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  • Writer's pictureKishori Raman

# लोक आस्था का महा पर्व छठ #(भाग-3)

Updated: Nov 13, 2021



आज छठ पर्व का चौथा दिन है। सुबह उदयागामी भगवान भास्कर को अर्घ अर्पित करने के साथ ही यह पर्व समाप्त हो गया। इसी महापर्व के संदर्भ में प्रस्तुत है इसकी अंतिम कड़ी।


हम लोगो के इलाके मे छठ पर्व बिना किसी नागा के हर साल किया जाता है। अगर किसी साल किसी दुख तकलीफ के कारण छठ करना संभव नही है तो इसे किसी पड़ोसी या रिश्तेदार के यहां लगाया जाता है। यानी पूजन सामग्री उन्हें दी जाती है और वे आपके बदले अपनी पूजा के साथ साथ आपके लिये भी पूजा करते हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे यानी माँ या बाप के बाद जब बहु या बेटे को पर्व की शुरुआत करनी होती है तो इसके लिए उस साल दोनों छठ करते है और इसके लिए धाम पर( देव, बड़गांव या गंगा नदी) जाते हैं। धाम पर ही पूरे विधि विधान से दोनों पीढ़ी ( जो छठ देते हैं यानी बूढ़े माँ बाप जो अब छठ करने में समर्थ नहीं हैं और जो लेते हैं यानी बहु या बेटा जो अब आगे से बिना नागा छठ परम्परा का निर्वहन करेंगें) एक साथ छठ करते है।


छठ पर्व के प्रसाद का बड़ा ही महत्व है। जिनके यहाँ छठ होता है उनकी ये कोशिश रहती है कि प्रसाद उनके सारे रिश्ते नातो में तो पहुँचें ही साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचें। जिनके यहाँ छठ नही होता है या जो परदेस से छठ में घर नही पहुँच पाते है वे इंतजार करते है छठ पर्व के बाद अपने लोगो के वापसी का ताकी उन्हें छठ का प्रसाद मिल सके। प्रसाद का ठेकुआ और लडुआ बहुत दिनों तक भी खराब नही होता है।


हमारे यहाँ तो पूरे कार्तिक माह को पवित्र माना जाता हैं। इस महीने में घर की औरते सुबह स्नान,पूजा पाठ के बाद ही रसोई का काम शुरू करती है और घर मे सात्विक और निरामिष भोजन ही बनता है। जिनके यहाँ छठ होता है वे छठ के बाद भी कार्तिक पूर्णिमा तक उसी सुचिता एवं शुद्धता का पालन करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को नदियों, सरोवरों में डुबकी लगाने के साथ ही छठ महा पर्व समाप्त होता है। और फिर इंतजार शुरू होता है अगले साल के छठ व्रत का। लोग सूर्य भगवान और छठी मइया से विनती करते है की हम सबो पर अपनी कृपा बनाये रखे ताकी अगले साल फिर से उनकी पूजा आराधना कर सके।


अंत मे इस महापर्व को चंद पंक्तियो में इस तरह से परिभाषित कर सकते है कि छठ पर्व--

अंत और प्रारंभ की समग्रता को समान भाव से लेने, तमाम गंदगी और काम क्रोध को त्यागने , तमाम सुखों का परित्याग कर कष्ट को पहचानने का पर्व है।

आज जरूरत है तो छठ जैसे महा पर्व को इसकी पूरी समग्रता में समझने और इसे सहेजने की। लोक पर्व को हर्सोल्लास और इसकी पूरी सच्चाई और गरिमा के साथ मनाने की। इस पर्व के माध्यम से सशक्त समाज और जागृत राष्ट्र को बनाने और आपसी भेद भाव मिटाने और सामाजिक समरसता फैलाने की।

(समाप्त)



किशोरी रमण



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