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  • Writer's pictureKishori Raman

आदिवासी उलगुलान के नायक बिरसा मुंडा।


आज 15 नवंबर है महान स्वतंत्रता सेनानी एवं आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा का जन्म-दिन। इस अवसर पर उन्हें शत शत नमन एवं श्रद्धांजलि। बचपन में हमने अपने स्कूल के किताब में एक पाठ पढ़ा था "बिरसा ने बाघ मारा"। उस समय इस पाठ को पढ़ कर हमने सोचा था कि बिरसा एक बहादुर व्यक्ति थे जिन्होंने कुल्हाड़ी से ही बाघ को मार दिया था। जब हम बड़े हुए और रांची में रहनेऔर वहाँ के आदिवासी सभ्यता संस्कृति और संघर्ष को जानने समझने का मौका मिला तो पता चला कि बिरसा मुंडा केवल एक बहादुर ही नहीं बल्कि एक बड़े स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वे एक समाज सुधारक तो थे ही पर इसके साथ प्रकृति के बड़े उपासक एवं संरक्षक भी थे जिन्हें इतिहास ने नजरअंदाज किया है। उनके संघर्षों को एक साजिश के तहत स्थानीय विद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया और इस तरह न केवल उनके साथ बल्कि सारे आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय किया गया। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के एक गाँव लिहातू मे एक मुंडा आदिवासी परिवार में हुआ था। पिता सुगना मुंडा और मां करमी हातु के पुत्र के रूप में। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई साल्गा गाँव में हुई और उसके बाद की पढ़ाई के लिए वे चाईबासा इंग्लिश स्कूल में दाखिला लिया। चाईबासा में रहने के दौरान वे वहाँ के सरदारी आंदोलन से जुड़े और आदिवासी शोषण एवं उत्पीड़न को समझा। ब्रिटिश राज, भू माफिया, साहूकारों एवं जमींदारों के गठजोड़ एवं इनके शोषण वादी व्यवस्था को भी समझा। इन्होंने देखा कि ये सारी ताकते बाजारवादी व्यवस्था और बाहरी लोगों (दिकू) के साथ मिलकर जल, जंगल , और जमीन से इन्हें बेदखल कर वन संपदा एवं खनिजों का अन्धाधुन्ध दोहन एवं लूट-पाट कर रहे हैं। ये साजिश के तहत इन आदिवासियों में नशे की लत लगाकर इन्हें विस्थापन का दर्द झेलने एवं शहरी बाबुओं के घरों में दाई नौकर बन अपनी रोजी रोटी कमाने पर मजबूर कर रहें हैं। यहीं से इनके मन में इन शोषकों के खिलाफ विद्रोह की अग्नि प्रचलित हुई। ये 1894 के आदिवासियों की जमीन और अधिकारों के लिए चलाए जा रहे हैं सरदार आंदोलन में शामिल हुए और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया। इनके नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेजों के बनाये नियम और कानून को मानने से इंकार कर दिया और गोरिल्ला युद्ध के माध्यम से शासकों के नाक में दम कर दिया। अंग्रेजों ने उनकी गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषणा की और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। 9 जून 1900 को जेल में मुकदमे के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। वह कुल 25 सालों तक ही जिंदा रहे पर इतने कम समय में उन्होंने इतने बड़े-बड़े काम कर दिये जो शायद कोई 100 साल तक जिंदा रह कर भी न कर पाए। हालाँकि बिरसा मुंडा शहीद हो गए पर उनकी शहादत बेकार नहीं गई। उन्नीस सौ आठ में ब्रिटिश राज आदिवासी हितों की सुरक्षा के लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908 ) लाने पर मजबूर हुआ। इसमें आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाई गई थी। बिरसा मुंडा एक समाज सुधारक भी थे। वे अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों और नशा करने तथा प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने के खिलाफ थे। उन्होंने बीरसाइत धर्म की शुरुआत की जिसमें मांस, मदिरा खैनी, बीड़ी का सेवन वर्जित था तथा धार्मिक ढकोसलों से अलग प्रकृति पूजा करने एवं भजन गाने का विधान था। वैसे देखा जाए तो शोषण तो आज भी जारी है। आज भी जंगल उजड़ रहे हैं। आदिवासी और स्थानीय लोग अपने घरों से बेघर होकर शहरों में पलायन कर रहे हैं और विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं। उन्हें पूछने वाला कोई नहीं है। हमारे विकास के तमाम दावों एवं जल,जंगल और जमीन को बचाने के कुछ स्वयंसेवी प्रयासों के बावजूद भी आदिवासियों का विस्थापन आज भी जारी है। आज भी आप ही इन्हें शहरों में भवन निर्माण, सड़क निर्माण और ईट-भट्ठों में कुली- रेजा के रूप में काम करते हुए देख सकते हैं। उनके बच्चों को दाई नौकर के रूप में संभ्रांत घरों में काम करते हुए देख सकते हैं। आज भी आदिवासी एवं स्थानीय लोग हर दिन यह प्रार्थना करते है कि उनके बीच कोई दूसरा बिरसा मुंडा पैदा हो और अपने "उलगुलान"से बर्तमान ब्यवस्था में बदलाव लाये, जिससे उनका दुख दर्द दूर हो सके। आइए हम सब भी प्रार्थना करें कि इनकी कामना पूरी हो और भगवान बिरसा का पुनर्जन्म हो। "जय बिरसा भगवान" किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com






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