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  • Writer's pictureKishori Raman

# जब हम लोग पिटाई से बचे #


यह 1985 की बात है जब लक्ष्मी कमर्शियल बैंक का विलय केनरा बैंक में हुआ था और बिहार , उत्तर प्रदेश में जितने भी प्रोबेशनर्स थे उनको पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन शाखाओं में ट्रांसफर किया गया था जो पहले लक्ष्मी कमर्शियल बैंक थे। मेरा भी ट्रांसफर तांत नगर(प.सिंहभूम) से हरियाणा के बड़ागाँव शाखा में हुआ जो करनाल से सात किलोमीटर दूर था। ग्रामीण शाखा होते हुए भी ज्यादा परेशानी तो नही थी बस लोग केनरा बैंक से अपरिचित थे क्योंकि तब तक नार्थ इंडिया में केनरा बैंक की शाखाएं केवल बड़े बड़े शहरों तक ही सीमित था। हमारे प्रबंधक श्री राम मेहर सिंगला भी नौजवान थे और काफी मेहनती और उत्साही थे। वो चुकि हरियाणा से ही थे और हमारा ख्याल रखते थे अतः वहाँ काम करने में कोई परेशानी नही थी पर चुकि क्लर्क और सबस्टाफ़ लक्ष्मी कमर्शियल बैंक वाले थे अतः वे हमें परेशान करने का कोई मौका नही छोड़ते थे। विलय के बाद चुकि लोगों ने डर के मारे अपने डिपॉज़िट निकाल लिए थे अतः हमारी पहली प्राथमिकता थी शाखा का बिज़नेस बढ़ाना। हम लोग गाँव मे मीटिंग करते और बताते कि यह सरकारी बैंक है तथा यहाँ आपका पैसा सुरक्षित रहेगा। अगल बगल के किसी भी गाँव से शादी का या किसी और आयोजन का निमंत्रण आता तो हम लोग जरूर जाते ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो से संपर्क हो और हमे अपने बैंक के प्रचार प्रसार का मौका मिले। गांव में एक बड़े किसान थे निहाल चंद। अपना सारा पैसा दूसरे बैंकों में रखते थे।कई बार हम लोग उनके घर गये पर उन्होंने हमे कभी घांस नही डाली। तभी उनकी पत्नी का देहांत हो गया और इत्तिफाक से उसदिन हमारे मंडल प्रबंधक शाखा में आये हुए थे। उनके साथ हम लोग गमी मनाने उनके घर गए। जमीन पर बिछे चादर पर बैठे और उन्हें सांत्वना दी। जब उनकी पत्नी का काम क्रिया समाप्त हुआ तो वे शाखा में आये और बहुत सारी फिक्स्ड डिपॉजिट की रसीदे सौप गये जिसे हम लोगो ने परिपक्व होने पर दूसरे बैंकों से धीरे धीरे कर अपनी शाखा में मँगवा लिया। इस तरह हमारे प्रबंधक महोदय का सतत प्रयास रंग लाया और हमारी शाखा को करनाल मंडल का बेस्ट रूरल ब्रांच का अवार्ड मिला। हमारी शाखा गाँव के बीच एक पुराने से कमरे में थी। मैनेजर साहब जहाँ बैठते थे वहाँ एक खिड़की थी जो गली की तरफ थी। गली से गुजरने वाले लोग बिना बैंक में आये खिड़की से ही मैनेजर साहब से दुआ सलाम कर लिया करते थे एक दिन हम लोग बैंक के काम मे ब्यस्त थे। समय यही कोई बारह बजे का रहा होगा। उस दिन कस्टमर की भीड़ कम थी। तभी मांगी लाल जो राजदूत मोटर साईकल पर थे खिड़की से ही मैनेजर साहब को राम राम कहा। मैनेजर साहब ने पूछा कि इतना अर्जेंट क्या काम आ गया है कि आप मोटरसाइकिल पर बैठे बैठे ही मुझसे बात कर रहे हो और शाखा मे नही आ रहे हो। कोई नाराज़गी है क्या ? इतना सुनते ही मांगी लाल ने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और शाखा के अंदर आ गए। वो बहुत दुखी और परेशान लग रहे थे। उन्होंने मैनेजर साहब से कहा- आपको शिवरतन याद है ? अरे , वही मेरा दूर का रिश्तेदार, कुंजपुरे वाला आढ़ती जिसका खाता पिछले हप्ते मैंने खुलवाया था। इसपर मैनेजर साहब ने कहा , हाँ••हाँ, याद आया••क्या हुआ उनको ? कल रात उनकी मौत हो गई। जहर खाने से मौत हुई है। उन्होंने खुद खाया या किसी ने खिलाया पता नहीं। मैं उन्हीं के यहाँ गमी में जा रहा हूँ। उसके गमी में आप कुंजपुरा चलेगें क्या ? वैसे आपको गमी के लिये जरूर चलना चाहिए क्योंकि वह आपका कस्टमर भी था। पहले तो मैनेजर साहब ने सोचा कि शाम को लौटते समय शिवरतन के घर गमी के लिए जाएंगे फिर सोचा कि उसका घर तो देखा हुआ नही है अतः अभी मांगी लाल के साथ ही चलना ठीक रहेगा। उन्होंने मुझे इशारा किया और खुद शाखा से बाहर निकल कर अपना मोटरसाइकिल स्टार्ट किया। मैंने अपना ड्रावर लॉक किया और स्टाफ को आवश्यक निर्देश दिए औऱ बाहर निकल कर उनकी मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ गया। कुंजपुरा वहाँ से पांच किलोमीटर दूर था अतः दस पंद्रह मिनट में हम लोग गमी वाले घर मे पहुँच गये जहाँ काफी लोग गमी के लिए बिछाए गये सफेद चादरों पर बैठे हुए थे। हम लोग भी वहीं चादर पर बैठ गए। वहाँ जो लोग गमी के लिए इकठ्ठे हुए थे वे सब घर वालो को सांत्वना दे रहे थे पर हम लोगो ने महसूस किया कि हम लोगो के वहाँ पहुँचते ही घर वाले चुप हो गए हैं, और हम लोगो को अजीब सी नजरो से घूर रहे है। मैनेजर साहब ने हरियाणवी भाषा मे ही गम का इजहार किया पर घर वाले खामोश ही रहे। दो तीन मिनट के बाद घर के अन्दर जिधर गमी के लिए औरतें बैठी थी उधर से औरतों के रोने की आवाज़ आने लगी। लगा कई औरतो ने एक साथ रोना शुरू कर दिया हो। मुझे लगा कि अभी अभी कोई नज़दीकी रिश्तेदार पहुंचा है इसीलिए फिर से रोना धोना शुरू हो गया है। इधर हम मर्दो वाले जमात में बिलकुल खामोशी छा गई थी। और तभी चार पांच अधेड़ औरते जो हरियाणवी ड्रेस में थी और जिनका मुहँ ओढ़नी से ढका हुआ था धड़धड़ाते हुए हम मर्दो के बीच आई और लात घूँसा, थप्पड़ से हमारे बीच बैठे माँगी राम की पिटाई करने लगी। चूँकि वो हमारे बगल में ही बैठा था अतः वहाँ से हटते हुए भी एकाध घूँसा मुझे भी लगा। साथ बैठे मर्द बस जुबान से ही औरतो को मना कर रहे थे पर उसे रोक नही रहे थे। औरते रो रही थी, मांगी लाल को गालियाँ दे रही थी और पिटाई भी कर रही थी। वहाँ डर और भगदड़ मच गया। मैनेजर साहब ने मुझसे कहा -भागो और दरवाजे की तरफ लपके। मैं भी पीछे पीछे भागा। बाहर भगदड़ के कारण सबके जूते चप्पल मिक्स हो गये थे। मैं अभी अपने चप्पलें खोज रहा था कि मैनेजर साहब जो मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चुके थे बोले, यार चप्पलों को मारो गोली और आओ बैठो मेरे पीछे। जब मैंने देखा कि वे भी नंगे पैर है तो मैं भी उनके पीछे बैठ गया और हमलोग वहाँ से भाग लिए। वहाँ से निकल कर हमलोग कुंजपुरा बाजार पहुँचे और हमारे शाखा का एक कस्टमर जिसने हमारी शाखा से ओ सी सी लिमिट ले रखी थी के दुकान में पहुँचे। उसने हम दोनों को बैठाया और पहले पानी,फिर चाय पिलाया। जब हमलोगों ने उसे बताया कि हम लोग शिव रतन के घर पर गमी के लिए मांगी लाल के साथ आये थे और वहाँ ऐसी घटना घट गई तो उस ओ सी सी पार्टी ने हमें जो बताया वो सब जानकर चौक गये। शिव रतन के घर वालो को मांगी लाल पर ही शक था कि इसी ने शिव रतन को जहर खिलाया है क्योंकि दोनों एकसाथ करनाल गये थे और लोटते समय एक साथ चाय पी थी।घर वालो ने पुलिस में जो कंप्लेंट लिखाया था उसमें भी मांगी लाल पर शक किया गया था। बड़ागाँव आकर वहाँ के एकलौते चप्पलों की दुकान से हम दोनों ने दो हवाई चप्पलें खरीदी ताकी नंगे पैर घर न जाना पड़े और उस दिन हमारे मैनेजर सिंगला जी ने कसम खाई ( तीसरी कसम के हिरामन की तरह कि आगे से अपनी बैलगाड़ी में बांस नही लादेगें ) कि आगे से बिना जाने समझे किसी भी आयोजन या फंक्शन में नही जायेंगे । बाद में पता चला कि पुलिस ने मांगी लाल को अरेस्ट कर लिया है। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. 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