा तेरा क्यों है
जो जोंक बन गरीबो का खून चूसते है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
मेरे अपने भी हैं ऐसे कई लोग
जो अलग ही दुनियाँ मे जीते हैं
जिन्हें थी गैरबराबरी की शिकायत
आज वो छुप कर अमृत पीते हैं
जो मसीहा बन गरीबो के घर लूटते हैं
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते है
जिनका वादा था, इन्कलाब लाएगें
भेदभाव रहित नया समाज बनायेगें
लोगो ने थमाये थे हाँथों में मशाल
ये सोच कर कि वे रौशनी फैलाएंगे
घरों को जला कर जो हाथ सेकतें है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते है
जो पूछते थे कभी सत्ता से सवाल
दलाल बन उनके चरणोमें लोटते है
जो देते थे कभी संबिधान की दुहाई
आज वे संबिधान का गला घोटते हैं
जो अपने को क़ानून से ऊपर बूझते है
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
अखण्ड भारत के नारों का क्या होगा
अब नफरत भरे विचारों का क्या होगा
देश बनता है इसमे रहने वाले लोगों से
उजाड़ दिए गए परिवारों का क्या होगा
जो हाथों में तिरंगा ले कर देश लूटते हैं
वो ही आज मुझसे सवाल पूछते हैं
किशोरी रमण
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वाह, बहुत सुंदर कविता ।
Very nice.