top of page
  • Writer's pictureKishori Raman

" सिंघासन खाली करो कि ....."

तारीख--25 जून 1975 स्थान -- दिल्ली का रामलीला मैदान आयोजन--श्री जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी एवं आम जन की रैली। 73 साल के एक बूढ़े नौजवान ने जब राष्ट्रकवि दिनकर जी की कविता " सिंघासन खाली करो कि जनता आती है " को मंच से पढ़ा तो मैदान करतल ध्वनि से गूँज उठा। उपस्थित लोगों ने एक स्वर से अपने लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण जी का समर्थन किया। ये पंक्तियाँ इस जन आंदोलन का प्रमुख गीत बन गया। फिर तो श्रीमती इन्दिरा गाँधी के खिलाफ, उनके इस्तीफे की माँग पूरे देश मे आग की तरह फैल गई। कहावत है कि सत्ता जब डरती है तो कानूनों और ऐजेंसियों का दुरूपयोग कर अपना बचाव करती है। ठीक यही काम श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया। उसी दिन रात को 12:00 बजे पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। करीब 600 से ज्यादा विपक्षी नेताओं और बुद्धिजीवियों को जेलों में बंद कर दिया गया। आपातकाल के विरुद्ध जन आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन के नायक तो बहुत सारे थे पर प्रमुख नायक जयप्रकाश जी थे जिन्हें ना चाहते हुए भी जनता की माँग पर फिर से सक्रिय राजनीति में आकर आंदोलन की बागडोर संभालनी पड़ी थी। अब जरा इसके पहले के घटनाक्रम की चर्चा करते हैं। पहले गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन फिर बिहार के छात्र आंदोलन और फिर बिहार विधानसभा भंग करने की माँग के साथ जन आंदोलन धीरे धीरे बढ़ता ही गया। इन आंदोलनों को दबाने के लिए किये जा रहे सरकारी दमन ने आग में घी का काम किया। चारों ओर असंतोष और अनिश्चितता फैल गई। आंदोलन को भटकाने के लिए अपनाए जा रहे हथकंडे, हिंसा प्रतिहिंसा का रूप लेने लगे। तब जान माल के नुकसान और देश को अव्यवस्था से बचाने के लिए सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके एवं सर्वोदय आंदोलन से जुड़े महान स्वतंत्रता सेनानी और गाँधी जी के सच्चे अनुयाई श्री जयप्रकाश जी के पास छात्रों एवं बुद्धिजीवियों का दल पहुँचा। उनसे आंदोलन का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया। पहले तो उस बूढ़े बीमार शेर ने जिन्हें अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय जेलों में भयंकर यातनाएं दी थी और जिन्होंने हजारीबाग जेल से भागकर, भूमिगत होकर बिहार और नेपाल से स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था, नेतृत्व स्वीकार करने में अपनी असमर्थता जताई। पर लोगों के आग्रह, दैनिक जीवन में सुचिता और अनुशासन कायम करने और गाँधीवादी विचारों को फिर से प्रतिस्थापित करने हेतू वे इस अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व संभालने को राजी हो गए। 8 अप्रैल 1974 को 72 साल की उम्र में पटना के गाँधी मैदान के पास जब वे शांतिपूर्ण मार्च का नेतृत्व कर रहे थे, उन पर लाठीचार्ज किया गया जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गए। 5 जून 1975 को गांधी मैदान में बड़ी जनसभा हुई जिसमें आंदोलन की घोषणा हुई। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का गठन किया गया। लोग इससे जुड़ते गए और आंदोलन संपूर्ण क्रांति में परिवर्तित होता गया। संपूर्ण क्रांति का नारा उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार, जात-पात और अन्य सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा पाने के लिए दिया था। संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ हैं। 1) राजनीतिक क्रांति या सत्ता परिवर्तन। 2) आर्थिक क्रांति। 3) सामाजिक क्रांति। 4) सांस्कृतिक क्रांति। 5) बौद्धिक क्रांति। 6) शैक्षणिक क्रांति। 7) आध्यात्मिक क्रांति। यानी वे समाज को पूरी तरह बदलना चाहते थे। उनका मानना था कि केवल नेतृत्व परिवर्तन से न तो देश को गरीबी, भुखमरीऔर बेरोजगारी से छुटकारा मिलेगा और ना ही सामाजिक बदलाव आएगा और न ही देश सम्पन्न और विकाशशील राष्ट्र बनेगा। सबको छुआछूत, अमीरी गरीबी,जात-पात तथा धार्मिक भेदभाव और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई साथ-साथ लड़नी होगी। इसके लिए ही उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। छात्रों नौजवानों ने अपनी पढ़ाई छोड़ी और रोजगार धंधों में लगे युवकों ने अपने रोजगार-धंधो को छोड़कर आन्दोलन में शामिल होते गए। 18 जनवरी 1977 को आपातकाल वापस लिया गया और चुनाव की घोषणा की गई। तब उन्होंने इंदिरा गाँधी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व किया और नवगठित जनता पार्टी जिसमें लगभग सारे विपक्षी पार्टियाँ शामिल थी ने भारी जीत दर्ज की। इस तरह निरंकुश सत्ता का अंत हुआ और देश मे पहली बार गैर कांग्रेस सरकार बनी। जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय देवकी बाबू और माता का नाम श्रीमती फुल रानी देवी था। जब वे 9 साल के थे तो पढ़ाई के लिए पटना आ गए। अक्टूबर 1920 में उन का ब्याह प्रभावती जी के साथ हुआ। आगे की पढ़ाई के लिए वे विदेश गए। सन 1929 में जब वे अमेरिका से पढ़ाई कर लौटे तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। जब वे नेहरू जी के संपर्क में आये तो उनसे काफी प्रभावित हुए और वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये। कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ही पहले वे वामपंथी और फिर समाजवादी रुझानों से परिचित और प्रभावित हुए। सन 1932 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। फिर सन 1939 में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया जिसके कारण उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण वे गिरफ्तार किए गए और उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया। वहाँ से वे अपने कुछ साथियों के साथ फरार होकर अंग्रेजों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की। फिर वे भूमिगत रहकर आंदोलन का नेतृत्व करते रहे। जब देश आजाद हुआ तो सन 1948 में कांग्रेस के समाजवादी विचारों वाले लोगों के साथ समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। इसके अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र देव और महासचिव खुद वे बनाए गए। 19 अप्रैल 1954 को वे बिहार के गया में बिनोवा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़े। सन 1957 के अंत में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। सन 1965 में उन्हें मैगससे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चंबल के डाकुओं के आत्मसमर्पण में बिनोबा भावे और इनकी प्रमुख भूमिका रही। 23 मार्च 1979 को जब वे बीमार थे और जसलोक अस्पताल में भर्ती थे उनके देहान्त की झूठी खबर देश मे फैल गई और इसकी घोषणा लोकसभा में भी कर दी गई। इसके लिए बाद में सत्ता में बैठे लोगों को माफी भी मांगनी पड़ी। 8 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। सन 1999 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती है। इस अवसर पर हमसब उन्हें नमन करते है, अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैं। आइये हम संकल्प लें कि उनके बताए रास्तों पर चलेंगे और संपूर्ण क्रांति का उनका जो सपना अभी भी अधूरा है उसे पूरा करेंगे। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




64 views2 comments
Post: Blog2_Post
bottom of page