लोग निभाते नही हैं आज कल वरना
इंसानियत से बड़ा रिश्ता नही होता
जो वक़्त पर काम आये किसी के
उससे बड़ा कोई फ़रिश्ता नही होता
जिंदगी में सबको सब कुछ नही मिलता
जब पतझड़ आते हैं तो फूल नही खिलता
स्वार्थ पर टिके होते हैं अक्सर हमारे रिश्ते
यहाँ जिस्म मिलता है पर दिल नही मिलता
जो भी मिला है उसीमें खुश होना सिख लो
औरों के पास क्या है इससे आँखे मीच लो
कोई क्यों याद दिलाये हमे हमारे हदों की
अच्छा है, खुद ही लक्षमण रेखा खींच लो
न रक्खो कभी अपनो से कोई उम्मीद
ये उम्मीदें ही अक्सर हमें रुलाती है
जब खून के रिश्ते भी हो जाते हैं पराए
तब हमारे ये रिश्ते ही हमे तड़पाती है
कोई आईने को कितना भी डरायेगा
आईना तो केवल सच ही दिखाएगा
सच्चाई जिनकी फ़ितरत में होती है
उस को यहाँ कौन रोक पायेगा
किशोरी रमण
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बहुत ही सारगर्भित और भावनाओं को निचोड़ने वाली कविता।
वाह, बहुत सुंदर कविता।
Very nice...