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  • Writer's pictureKishori Raman

" हम क्या हैं ?"


कभी जरा अपने बारे में भी सोचिए कि हम क्या हैं ? अगर ईमानदारी से हम अपना विश्लेषण करेंगें तो पायेगें कि हम सब भ्रम में जीने वाले दंभी लोग हैं। भगवान की मूर्ति बना कर हम खुद को सृष्टिकर्ता होने का दंभ भरते हैं। मंदिरों में चढ़ावा चढ़ा कर खुद के दानवीर होने का दिखावा करते हैं। अपने और अपने सात पीढ़ियों के लिए दौलत और सुख सुविधाएँ जुटा कर अपने अजर-अमर होने का भ्रम पाल लेते है। एक तरफ तो हम मानते है कि बिना ईश्वर की मर्जी के इस संसार में एक पत्ता भी नही हिल सकता। यहाँ जो भी रचना है सब भगवान की बनाई है। दूसरी तरफ ये श्रेष्ठ है, वो नीच है। इसे ऐसा होना चाहिए, उसे वैसा होना चाहिए इत्यादि बातें करते हैं। यानी हम सृष्टिकर्ता की रचना में मीन-मेख निकाल उन्हें चुनौती देते हैं। हम इस बात को समझना नही चाहते कि हमारी नजरो में आज जो गलत है या हमसे भिन्न है उसे भी तो भगवान ने ही बनाया है। अगर सच मे वे गलत होते तो भगवान उन्हें बनाते ही क्यों ? इसे बिडम्बना नही तो और क्या कहेंगे कि हम ईश्वर में विश्वास तो करते है पर उनके आदर्शों , उनके विचारों को मानना जरूरी नही समझते। बस जयकारा लगा कर ही संतुष्ट हो जाते हैं। यह ढोंग नही तो और क्या है कि जब भी हम किसी महापुरुष के विचारों एवं आचरण का पूर्ण अनुसरण नही कर पाते तो उसे अवतार बना कर छोड़ देते हैं। उसके बाद उनसे पीछा छुड़ा कर किसी नए अवतार को गढ़ने में लग जाते है। ऐसा करना हमे हमेशा से भाता रहा है। अब तो यह हमारी आदत बन चुकी है और अपनी आदतों से हमे प्यार है। अवतारों और आदतों के बीच जो आचरण का रास्ता है उसके बारे में हमने कभी चिंतन-मनन किया है क्या ? नदी,पहाड़ ,आकाश, वायु,जंगल, स्त्री, माता-पिता हमने इन सबकी पूजा की पर क्या हम इन्हें बचा भी पाये ? हमने जिसकी जितनी पूजा की उसे उतना ही संकट में डालते चले गये। प्रकृति पूजा की तो जंगल उजाड़ दिये, नदियों को सुखा दिया, हवा को जहरीला बना दिया। स्त्रियों को पूजनीय बना कर उसे घर और कर्तव्यों की लक्ष्मण-रेखा में कैद कर दिया। यह हमारे सेवा और पूजा का ही परिणाम है कि हमारे माँ-बाप अब वृद्धाश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। कहने को तो हमने बहुत प्रगति की है पर ये भी कड़वा सच है कि हमने मारने के लिये सैकड़ो हथियार बना डाले परन्तु जीने का एक भी आचरण विकसित नही कर पाये। और अंत मे, यदि हम आज भी केवल अवतारों को पूजने में ब्यस्त रहें तो अपने आने वाली पीढ़ी के लिए और मानवता के लिये कुछ भी नही बचा पायेगें। हाँ, अगर कुछ बचाना चाहते है तो हमे अवतारों को पूजने के अलावा उनके विचारों एवम सदाचारों को अपने जीवन मे उतारना होगा। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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