आज यहाँ बुद्ध की तीन शिक्षाओं की चर्चा करते है। अगर हम इन शिक्षाओं पर अमल करें तो हमारी ज़िंदगी सुख और शान्ति से भरपूर रहेगी।
पहली शिक्षा --- दूसरों के मन में झांकने के बजाय अपने मन में झांकें।
आजकल हर कोई सामने वाले के मन में झांकना चाहता है। वह जानना चाहता है कि सामने वाला उसके बारे में क्या सोचता है ? जबकि यह एक बहुत ही बेवकूफी भरा कार्य है। क्योंकि आपका किसी दूसरे पर कोई नियंत्रण नही है। और जब नियंत्रण ही नही है तो इस बात से फर्क ही क्या पड़ता है कि वह आपके बारे में कैसी सोच रखता है ? चाहे वह आपके बारे में अच्छा सोचता हो या बुरा, आप उसकी सोच को नहीं बदल सकते। इसलिए बुद्ध ने कहा है कि अपनी उर्जा को ऐसी चीजों पर बर्बाद मत करो जिसे तुम बदल नहीं सकते।
दूसरी शिक्षा--- ऊर्जा का संरक्षण और उसका सही उपयोग करें।
बहुत से लोग बेवजह बोलते रहते हैं। उन्हें भी नहीं पता कि वह क्या बोल रहे हैं। लेकिन वे बोलते ही रहते हैं। बोलना दो तरह का होता है। एक बाहर बोलना और दूसरा अपने भीतर बोलना। इन दोनों ही तरीकों से बोलने में हमारी ऊर्जा की सबसे ज्यादा खपत होती है। लेकिन इस तरह से ऊर्जा की खपत करने से हमारा विकास नहीं विनाश होता है। हम मजबूत नहीं कमजोर बनते हैं। हम बुद्धिमान नहीं बुद्धिहीन बनते हैं। बुद्ध और उनके भिक्षु ऊर्जा का उपयोग इस तरह से नहीं करते थे। ऊर्जा का उपयोग पैदल चलने में करते थे जिससे उनका शरीर स्वस्थ रहता था। अपनी ऊर्जा का उपयोग ध्यान में करते थे जिससे उनमें आत्मिक बृद्धि होती थी। तो सार यही है कि ऊर्जा का उपयोग ऐसी चीजों में करें जो आप का विकास करें ना कि विनाश।
तीसरी शिक्षा --- महान बने लेकिन अपनी महानता का प्रदर्शन न करें।
अगर आपके अंदर कोई अच्छाई है तो उसे बोल कर न बताये बल्कि उसे अपने कृत्यों के द्वारा व्यक्त होने दें। जो अच्छाई बोलकर व्यक्त की जाती है वह ईर्ष्या पैदा करती है और जो अपने आप व्यक्त होती हैं वह प्रेम पैदा करती है। लोग अपने ही मुहँ से अपनी ही तारीफ करते हैं इससे सामने वाले के मन में सम्मान नहीं बल्कि ईर्ष्या पैदा होता है। वह आपका आदर नहीं बल्कि आप से घृणा करने लगता है। इसलिए जो आप हैं उसे बताये नहीं बल्कि उसे खुद ही ब्यक्त होने दें।
किशोरी रमण
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Very very nice...
जी हाँ, बहुत ही शिक्षाप्रद बातें हैं, हमे अपनाना चाहिए।