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  • Writer's pictureKishori Raman

# मछली-भात #

Updated: Dec 3, 2021


जाड़े की छुट्टियों का हम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था। हमारे समय में बड़ा दिन की छुट्टी के पहले ही हम लोगों की परीक्षा समाप्त हो जाती थी और रिजल्ट भी सुना दिया जाता था। फिर जनवरी के दूसरे हफ्ते से नए क्लास की कक्षाएं शुरू होती थी। नया क्लास नए साथी खुशी के कारण तो होते ही थे पर सबसे ज्यादा खुशी होती थी कि छुट्टियों में हम गांव जाएंगे। पुआल के बिस्तरों पर सोएंगे।आग तापेगें। आग में आलू पकाएंगे। खेतों से चने और खेसारी के साग तोड़ कर उनका कुचला बनाएंगे या फिर पोखर में मछली मारेंगे। पर सबसे ज्यादा जो मजा आता था वह था पुआल पर सोना और सोते समय दादी बुआ या दीदी से कहानी सुनना। वैसे शहर में कहानियों के लिए बहुत सारे मैगजीन उपलब्ध थे जिनमें चंदामामा,बालक,पराग,चंपक हमारे घरों में तो आते ही थे पर जो हम लोग गांव में कहानियां सुनते थे उसका मजा ही कुछ और था। उन कहानियों में तर्क वितर्क या प्रश्न उत्तर की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। कई बार तो उसके सिर पैर भी नहीं होते थे फिर भी हम लोग को बड़ा मजा आता था। गाँव में और खासकर जाड़े में लोग जल्दी सो जाया करते हैं। खेतों में धान की कटाई या फिर खलिहान में उनकी पिटाई चलती रहती है तो दिन भर तो लोग अपने काम में ब्यस्त रहते हैं। शाम को घरों में जल्दी ही चूल्हा जल जाता है और साढ़े छ या सात बजते बजते तो लोग खाना खाकर सो भी जाते हैं। तो शाम होते ही मैं दादी को बोलता था दादी, मुझे नागो के घर जाना है, शान्ति दीदी से कहानी सुननी है। दादी पहले तो ना करती, बोलती कि पुआल पर सोओगे तो तुम्हारे कपड़े गंदे हो जाएंगे। तुम्हारे शरीर में खुजली हो जाएगी। वहां जितने लोग सोते हैं सब के सिरों में ढील है वह ढील तुम्हारे भी सिर में आ जायेगी। पर जब मैं बार-बार जिद करता तो फिर वो मान जाती। मुझे लेकर बगल के गोतिया ( चचेरे चाचा) घर में ले जाती। मेरे लिए एक दरी और तकिया भी ले जाती और इस तरह से मेरा बिस्तर पुआल पर लग जाता। और मैं वहां सोते ही दीदी से फरमाइश करता कि दीदी आज किस्सा सुनाना पड़ेगा। वहाँ सभी लोग एक साथ पुआल पर सोते थे और कुछ तो लेटते ही गहरी नींद में सो जाया करते थे। शान्ति दीदी पहले तो टालमटोल करती, बोलती, दिन भर काम करते-करते शरीर थक गया है। कहानी कहते कहते नींद आ जाएगी तो जानते हो ना क्या होगा ? आधी कहानी सुनने से रास्ता भटकने का खतरा रहता है। मैं कहता , दीदी तुम जब कहानी कहोगी तो मैं बीच बीच में हुँकारी भरता रहूंगा। इस तरह न तू सो पाओगी और ना मुझे नींद आएगी। साथ के सभी लोग दीदी की मान मनौवल करते तो दीदी कहानी सुनाने को राजी हो जाती और इस तरह से कहानी शुरू करती। कहानी के संदर्भ और पात्र सब ग्रामीण परिवेश से होते। तो दीदी कहानी कहना शुरू करती थी। बिंदी अपने खेतों में धान काट कर घर लौट रही थी। शाम का समय हो गया था। उसके साथ उसकी पक्की सहेली सोमरी भी थी। जब वे दोनों पनहेता खंधा के खेतों के पास से गुजरी तो देखा कि धान की फसल तो काटने लायक हो गए हैं पर खेतों में अभी पानी है। बिना पानी के सूखे तो धान की कटाई नहीं हो सकती थी। तभी बिंदी बोली, बाप रे, इसमें तो बड़े-बड़े मांगूर और गरई मछली है। इस पर सोमरी बोली, चलो इसे मारते हैं। बिंदी बोली- पागल हो गई है क्या ? शाम का समय है। ठंड बढ़ रही है। पानी और कीचड़ में हेलेगें तो नहाना तो पड़ेगा ही। ना बाबा ना, माँ मारेगी। इसपर सोमरी बोली- बगल के खेत को देखने से पता चलता है कि उनमें भी मछली था। और उसे लोगों ने मार लिया है। अगर आज छोड़ देते हैं तो हो सकता है कल सुबह ही कोई इसे मार ले। मेरी मान, माँ जब बड़ी-बड़ी मांगुर मछली तुम्हारे हाथों में देखेगी तो कीचड़ से गंदे होने पर भी गुस्सा नहीं करेगी। मछली भात सोच कर तो मेरे मुंह में पानी आ रहा है। अब बिंदी का मन भी डोलने लगा। थी तो वह बच्ची ही। उम्र रही होगी यही कोई सत्रह अट्ठारह साल की। शादी तो उसका बचपन में ही हो गया था पर अभी तक गौना नहीं हुआ था। हाँ, माँ बाऊ जी को उसने कई बार बात करते सुना था। मां बार-बार कहती थी कि बिंदी का गौना कर देना चाहिए। वह ससुराल चली जाएगी तो हम लोग इत्मीनान हो जाएंगे। सुनकर वह सरमा जाया करती थी। बचपन में उसकी शादी हुई थी जब उसकी उम्र पाँच साल की थी। अभी तो उसे न अपनी शादी का कुछ याद है और ना ही अपने पति का चेहरा। हाँ, वह सुनती है कि उसका पति शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा है। कहानी कहते कहते दीदी चुप हो गई। मैं बोला, क्यों दीदी सो गई क्या ? नहीं रे, सोच रही हूँ। बहुत पहले यह कहानी सुनी थी। कुछ भूल रही हूं ।फिर दीदी ने कहना शुरू किया। बिंदी और सोमरी ने अपने सलवार को घुटने तक चढ़ाया। ओढ़नी को कमर पर बांधा और अपने खेतों में उतरने लगी। तभी पीछे से एक आवाज आई। सुनिये जरा। अचानक वह आवाज सुनकर बिंदी घबरा गई। उसने मुड़कर उधर देखने का प्रयास किया जिधर से आवाज आई थी। और वह मेड़ से फिसल कर खेत के कीचड़- पानी में गिर गई। पूरा तो नहीं लेकिन उसका शरीर कमर तक कीचड़ में लथपथ हो गया। उसने देखा की प्रश्न पूछने वाला एक आकर्षक नौजवान था जो उसे कीचड़ में गिरते देख ठठा कर हँस पड़ा था। बिंदी को उस नौजवान पर जोरो का गुस्सा आया। वह अपने हाथों में पड़े कीचड़ को उस नौजवान की तरफ उछाल दिया। वह नौजवान अरे अरे यह क्या कर रही हो ? बोलते हुए वहाँ से हटता तब तक उसे कीचड़ लग चुके थे। वह गुस्से में बोला , अनपढ़ लड़की तुमने मेरा शर्ट खराब कर दिया। गुस्से से आगबबूला हो वह बिंदी को कुछ देर तक घूरता रहा फिर उसे भला बुरा कहते हुए वहाँ से चला गया। अब बिंदी का गुस्सा सोमरी पर बरस रहा था। वह बोली कि तू जल्दी-जल्दी मांगुर मछली को पकड़। मैं बिना मछली के घर जाने से रही। माँ तो मुझे आज जिंदा गाड़ देगी। हाँ, शायद मछली देख कर वो मुझे माफ़ भी कर दे। पता नहीं वो लड़का कौन था ? मुझे उसके साथ इतना गंदा बर्ताव नहीं करना चाहिए था। अगर उसने मेरे घर शिकायत कर दी तो आज तो मेरी खैर नहीं। इसपर सोमरी बोली- अरे छोड़ ना, वह तो अपने गांव का था ही नहीं। शायद कोई राही मुसाफिर था। यहाँ से गुजर रहा था और किसी घर का या किसी गांव का पता पूछ रहा था। संयोग से दोनों के हाथ बड़ी-बड़ी मछलियां लगी थी। दोनों ने मछली को पत्तो के दोनों में रखा और घर की तरफ चल दी। बिंदी जब घर पहुंची तो देखा कि उसके दलान में हलचल है। उसको इस हालत में देखते ही माँ ने अपना सर पीट लिया। क्या भूतनी बनकर आई हो। इतनी बड़ी हो गई हो पर तुम्हे अपनी इज्जत का भी ख्याल नहीं है। जल्दी से नहा धो लोऔर साफ कपड़े भी पहन लो। दादी ने जब मेरे हाथ के दोनो में बड़ी-बड़ी मछलियों को देखा तो कहा -जा बेटी, तू मछलियों को यही रख। थोड़ी सी राख और एक पिरदायी ( मछली काटने के लिए) ला दे। मैं मछली को बना देती हूं।अच्छा संयोग है। घर में मेहमान आये है। उन्हें आज मछली भात खिलाएंगे। बिंदी ने दादी से पूछा, दादी घर में कौन आया है ? दादी ने होठों पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा, पहले नहा धो कर आओ,फिर बताती हूं। बिंदी नहा धोकर आई। उसने माँ का दिया जब साड़ी पहना तो उसे वड़ा अटपटा सा लगा।तब तक मछली भात तैयार हो गया था। दादी जी मेहमान को खाने के लिए दलान से बुलाने गई थी। बैठने के लिये आसनी रसोई घर के सामने बरामदे में लगाई गई थी। मेहमान के हाथ पैर धुलवाने की जिम्मेवारी बिंदी को सौंपी गई थी। माँ ने थाली में भात और मछली परोस रखी थी। दादी मेहमान को लेकर आई। ढिबरी के हल्की रोशनी में मेहमान का चेहरा तो साफ दिखाई नही दे रहा था लेकिन वह सुन्दर कद काठी का नौजवान लग रहा था। तभी दादी ने कहा , बेटी ये दामाद जी है, इनके पैर छुओ। बिंदी कुछ समझी नही इस पर दादी बोली, अरे ये तुम्हारे पति है। बिंदी ने अपने पति का चेहरा देखा तो थर थर काँपने लगी। यह तो वही नौजवान था जिस पर उसने कीचड़ फेंके थे। इस ठंड में भी बिंदी को पसीने आ रहे थे। उधर वह लड़का बिंदी को देखकर पहले तो चौका फिर मंद मंद मुस्कुराने लगा। उसकी आंखों में शरारत झलक रही थी। इधर बिंदी सोच रही थी कि कहीं यह मां को उस घटना के बारे में बता ना दे। उसने नौजवान की ओर कातर नैनों से देखा मानो कह रही हो कि मेरी गलती माफ कर दो। जब वह नौजवान बैठ गया तो माँ ने इशारा किया और वह थाली में परोसे गए मछली भात को लेकर उसके पास गई। वह खाना खाते समय भी चोर नजरों से बिंदी को ही देख रहा था जबकि बिंदी मारे डर और शर्म के इधर उधर देख रही थी। तभी दादी ने उस लड़के से पूछा-अरे आप आये थे तो आपके कपड़े गंदे थे। सुना है कि किसी बेवकूफ लड़की ने आपके कपड़ों पर कीचड़ उछाल दिए थे। कौन थी वह लड़की ? इस पर मां बोली, माँ जी, आप भी कैसी बात करती हैं। शादी के बारह साल हो गए और आज पहली बार दामाद जी अपने ससुराल आए हैं। यहाँ न तो इन्हें कोई पहचानता है और न ये किसी को पहचानते हैं। जिसने भी फेका हो उसे ये माफ अवश्य कर देंगे क्योंकि यह इनका ससुराल है। कीचड़ फेंकने वाली कोई इनकी साली ही होगी। और सालियों का इतना हक तो बनता ही है कि जीजा जी से मजाक कर सके। इतना सुनना था की वह नौजवान जोरो से हँस पड़ा। वह नौजवान कुछ देर खामोश रहा फिर धीरे से बोला। इतना धीरे से कि केवल बिंदी ही सुन सके। मैंने तो तुम्हें उसी समय माफ कर दिया था क्योंकि तुम गुस्से में काफी सुंदर लग रही थी और इतना गुस्सा मैंने किसी के चेहरे पर आज तक नहीं देखा था। तभी शान्ति दीदी की आवाज आनी बंद हो गई। मैंने दीदी से पूछा, दीदी, तुम चुप क्यों हो गई ? क्या तुम सो गई हो ? इस पर दीदी बोली, नहीं बस अब सोने ही जा रही हूं। इस पर मैंने कहा दीदी आगे कहानी में क्या हुआ ? इस पर दीदी बोली अब होना क्या है ? वह दोनों एक दूसरे से मिले और सुख पूर्वक जीवन बिताने लगे। किशोरी रमण

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