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  • Writer's pictureKishori Raman

# कहाँ जाना है ?#



संतोष जैसा कोई सुख नही। लोभ जैसी कोई बीमारी नही और दया जैसा कोई पुण्य नहीं। एक समान्य ब्यक्ति अपने विचारों का दास है जबकि एक ज्ञानी ब्यक्ति अपने विचारों का सम्राट है। ज्ञानी ब्यक्ति अपने विवेक से सीखते है और साधारण मनुष्य अपने अनुभव से। इन्ही विचारों पर आधारित एक कहानी प्रस्तुत है।


एक जुलाहे की बेटी भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए आती है। उसकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी। वह यही कोई लगभग 18 वर्ष की थी। वह भगवान बुद्ध के दर्शन पाकर अत्यंत आनंद विभोर हो गई और भगवान बुद्ध के चरणों में गिरकर उसने प्रणाम किया। भगवान बुद्ध ने पूछा- बेटी कहां से आती हो ? इसपर उसने कहा-भन्ते,नहीं जानती हूँ। इसके बाद भगवान बुद्ध ने उससे पूछा- बेटी, कहाँ जाओगी ? इसपर उसने कहा, भन्ते, नही जानती।


इसपर भगवान बुद्ध ने पूछा, क्या नही जानती हो ?

वह बोली, भन्ते, जानती हूँ।

जानती हो तो बताओ, बुद्ध ने कहा।

इसपर वह लड़की बोली, भगवन, कहाँ जानती हूँ ? जरा भी नही जानती।

लड़की की ऐसी बाते सुन वहाँ उपस्थित लोग बहुत नाराज हुए। गाँव के लोग तो जुलाहे की बेटी को भली भाँति जानते थे। उन्होने सोंचा कि लड़की बकवास कर रही है। गाँव वालों ने उस लड़की से कहा, सुन पागल।यह तुम किस तरह की बातें कर रही हो ? तुम होश में तो हो कि तुम किससे बात कर रही हो ? सभी गाँववाले जुलाहे की बेटी को बहुत डांटते हैं।


भगवान बुद्ध वहां उपस्थित सभी लोगों से कहते हैं कि पहले उस लड़की की बात तो सुनो कि वह क्या कहती है ? भगवान बुद्ध ने फिर जुलाहे की बेटी से कहा - बेटी, तुम इन सब को समझा कि तुमने क्या कहा है। इस पर उस लड़की ने कहा , जुलाहे के घर से आ रही हूँ भगवान यह तो आप अच्छी तरह से जानते हैं और साथ में यह गाँव वाले भी जानते हैं। लेकिन कहाँ से आ रही हूँ और मेरा जन्म कहाँ हुआ है मुझे पता नहीं। वापस जुलाहे के घर जाऊँगी यह मैं भी जानती हूं,आप भी जानते हैं और ये गाँव वाले भी जानते हैं यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस जन्म के बाद जब मेरी मृत्यु होगी तब मैं कहाँ जाऊँगी यह मुझे नहीं मालूम इसलिए आपसे मैंने कहा नही जानती हूँ। जब मैंने सोचा कि आप पूछ रहे हैं कहाँ से आ रही हो जुलाहे के घर से ? तो मैंने कहा जानती हूँ। लेकिन जब आपने कहा कहाँ जा रही हो तो मैंने सोचा आप पूछ रहे है कि कहाँ वापस जाऊँगी, जुलाहे के घर ? तो मैंने कहा जानती हूँ लेकिन जब मैंने आपके आँखों में देखा तो मैंने कहा नही नही, भगवान बुद्ध ऐसा प्रश्न क्यो पूछेगें ? वह पूछ रहे हैं, कहाँ से आती हो मतलब किस लोक से। कहाँ तेरा जीवन श्रोत है ? तो मैंने कहा नही जानती। फिर मैंने सोचा, जब आप पूछते है कहाँ जाती हो ? तो मैंने सोचा मरने के बाद कहाँ जाऊँगी ? भगवान बुद्ध तो ऐसे ही प्रश्न पूछेगें।


भगवान बुद्ध लड़की की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी लोगों से कहते हैं कि यह सारा संसार अंधा है। यहाँ देखने वाले विरले ही है। जाल से मुक्त हुए पंछी के भांति विरले ही स्वर्ग को जाते हैं। उस लड़की से उन्होंने कहा कि तेरे पास आँख है। तुम देख पाती हो। यह गांव वाले अंधे हैं। ऑंख वाला जब बोले तो अंधे को समझ में नहीं आता, क्योंकि आँख वाला ऐसी बाते करेगा जिसे अंधे व्यक्ति मान ही नहीं सकते हैं कि ऐसा भी होता है। जैसे हँस आकाश में उड़ते हैं, वैसा एक और आकाश है और वह है अंतर का। जैसे हँस आकाश में उड़ते हैं और दूर तक की यात्रा करते हैं, परमहंस अंतर के आकाश में उड़ते हैं और निर्वाण में लीन हो जाते हैं। जिस प्रकार युद्ध में बढ़ता हुआ हाँथी दोनो तरफ से तीर सहता हुआ आगे बढ़ता जाता है ठीक उसी तरह उत्तम ब्यक्ति भी दूसरो के अपशब्दों को सहते हुए भी अपना कार्य पूरी एकाग्रता से करता रहता है।



किशोरी रमण





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