औरो की तरह मैं भी अक्सर ही सोचता हूँ कि अगर इस दुनिया मे सुख ही सुख होता तो कितना अच्छा होता। आखिर ईश्वर ने दुख बनाया ही क्यो ? और अगर सुख-दुख का चक्र चलता है तो सुख के समय इतनी जल्दी क्यो बीत जाते है ? और दुख के समय इतने लम्बे कैसे हो जाते है कि काटते ही नही कटते ?
यही सवाल तो पूछा था सूफी संत हसन से उसके शिष्य ने। हसन ने कुछ नही कहा, बस मुस्कुराये और अपने शिष्य को ले गये नदी के तट पर। वहाँ एक नाव बँधी थी। उन्होंने अपने शिष्य को उसमे बैठने का इशारा किया और खुद भी उस नाव में बैठ गये। उन्होंने नाव की रस्सी खोली और पतवार संभाली। फिर वो नाव चलाने लगे । लेकिन नाव आगे जाने के बजाय एक ही जगह गोल गोल घूम रही थी।
शिष्य बोला, यह आप क्या कर रहें हैं ? एक ही पतवार से नाव चला रहे हैं। ऐसे चलाने से ये कहीं आगे बढ़ेगी ?क्या दूसरी पतवार नही है ?
हसन ने कहा- वाह भाई वाह। तुम तो काफी होशियार हो। तुम यह तो जानते हो कि एक ही पतवार से नाव नही चलती लेकिन यह नही जानते कि सिर्फ सुख ही सुख हो तो जीवन की नाव भी नही चलेगी। सुख और दुख दो पतवार है, दोनो बारी बारी से चलानी पड़ती है तभी किनारे पहुँचोगे। हम दुख को स्वीकार नही कर पाते क्यो कि मन दुख से तारतम्य बिठा लेता हैं इसलिए उसकी पीड़ा बहुत मालूम होती है। वही मन फिर सुख की खोज करता है बिना यह समझे की सुख, दुख का ही एक रूप है। सुख हो या दुख दोनो को तटस्थ होकर देखें। ये दोनो लहरें हैं, आती है और जाती है। आप आनन्द में रहेंगें। जीवन का एक और राज है। यहाँ चीज़ें तभी मिलती है जब आप उन्हें नही खोजते।
किशोरी रमण
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Beautiful story....
वाह, प्रेरणादायक कहानी।
Nice
विचारों की सुन्दर ब्याख्या।