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  • Writer's pictureKishori Raman

आधी आबादी से भेद-भाव आखिर कब तक ?

Updated: Nov 30, 2021



कहने को तो आज हमने और हमारे समाज ने काफी प्रगति की है, पर समाज की आधी आबादी के साथ होने वाले लैंगिक भेद-भाव थोड़े कम अवश्य हुए है पर खत्म नही हुए हैं। हमने जीवन के हरे क्षेत्र में आधी आबादी यानी स्त्री के महत्व एवं योगदान को जाँचा और परखा है। फिर भी हम अपने विचारों में और अपनी प्राथमिकताओं में उन्हें वह स्थान नहीं दे पाए हैं जिनकी वे हकदार है। हम अक्सर ही आधी आबादी के साथ होने वाले भेदभाव या शोषण पर मूकदर्शक रहते हैं या कोरी लफ़्फ़ाजी कर अपने दायित्वों की इतिश्री मान लेते हैं। पर सच पूछा जाए तो हमारा ये पलायन और कुछ नहीं, अप्रत्यक्ष रूप से इन बुराइयों का समर्थन ही है। हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस भेदभाव को जायज ठहराते हैं। उन्हें इन कुरीतियों और बुराई के पीछे उपयुक्त तर्क नजर आता है। वे इनसबो को जायज ठहराने के लिए अजीब अजीब से तर्क और कुतर्क का सहारा लेते है। यहाँ मैं अपने दो पुराने अनुभव आप सबो से साझा करना चाहता हूँ। हालाँकि ये पुरानी और बहुत आम है पर आज भी इस तरह की घटनाएं होती है। आप सबो को भी कभी न कभी इस तरह के अनुभव हुये होंगें। मैं मोटरसाइकिल से करनाल से बड़ागाँव अपनी बैंक शाखा जा रहा था। पिछले सीट पर मेरा दफ्तरी आले राम बैठा था जो हरियाणा का ही था। जब मैंने एक स्कूटर को ओवरटेक किया तो मेरी पिछली सीट पर बैठा आले राम जोर से ठठाकर हँस पड़ा। स्कूटर को एक महिला चला रही थी और उसकी पिछली सीट पर एक मर्द बैठा हुआ था। मेरे लिए तो ये एकदम साधारण सी बात थी पर आले राम से रहा नही गया और उसने जोर से कहा - ये देखो हिजड़े को, लुगाई स्कूटर चलावे है औऱ ये पीछे बैठा है, इसे शर्म कोनी। मैंने ये भी महसूस किया कि केवल आले राम ही नही बल्कि हर आते जाते लोग इसे अजूबे की तरह देख रहे है। एक दूसरी घटना का जिक्र भी करना चाहूँगा जिसमे एक लड़की ने मेरा हाँथ क्या पकड़ा भाई लोगो ने मेरा मजाक बना दिया। यह 1988 की बात है। वैष्णो देवी दर्शन के बाद हमलोग बाबा अमरनाथ दर्शन को जा रहे थे। चुकिं हम लोगो के पास समय कम था और ग्रुप में सब लोग युवा ही थे अतः हमलोगों ने शार्ट कट वाला बाल-ताल का रास्ता चुना। श्रीनगर से लेह राजमार्ग पर सोन मार्ग से करीब 20 किलोमीटर आगे बाल ताल का इलाका है ( जिसके पहाड़ो के दूसरी तरफ द्रास और बटालिक का छेत्र है जहाँ कारगिल युद्ध लड़ा गया था) बाल ताल से अमरनाथ गुफा की दूरी थी तो केवल पन्द्रह किलोमीटर पर खतरनाक चढ़ाई और करीब तीन किलोमीटर का बर्फ से ढका रास्ता पार करना इसको कठिन बनाता था। बीच बीच मे खतरनाक जगहों पर सुरक्षा बलों के जवान भी तैनात रहते थे जो यात्रियों को सावधान करते रहते थे। नदी नालों के ऊपर भी बर्फ जमी होती थी और नीचे पानी बहता रहता था। ऐसे इलाको को पार करते समय सुरक्षा बल के जवान सबको एक दूसरे का हाँथ पकड़ कर और चेन बनाकर पार करने की हिदायत देते थे क्योंकि बर्फ के टूटने और उसके साथ बह जाने का खतरा रहता था। वैसे ही एक झरने पर जमी हुई बर्फ का रास्ता पार करना था। वहाँ खड़े फौजी ने चेन बना कर पार करने को कहा। मैंने चेन बनाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो देखा कि सामने एक लड़की खड़ी है। मेरी तरफ उसका हाथ बढ़ा हुआ है। मैं थोड़ा झिझका। मुझे झिझकता देख उस लड़की ने खुद अपना हाथ बढ़ाकर मेरे हाथ को पकड़ लिया। फिर मैंने अपने दूसरे हाथ से अपने पीछे आ रहे अपने साथी के हाथ को पकड़ लिया। और इस तरह चेन बन गई। हमलोगों ने धीरे-धीरे, एक-एक कदम बढ़ाते हुए करीब 20 से 25 मीटर का वो रास्ता पार कर लिया। रास्ता पार करने के बाद उस लड़की ने मेरे हाथ को छोड़ दिया। तभी मेरे पीछे चल रहे मेरे ग्रुप के लड़कों ने कमेंट कर दिया। क्या भैया ? यहाँ तो सब उल्टा हो रहा है। मर्द औरतों को सहारा देते हैं पर यहाँ तो लुगाई आपको सहारा दे रही है और आपका हाथ पकड़ कर आपको रास्ता पार करा रही है। यह सुनकर सभी साथ के लोग हँस पड़े। उस लड़की के चेहरे पर एक झेंप और गुस्सा साफ नजर आ रहा था। मुझे भी इस तरह की बात सुनकर तथा लड़की को झेंपता देख कर बड़ा खराब लगा। मैंने सोचा, हम चाहे कितना पढ़ लिख जायें, कितना भी आगे बढ़ जायें पर दिमाग में तो वही दकियानूसी ख्याल और पुरूष होने का झूठा दंभ भरा रहता है। हमारे समाज में महिलाओं को आज भी एक जिम्मेवारी समझा जाता है और सामाजिक तथा पारिवारिक रूढ़ियों के कारण उन्हें विकास के कम अवसर मिलते हैं। इसी कारण उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। आज तमाम कानूनी प्रावधानों एवं सुधार के प्रयासों के बावजूद आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार अपने खतरनाक स्तर पर है। दहेज प्रथा आज भी चलन में हैं। कन्या भ्रूण हत्या हमारे घरों में आज भी हो रहे हैं। वास्तविक बदलाव तो तभी संभव है जब पुरुषों की सोच में बदलाव हो। साथ ही महिलाओं को भी अपने पुराने रूढ़िवादी सोंच बदलनी होगी। उन्हें यह समझना होगा कि वे खुद पुरूषों को औरतों पर हावी होने में सहायता कर रही है। किसी दूसरी स्त्री के साथ अगर भेदभाव हो रहा है, शोषण हो रहा है तो उन्हें लड़ाई में उनके साथ खड़ा होना होगा, और आवाज भी उठाना होगा। हालांकि बदलाव तो कुछ दिख रहा है और इन मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श भी किया जा रहा है पर फिर भी अभी मंजिल दूर है। किशोरी रमण। BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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