
ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत यावत जीवेत सुखं जीवेत
भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतं
हमे अक्सर ही उपरोक्त पंक्तियां पढ़ने, सुनने को मिलती है। कहीं पर भारतीय दर्शन के एक मुख्य शाखा चार्वाक दर्शन के मूल तत्व के रूप में इसे उद्धृत किया जाता है तो कहीं हल्के फुल्के संदर्भ में। यानी इस दर्शन की आलोचना हेतू या इसका माखौल उड़ाने हेतू या फिर तर्क की कसौटी पर कसे बिना एकदम से खारिज कर देने के लिए।
असल में उपरोक्त पंक्तियां "बृहस्पत्य सूत्र" से लिया गया है जो देव गुरु बृहस्पति द्वारा रचित ग्रंथ है। इसीलिए देव गुरु बृहस्पति को चार्वाक दर्शन का प्रणेता माना जाता है।
आज इस दर्शन के बारे में हमे जो भी जानकारी मिलती है वो उपनिषद, पुराण, बौद्ध और अन्य धर्म ग्रंथो और साहित्य से प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए कि इनके अपने ग्रंथ या साहित्य आज उपलब्ध नहीं है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखते है, चार्वाक के बारे में जो समझ लाई गई है वो उनके विरोधियों के साहित्य या धर्म ग्रंथो के आधार पर। उनके अपने ग्रंथ कब और कैसे नष्ट किए गए या हो गए इस बारे में पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।
इसलिए आज जनमानस की ये उत्सुकता स्वाभाविक ही है कि यह कौन सा दर्शन है जो एक समय में समन परंपरा का सबसे लोकप्रिय मत था और इसी कारण इसे लोकायत मत भी कहा जाता था और जिसने उस समय के अन्य मतों को गंभीर चुनौती दी थी।
अब सवाल उठता है कि चार्वाक या लोकायत दर्शन है क्या ?
यह दर्शन प्राचीन भारतीय भौतिकवादी दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है। चार्वाक के भौतिकवाद की तथाकथित परम्परा उतना ही प्राचीन है जितना की स्वय भारतीय दर्शन। सामान्य चिन्तन में अनीश्वरवादी को ही नास्तिक कहा जाता है पर भारतीय दर्शन के अनुसार जो वेद के आधार पर तत्व विवेचन करते है उन्हे आस्तिक दर्शन और जो वेदों को नही मानते हैं उन्हें नास्तिक दर्शन कहा जाता है।
नास्तिक दर्शन में बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, चार्वाक दर्शन,आजीवक दर्शन प्रमुख रहे हैं जो पुनर्जन्म, आत्मा परमात्मा, स्वर्ग नरक को नही मानते। चार्वाक दर्शन, प्रमाणं के 6 प्रमाणों में से केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को मानते है (प्रत्यक्षमेव एकं प्रमाणं)
चार्वाक दर्शन के अनुसार ये जो शरीर है इससे पृथक कोई अन्य तत्व नहीं है। चार्वाक प्रत्यक्षवाद पर विश्वास करते थे। उनका कहना था कि जिसको देखते हो उसी को मानो। जैसा कि हमारा भौतिक विज्ञान कहता है कि जो प्रत्यक्ष चीज है उसी को मानो। लोग कहते हैं कि आत्मा है पर उसे हम देख नही सकते। जब देख नही सकते तो उसे स्वीकार भी मत करो।
चार्वाक दर्शन के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये चार ही तत्व श्रृष्टि के मूल कारण हैं। बौद्ध दर्शन के अनुसार ही चार्वाक का मत है कि आकाश नामक कोई तत्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणवीक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपरोक्त चार तत्व इंद्रिय अथवा देह के रूप में परिवर्तित होते है। ये चार तत्व महाभूत तत्व कहलाते है जिससे हमारा शरीर बनता है। शरीर के नष्ट होते ही शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ये चार पदार्थ इसी भू तत्व में मिल जाते है अतः जब शरीर खत्म होगा तो हम भी खत्म हो जायेगें। जो लोग कहते हैं कि स्वर्ग है, नरक है वे सब मिथ्या है। इस तरह हम पाते है कि चार्वाक दर्शन स्वर्ग, नरक, कर्म, मोक्ष, पवित्र शास्त्रों, वेदों के अधिकार और अमरता की अवधारणा को सिरे से खारिज करते हैं।
चार्वाक दर्शन कहता है कि जब मरने के बाद कुछ नही है तो निरर्थक चिंता क्यों करते हो। अच्छे कर्म करो, मानव धर्म का पालन करो। परलोक की चिंता न कर के इस लोक तक ही सीमित रहो, कोशिश ये करो कि ये लोक ही स्वर्ग बन जाय। जब तक जियो सुख से जियो। जब तुम्हारा शरीर भस्म हो जाएगा तो तुम यहां दुबारा नहीं आओगे। इसलिए अगर घी पीने से तुम्हे सुख मिलता है तो घी पियो भले ही इसके लिए तुम्हे कर्ज लेना पड़े। शरीर से बाहर कही आशक्ति मत करो वरना उनसे वियोग होने पर दुख मिलेगा। इसलिए मात्र शरीर तक ही सीमित रहो।
चार्वाक दर्शन कहता है कि जिंदगी भर तुमनेअपने पिता को भूखा रखा और मरने के बाद कर्मकांड करते हो, पैसे खर्च करते हो कि पिता जी को स्वर्ग में कोई कष्ट न हो, गांव वालो को भोज कराते हो तो इसके बजाय अगर अपने पिता को ठीक से भोजन कराया होता तो ज्यादा श्रेष्ठ होता। जिन्दगी भर उनकी पगड़ी उछाली और मरने के बाद उनके सम्मान में रस्म पगड़ी का आयोजन करते हो इससे अच्छा होता कि उनके जीवित रहते उनकी पगड़ी नही उछाली होती तो ज्यादा श्रेष्ठ होता।
चार्वाक ये भी कहते है कि दुनिया के अंदर अगर धर्म और अर्थ का फल लेना है तो राज्य की पूजा करो। अगर राज अच्छा है तो कोई भ्रष्टाचार नही फैलेगा, धर्म का प्रसार होगा और आर्थिक सम्पन्नता आयेगी। इसके विपरित राज्य कमजोर हो गया तो बाहरी आक्रांता आकर हमे लूट लेंगे। इस लोक का रक्षक है राज्य तो राज्य की पूजा करो, राज्य को सबल बनाओ।
ये तो रहा इस दर्शन के बारे में जानकारी। अब चार्वाक के बारे में और उनके दर्शन का जिक्र कहां कहां आया है ये जान लेते है।
आचार्य चार्वाक का जन्म कब हुआ इसकी प्रमाणिक जानकारी आज उपलब्ध नहीं है। पर ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 600 ईशा पूर्व में हुआ था।
अब प्रश्न है कि इसके उदय का मूल कारण क्या रहा होगा। एक व्यावहारिक सच्चाई है कि अच्छा तभी अच्छा होगा जब कोई बुरा होगा। इसी प्रकार बुरा तभी होगा जब अच्छा विद्यमान होगा।
दूसरे शब्दों में कोई भी एक वाद समाज या शास्त्र में तभी पनपेगा जब विरोधी कोई दूसरा वाद भी विद्यमान होगा।इस आधार पर ये स्वीकार करना पड़ेगा कि वैदिक परम्परा का विरोधी वाद भी वैदिक काल में अवश्य रहा होगा। कदाचित इसी विरोधी वाद ने चार्वाक दर्शन का स्वरूप ग्रहण किया होगा। कुछ लोगो की राय है कि इस दर्शन के उदय के मूल कारण उपनिषदों और अन्य शास्त्रों की गूढता, कर्मकांडो की अधिकता, यज्ञों में पशुबली प्रथा के अलावा तात्कालिक सामाजिक एवम राजनैतिक कारण रहे होंगे।
ऋग्वेद में इस भौतिकवाद का बीज ढूंढा जा सकता है।वहां इंद्र की सत्ता में संदेह करने वाले तथा अपब्रती लोगों का उल्लेख मिलता है जिसे परोक्षत चार्वाक सिद्धान्त का हम बीज कह सकते हैं।
इसी तरह भौतिकवादी प्रवृति के बीज उपनिषदों में भी देखे जा सकते हैं। कठोपनिषद में कहा गया है कि धन के मोह में मूढ़, बाल बुद्धि, प्रमादी ब्यक्तियों की परलोक के मार्ग में आस्था नही होती, वे बस केवल इस लोक को मानता है परलोक को नही।
बौद्ध धर्म ग्रंथो (पितको) में लोकायत मत का उल्लेख मिलता है।
कौटिल्य के अर्थ शास्त्र में सांख्य और योग के साथ लोकायत दर्शन का तर्क पर आधारित दर्शन के रूप में उल्लेख है।
चार्वाक दर्शन के प्रारंभिक ग्रंथ को बृहस्पत्य सूत्र या लोकायतिक सूत्र नाम से जाना जाता है। इसपर लिखी गई भाजूरी या वर्णिका नाम की टीका का उल्लेख पतंजलि के व्याकरण महाभास्य में प्राप्त होता है।
अंत में हम कह सकते है कि चार्वाक दर्शन के तर्कवाद के आधार पर बहुत सारे नए परम्परा कायम हुए, बुद्ध धर्म का उदय हुआ, सामाजिक परिवर्तन हुए और बहुत सारे रूढ़ियों और कुप्रथाओं का अंत हुआ।
किशोरी रमण
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बहुत सुंदर
वाह, बहुत सुंदर।
Very nice.