top of page
  • Writer's pictureKishori Raman

संस्मरण -- किस्मत या संयोग

Updated: Sep 19, 2021





यह उन दिनों की बात है जब मुझे यूको बैंक सिसई में योगदान देना था। उस समय मैं स्टेट फ़ूड कॉर्पोरशन गया में था और मेरा दोस्त सुदर्शन टोप्पो बैंक ऑफ बरोदा तिलैया में पोस्टेड था। चुकि सुदर्शन का घर गुमला था और सिसई जहाँ मुझे जॉइन करना था गुमला के पास ही था अतः ये प्रोग्राम बना कि वह मेरे साथ गुमला चलेगा और जब तक सिसई में रहने की कोई ब्यवस्था नही हो जाता तब तक मैं गुमला में उसके घर से ही आना जाना करूँगा ।


14 अगस्त 1982 को मैं स्टेट फ़ूड कॉर्पोरशन से रिलीव हो गया और तीन बजे तक मैं तिलैया पहुँच गया।मैं और सुदर्शन दोनों बस से रांची के लिए निकल पड़े । रात करीब पौने नव बजे हमलोग रांची रातू रोड( रेडियो स्टेशन के करीब ) पहुंचे । एक लाल रंग की (बिहार स्टेट ट्रांसपोर्ट) पुरानी सी बस खड़ी थी। बस को देखकर सुदर्शन बोला ,इसका तो अस्थि पंजर ढीला है,पता नही यह गुमला पहुंच पायेगा कि नही ? इसके पीछे तो कोई बस भी नही है।


खैर, यह गुमला के लिए अंतिम बस थी इसलिए कंडक्टर जान बूझकर लेट कर रहा था ताकि कुछ और पैसिंजर मिल जाय । साढ़े नव बजे बस खुली पर बेड़ो जाते जाते प्रॉब्लम शुरू हो गया।उसके रेडिएटर से वाटर लीक कर रहा था। ड्राइवर बार बार गाड़ी रोक कर पानी डाल रहा था ताकि इंजन ज्यादा गरम न हो जाये।खैर राम राम कर के जब बस नागफेनी क्रॉस किया तो जान में जान आई । लेकिन कुछ ही दूर चलने के बाद गाड़ी बन्द हो गई । ड्राइवर ने इंजन का निरीक्षण करने के बाद घोषणा कर दी कि गाड़ी अब आगे नहीं जा पाएगी ।


चुकि सुदर्शन उस रास्ते से वाकिफ था अतः अंदाज लगाकर बताया कि यहाँ से गुमला करीब छ किलोमीटर है।उस समय रात के एक बज रहे थे।बस में ही सुदर्शन का एक दोस्त रंजन जो गुमला का ही था वहाँ से पैदल निकलने की सलाह दे रहा था।वह बोला कि रास्ते मे करीब एक किलोमीटर आगे एक लाइन होटल है वही चल कर खाना खाते है फिर दो तीन घंटे आराम करेंगे और सुबह उठ कर गुमला के लिए पैदल ही हमलोग निकल पड़ेंगे ।


कुछ दूर पैदल चलने के बाद लाईन होटल आ गया।

होटल वाले ने हमलोगो के लिए खाट बिछा दिया और उस पर लकड़ी का पट्टा रख कर ग्लॉस में पानी रख दिया । होटल के पास ही एक ट्रक खड़ा था और एक सरदार जी खाट पर बैठ कर खाना खा रहे थे।

जब हमलोग रोटी और दाल तड़का का आर्डर दे रहे थे तो सुदर्शन के दोस्त रंजन ने होटल वाले से पूछा ...यार महुआ वाला दारू है क्या ?

महुआ वाला तो खत्म हो गया है, हाँ थोड़ा सा केला वाला दारू बच रहा है।

इस पर रंजन बोला ...केला वाला ? पता नही कैसा होगा। हमने तो कभी टेस्ट किया नही है।

इस पर बगल में चुस्की लगा रहे सरदार जी बोले.... यार मैं इसी के तो मजे ले रहा हूँ। शानदार है ,जरा चख के तो देखो।

खैर, सरदार जी के कहने पर रंजन ने अपने लिए और सुदर्शन के लिए आर्डर दिया और मेरी इच्छा जानने के लिए मेरी तरफ देखा।

नहीं नहीं ... मै तो दारू को हाथ भी नही लगाता ,मैं बोल उठा।

जब मैंने दारू के लिए मना कर दिया तो सरदार जी मुझ से बोले .…..यार तू कैसा बंदा है । जरा चख कर तो देखो, मेरा दावा है कि तुम्हे जरूर मजा आएगा।

नही सरदार जी ,आज तक मैं ने दारू को हाँथ भी नही लगाया है।

तो भाई ,अब हाथ लगा ले ।थोड़ी सी लेने में कोई बुराई नही है।

अब तो सुदर्शन और रंजन भी सरदार के हाँ में हाँ मिलाने लगे । रंजन बोला देख यार , रात के दो बजने वाले है।अब तो खाने के बाद यही खाट पर झपकी लेंगे और सुबह पांच बजे पैदल ही गुमला के लिए निकल चलेंगे।दो तीन घंटे यहाँ खुले में, आकाश के नीचे नींद कैसे आयेगी ? इसके लिए तो एकाध पैग लेना ही पड़ेगा।

मेरा मन डाँवा -डोल होने लगा । तभी सरदार जी होटल वाले से बोला ...इस मुंडे को मेरी तरफ से एक ग्लॉस केले वाला दारू सर्व करो । और हाँ, इसके पैसे मेरे हिसाब में जोड़ना।


खैर भाई ग्लॉस मेरे खाट के लकड़ी के पट्टे पर रखी जा चुकी थी।मैं ग्लॉस को देख रहा था पर मेरी हिम्मत नही हो रही थी उसे हाँथ लगाने की।

मुझे झिझकता देख सरदार जी ने कहा ,ग्लॉस उठाओ और पहली चुस्की दोस्तो के नाम लो ।

फिर सरदार ने होटल वाले को पुकारा और अपने लिए एक और ग्लास दारू लाने को कहा।

देसी होने के कारण दारू से दुर्गंध आ रही थी । मैंने अपनी सांसो को रोक कर एक घूँट भरा।दारू के कड़वापन से मन झनझना उठा । सब मेरे चेहरे के भाव देख कर हँस पड़े।

तभी सरदार जी ने होटल वाले को आवाज लगाई , अरे.. मेरा दारू लेकर आओ ,मुझे भाई साहब का साथ देना है।

होटल वाला आकर सरदार को बताया कि साहब जी दारू तो खत्म हो गया।

क्या कहा, खत्म हो गया ।अरे मैंने तो एक ग्लॉस अलग रखने को कहा था, सरदार ने कहा।

साहबजी , मैंने एक ग्लास रखा तो था पर आपके कहने पर ही तो मैंने उसे चारकु साहब (उसका इशारा मेरी तरफ था,चारकु यानी गोरा) को दे दिया। आपने ही तो कहा था कि इन्हें मेरी तरफ से पिलाओ।


पर वह तो मेरा कोटा था। इन्हें तो अलग से तुम्हे देना था हाँ, इसके पैसे अवश्य मुझसे लेने थे।यार तूने तो मेरा मूड ही खराब कर दिया।

सरदार जी होटल वाले को कही से भी दारू लाने को कह रहा था पर होटल वाला बोल रहा था कि इतनी रात में मैँ कहाँ से लाऊं ?

तभी सरदार जी की नजर मेरे ग्लॉस पर पड़ी । पूछा ,अभी इसे तुमने जूठा तो नही किया है ?

मैंने एक घूट इससे पी ली है।अब तो ये जूठा हो चुका है ।

इस पर सरदार जी ने पूछा, तू तम्बाकू या सिगरेट तो नहीं खाता है?

मेरे न में सर हिलाते ही वह अपनी जगह से उठा और मेरे पास आकर मेरा जूठा ग्लास उठा कर बडा सा घूट भरते हुए कहा - यार बड़ी बुरी चीज है ये दारू। आगे से इसे हाँथ भी मत लगाना।यह आदमी के दिमाग और सेहत दोनों को बर्बाद कर देता है।

मैं तो काठ हो गया यह सब देख कर। मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं इस घटना पर हंसू या रोऊँ।कोई चीज इस तरह मिल कर होठो तक आके अगर छीन जाये तो इसे क्या समझू, किस्मत या संयोग ?


किशोरी रमण

78 views3 comments
Post: Blog2_Post
bottom of page