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  • Writer's pictureKishori Raman

कुछ भी बोलने से पहले....



बोलने में जल्दबाजी बिलकुल न करें। कुछ भी बोलने से पहले सोंचे, अपने शब्दों को तौले और तब अपनी बात, अपने विचार औरों के सामने रखें। गुणी लोगों ने ठीक ही कहा है कि कमान से चला हुआ तीर और जुबान से निकले हुए शब्दों को वापस नही लिया जा सकता । कोई कितना भी गुणवान ब्यक्ति क्यो न हो, अगर उसे अपनी वाणी पर संयम नही है तो वह दुसरो के आदर का पात्र नही हो सकता। आदर या सम्मान वही स्थायी होता है जो श्रद्धा की उपज हो। पद या लोभजनित सम्मान सिर्फ सामाजिक शिष्टाचार होता है और कुछ नही। यह एक सच्चाई है कि अपनी मीठी वाणी के बदौलत आप किसी अनजान ब्यक्ति को भी अपना मित्र बना सकते है। गरम माहौल को ठंढा कर स्थिति को संभाल सकते हैं। हाँ, यहाँ एक बात और स्पष्ट करना चाहूँगा वह ये कि मौन के भी अपने मायने होते हैं। मौन रहना भी वाणी संयम के दायरे में आता है। मौन रह कर भी आप अपने संयम का परिचय दे सकते है। गाँधी जी ने कहा है कि " मौन सर्वोत्तम भाषण है " कबीर दास ने तो अपनी निम्न दो पंक्तियों में वाणी के मर्म और महत्व का निचोड़ ही प्रस्तुत कर दिया है। ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय यह सच ही कहा गया है कि ब्यक्ति के ब्यक्तित्व और सौंदर्य से कई गुना अधिक प्रभाव उसकी वाणी में होता है। क्रूर से क्रूर ब्यक्ति को अपनी संयमित वाणी से जीता जा सकता है। मधुर आवाज़ से ही प्रेम का आगाज होता है। मीठी वाणी वह धागा है जिससे हम पूरे समाज को जोड़ सकते है, शान्ति ला सकते हैं। और अंत मे कहना चाहूँगा कि अगर आपकी वाणी में संयम है तो आप संत हैं। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com


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