कहावत है कि सीखने की कोई उम्र नही होती और इंसान को ज़िन्दगी भर कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। चुकि समय के अनुसार परिस्थितियाँ भी बदलती रहती है और बदलाव हमेशा ही पहले से तेज होता है। अतः अगर आपने अनवरत सीखने की प्रक्रिया को जारी रखा है तो तेजी के साथ बदलते वर्तमान के साथ भी आप बेहतर तालमेल बिठा सकते है और एक बेहतर जिन्दगी जी सकते है।
इन्ही विचारों पर आधारित है आज की कहानी।
एक गाँव मे एक पेंटर रहता था। वह अच्छा पेंटिंग बनाता था। वह हर रोज शाम को एक पेंटिंग बनाता और दूसरे दिन उसे बाज़ार में ले जाकर बेच देता। उसकी पेंटिंग पाँच सौ रूपये में बिकती थी और इस तरह उसकी महीने की आमदनी पन्द्रह हजार थी जिससे उसकी ज़िन्दगी ठीक ठाक गुजर रही थी।
इस तरह से समय बीतता रहा और अब वह बुजुर्ग हो चुका था। अब उसका हाथ भी काँपने लगा था और उससे पेंटिंग नही हो पाती थी। उसका एक बेटा भी था। उसने अपने बेटे को पेंटिंग का हुनर सिखाने का निश्चय किया। उसने भी पेंटिंग की कला अपने पिता से ही सीखी थी। उसने अपने बेटे को पेंटिंग के गुर सिखाने शुरू किये। पेंटिंग कैसे करते है, कलर कैसे करते है, इमैजिन कैसे करते है और फिर उसे बाजार में बेचते कैसे है, इन सब बारीकियों से बेटे को अवगत कराया। बेटा भी मन लगा कर पेन्टिंग सीखने लगा और जल्द ही उसने पेंटिंग बनाना कुछ हद तक सिख लिया। अब बेटे ने खुद से एक पेंटिंग बनाई और उसे बेचने के लिए बाजार गया। उसकी पेंटिंग बिकी तो पर केवल दो सौ रुपये में। घर आकर उसने जब अपने पिता को बताया कि उसकी पेन्टिंग दो सौ रुपये में बिका है तो उसके पिता बहुत खुश हुए।
पर बेटा खुश नहीं था। उसने अपने पिताजी से कहा- पिताजी, आपकी पेंटिंग तो पाँच सौ रुपये में बिकती थी। जरूर अभी भी मेरी पेंटिंग में कुछ कमी है। आप मुझे और अच्छे से सिखाईये ताकि मैं भी आपकी तरह ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ।
पिता ने फिर से उसे ट्रेंड करना शुरू किया। उसने उसकी गलतियों का बारीकी से अध्ययन किया और बेटे को उसके बारे में समझाया। इस तरह उसके बेटे ने अपनी पेंटिंग में और निखार लाया। अब उसके बेटे ने अच्छे से सीख कर एक और पेंटिंग बनाई और उसे लेकर बाजार गया। इस बार उसकी पेंटिंग चार सौ रुपये में बिकी। बेटा घर आया और पिताजी को बताया- पिताजी, मैंने इस बार पेंटिंग चार सौ में बेची है। पिताजी खुश होकर कहा - अच्छी बात है, अब तुम तरक्की करते जा रहे हो। पर बेटा अभी भी मायूस था। बोला -पिताजी, अभी भी मेरी पेंटिंग आपकी तरह पांच सौ में नहीं बिकती है। इसका मतलब अभी भी मेरी पेंटिंग में कुछ तो कमी है। इस कमी के बारे में मुझसे ज्यादा आपको पता होगा। पिताजी बोले, मायूस मत हो। मैं हमेशा तुम्हें सिखाता रहूँगा ताकि तुम अपनी पेंटिंग में आवश्यक सुधार कर सको और अच्छा से अच्छा पेंटिंग बना सको। एक बार फिर पिता ने बेटे को सिखाना शुरू किया और कुछ नए टिप्स दिए। बेटे ने फिर एक पेंटिंग बनाई और उसे लेकर बाजार चला गया। इस बार जब वह लौटा तो काफी खुश था। पिता ने पूछा तो बेटे ने बताया कि आज वह बहुत खुश है क्योंकि उसकी पेंटिंग सात सौ में बिकी है। पिता ने कहा- वाह बेटा,बहुत अच्छा। अब मैं तुम्हें और सिखाऊंगा और तुम्हें बताऊंगा कि पेंटिंग एक हजार रुपये में कैसे बेच सकते हो। बेटा बोला - पिताजी, अब बस करो। आज मैं अपनी पेंटिंग सात सौ रुपये में बेच कर आया हूँ। आपने तो अपनी जिंदगी में पाँच सौ से ज्यादा की पेंटिंग नहीं बेची है। अतः आप मुझे अब क्या सिखाएंगे ?
इस पर पिता ने कहा कि बेटा, अब तेरी पेंटिंग सात सौ रुपये से ज्यादा की नहीं बिक पाएगी क्योंकि अब तेरा सीखना बंद हो गया है। मैंने भी तेरे दादाजी से पेंटिंग सीखा है, जो अपनी पेंटिंग तीन सौ रुपये में बेचा करते थे। और जब मेरी अपनी पेंटिंग पाँच सौ रुपये में बिकी थी तो मैंने भी अपने पिताजी से कहा था कि पिताजी, अब बस बंद करो। मेरी तो पेंटिंग आप से ज्यादा पाँच सौ रुपये में बिकी है तो अब मैं आपसे क्या सीखूँ ? और उस दिन से मैंने सीखना बंद कर दिया ।और फिर उस दिन के बाद से मैं अपनी पेंटिंग पाँच सौ से ज्यादा में नही बेच पाया। क्योंकि मेरे अंदर अहंकार आ गया था। यह अहंकार ज्ञान का सबसे बड़ा दुश्मन है और किसी ज्ञानी के लिए यह अहंकार किसी जहर से कम नहीं है जो धीरे-धीरे उसे खत्म कर देता है। यह उसकी प्रगति को रोक देता है। जब हम मानने लग जाते हैं कि मैं इससे कैसे सीखूँ ? मैं तो इससे भी अच्छा कर रहा हूँ, तब हम सीखना बंद कर देते हैं। जिसका सीखना बंद हुआ, उसकी प्रगति बंद हो जाती है। हम हर इंसान से थोड़ा-थोड़ा करके कुछ सिख सकते हैं। कोई भी इंसान सब कुछ नहीं जानता, लेकिन हर इंसान थोड़ा-थोड़ा अवश्य जानता है। अतः आप हमेशा ही सीखना जारी रखें।
किशोरी रमण
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very nice......
बहुत सुंदर कहानी। प्रेरक और रोचक।
बहुत सुंदर और प्रेरणादायक कहानी ।