top of page
  • Writer's pictureKishori Raman

# बर्तमान में जीना सीखे #


बुद्ध कहते हैं कि मन और शरीर दोनों को स्वस्थ रखने का रहस्य ये है कि अतीत के लिये शोक मत करो, न ही भविष्य की चिंता करो बल्कि बुद्धिमानी और ईमानदारी से बर्तमान में जिओ। लेकिन हम कितना बर्तमान में जीते हैं ? जी ही नही सकते। अगर जी सकते है तो आप कोशिश कर के देख लीजिए। आपका मन औऱ शरीर दोनो स्वस्थ हो जायेगा। आप भविष्य की चिंता में परेशान नहीं होंगे और न ही अतीत के दुख को लेकर रोना रोएंगे बल्कि वर्तमान में चल रही सांसे आपको आनन्द देगी। कहीं दूर एक चट्टान पर बैठा एक व्यक्ति रो रहा था। वहाँ से एक बौद्ध भिक्षु गुजर रहा था। वहाँ उस चट्टान पर बैठ कर रोते हुए व्यक्ति के पास आया और बोला, क्या तुम चट्टान से कूदकर आत्महत्या करना चाहते हो ? वह व्यक्ति बोला आपका अंदाजा सही है। मैं चाहता तो यही हूँ पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ। भिक्षु ने पूछा, क्या तुम सब अपने पीछे छोड़ कर आए हो ? या साथ भी कुछ लाए हो ? व्यक्ति ने कहा नहीं, मैंने सब पीछे छोड़ दिया है। मैं अपने साथ कुछ भी नहीं लाया हूँ। इस पर भिक्षु ने कहा, फिर तुम इतना बोझ लिये क्यों बैठे हो ? व्यक्ति ने कहा- कौन सा बोझ ? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। मैं तो खाली और कंगाल हूँ। भिक्षु ने कहा, फिर तुम कौन से बोझ के तले दबे जा रहे हो जो तुम्हारी सांसे भी ठीक से नहीं चल रही है। तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो ? और रो भी रहे हो। खाली इंसान तो ऐसा नही रोता। जो कंगाल हो गया है उसे क्या डर ? अपने में झांको और देखो कि तुमने अपने अंदर कितना बोझ उठाया है। कितना कुछ तुम अपने सर पर ढो रहे हो। इसे उतार कर रख दो। थोड़ा हल्का हो लो। कब तक इसके बोझ से दबे रहोगे ? वह व्यक्ति भिक्षु के चरणों में गिर पड़ा। आपने तो मुझे पढ़ लिया। मुझे अपने भी नहीं समझ पाए। आप ही मेरे समस्या का समाधान कर सकते हैं। भिक्षु ने पूछा - कहाँ समस्या है ? व्यक्ति ने कहा, मेरे घर पर। वहाँ मेरे साथ चलिए। भिक्षु ने कहा, नहीं, समस्या तुम्हें घर में नहीं है बल्कि तुम्हारे अंदर है। जब तक समस्या का समाधान नहीं करोगे तब तक हर जगह समस्या आएगी और अगर इस चट्टान पर समस्या नहीं तो तुम यहाँ आत्महत्या करने की क्यों सोच रहे हो ? क्योंकि तुमने तो घर छोड़ दिया है, समस्या ही छूट गई है। फिर तुम इतने परेशान क्यों हो ? व्यक्ति बोला, आप सही कहते हैं। मैं आप की बात समझ रहा हूँ। कमी मुझ में ही है। इसलिए तो आत्महत्या करना चाहता हूँ। मैं किसी काम का नहीं। मैं कुछ भी करने जाता हूँ,सब बिगड़ जाता है। मेरी किस्मत ही खराब है। भिक्षु ने कहा, मुझे बताओ कि क्या खराबी है तुम्हारी किस्मत में ? व्यक्ति ने कहा, मैंने व्यापार करने के लिए अपने परिवार से धन लिया। धन से मैंने व्यापार किया। लेकिन मेरा व्यापार ठीक नहीं चला। शुरू शुरू में मेरे परिवार वालों ने मेरा साथ दिया लेकिन जैसे-जैसे व्यापार में नुकसान होता गया, मेरे परिवार वाले भी मुझसे दूर हो गए। मैं यह सब उन्हीं सबके लिए तो कर रहा था। लेकिन वे सब मुझे ही इस सब के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। मुझे भी अब लगता है कि मैंने उन सब के साथ गलत किया। मेरा एक मित्र है। उसने भी व्यापार आरंभ किया था। उसका व्यापार अच्छा चल रहा है। जब वह मेरे घर आता है तो अपने अच्छे चल रहे व्यापार की बात करता है। बताता है कि कैसे उसने अपने व्यापार को अपने दम पर खड़ा किया। कैसे उसने मेहनत की और उसने सफलता पाई। मेरे परिवार वाले भी कहते हैं - देख उसे। तेरे बस का तो कुछ नहीं है। अब हालात यह है कि मेरा घर भी गिरवी पड़ा है। भिक्षु ने पूछा- तुम्हें पता है कि तुम्हारा मित्र तुम्हारे पास क्यों आता है ? वह व्यक्ति बोला, मुझे नीचा दिखाने के लिए। वह यह जताने आता है कि वह मुझसे श्रेष्ट है। वह चाहता है कि मैं उसकी सफलता देख दुखी रहूँ। भिक्षु ने कहा, क्या तुम दुखी होते हो ? व्यक्ति ने कहा, हाँ, दुख तो होगा ही। भिक्षु ने कहा, दुख किस बात का होता है ? अपने असफल होने का या अपने मित्र के सफल होने का। वह व्यक्ति बोला,अपने असफल होने का उतना दुख नहीं होता जितना अपने मित्र के सफल होने का। भिक्षु ने कहा अर्थात तुम्हारा मित्र असफल हो तो तुम्हें खुशी होगी। व्यक्ति ने कहा, हाँ, मुझे बहुत खुशी होगी। भिक्षु ने कहा - यानी तुम्हारी खुशी तुम्हारे मित्र पर निर्भर करती है। तुम्हारा मित्र चाहे तो तुम्हें खुश रख सकता है या चाहे तो दुखी कर सकता है। तुम स्वयं से न तो खुश हो सकते हो और ना ही दुखी हो सकते हो। तुम अपने मित्र के गुलाम हो गए हो। तुम्हारी समस्या का कोई समाधान नहीं है क्योंकि तुम्हारी खुशियां और दुख दोनों दोस्त के व्यवहार से आते हैं। तुम्हारे खुद के कर्म से तो कुछ नहीं आ रहे हैं। व्यक्ति बोला, ऐसा ना कहें। मुझे आपसे बहुत आशा है। जब हम दूसरों से आशा बांध लेते हैं तो हम दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। अगर मैं तुम्हें कोई रास्ता ना दूँ तो तुम दुखी रह जाओगे और अगर तुम्हें रास्ता दूँ तो शायद तुम्हें कुछ मिल जाए। लेकिन अगर आशा तुम अपने से बाँधोगे तो तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। तुम्हारा मित्र आज तुम्हें दुखी करने आता है लेकिन बातें वह सच्ची ही बताता है। वह अपने संघर्ष और अनुभव की बात बताता है। उसके बुद्धि और अनुभव का उपयोग करो। दुखी होने की जगह खुशी मनाओ कि तुम्हें घर बैठे कुछ अनुभव मिल रहे हैं। संघर्ष करो। हार मत मानो। कर्म करते जाओ। बुरे से बुरे वक्त या अच्छा से अच्छा वक्त दोनों गुजर जाते हैं। लेकिन यह दोनों वक्त देखने के लिए जीवित रहना जरूरी है। और जब तुम्हारा अच्छा वक्त शुरू होगा, तुम्हारा मित्र अपनी सफलताओं की कहानी नहीं बताएगा। वह अपनी असफलताओं की कहानी बताएगा ताकि तुम गलत निर्णय ले सको। तब भी तुम अपनी ही बुद्धि का प्रयोग करना। उस समय भी वह तुम्हें दुखी करने के लिए आएगा क्योंकि उसे तुम्हें दुखी देखने में उतना ही मजा आता है जितना तुम्हें आता है उसे दुखी देखने में। वह व्यक्ति बोला, आप सही कहते हैं कि मेरे जीवन को मैं नहीं चला रहा दूसरे ही इसमें सुख और दुख भर रहे हैं। लेकिन क्या अपनो के लिए कुछ करना गलत है ? मैं अपने परिवार के लिए अच्छा करना चाहता था लेकिन वह परिवार ही अब मेरे साथ नहीं है। भिक्षु बोला तुम सांत्वना चाहते हो। वास्तव में सब इस दुनिया में सांत्वना ही चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम कुछ करें तो लोग उसकी प्रशंसा करें। प्रशंसा ना होने पर हम दुखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि सब मतलबी हैं लेकिन अगर तुम किसी को अपना परिवार मानते हो और उसके लिए कुछ करना भी चाहते हो तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम दूसरों के लिए कर रहे हो ? तुम अपने लिए ही कर रहे हो। अगर तुम्हें लगा कि तुम दूसरों के लिए कर रहे हो तो तुम दुखी ही रहोगे और अगर लगा कि तुम अपने लिए ही कर रहे हो तो तुम खुश रहोगे। जब तुम अच्छा केवल अच्छा करने के लिए करते हो तब तुम्हें सांत्वना की जरूरत नहीं पड़ती। व्यक्ति ने कहा, आप सही कहते हैं। अब मैं समझ गया हूँ। अब तक मेरी किस्मत दूसरों के हाथ में थी तो खराब थी। अब मैं अपनी किस्मत अपने हाथ में रखूँगा।अब यह अच्छा हो या खराब मैं हार नहीं मानूंगा। फिर भी क्या आप मुझे कुछ दे सकते हैं ? जो मेरे साथ रहे और जब मेरे जीवन का बुरा वक्त हो तो मेरा साथ निभा सके। भिक्षु हँसा और कहा - यह छोटा सा बक्सा मैं तुम्हें देता हूँ। तुम हमेशा इसे अपने पास रखना। इसमें एक ऐसा राज है जो तुम्हें बड़े से बड़े दुख से बाहर निकाल लेगा। लेकिन इसे तभी खोलना जब तुम्हारे पास और कोई राह ना रह जाए और तुम्हें लगे कि सब व्यर्थ है। मेरी बातें भी व्यर्थ है। यह दुनिया व्यर्थ है,यहां रहना भी व्यर्थ है। वह व्यक्ति वह बक्सा लेकर वहाँ से चला गया । उसने भिक्षु की बात पर अमल किया और व्यापार आरंभ किया। उसका व्यापार अच्छा चला और उसका जीवन भी अच्छा बीत रहा था। परिवार वाले भी उसके साथ आ गए थे। अब वह कुछ भी करता तो उसे लगता कि अपने लिए ही कर रहा है। भूतकाल का रोना भी छोड़ दिया तथा भविष्य की चिंता भी अब वह नहीं करता। वह वर्तमान को सुधारने में लगा रहता था। लेकिन वक्त बदलता है। अच्छा समय हमेशा नहीं रहता है। उसका अच्छा समय भी समाप्त हो गया। उसके राज्य पर किसी पड़ोसी राजा ने चढ़ाई कर दी। उसका घर और व्यापार तबाह हो गया। उसे अपने परिवार के साथ वहाँ से भागना पड़ा। उसके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे।भूख से उसके माता पिता की मृत्यु हो गई। वह अपनी पत्नी और एक छोटे भाई और दो बच्चों को लेकर इधर से उधर भटक रहा था। उसके बच्चे बीमार थे और उसे पैसे चाहिए था, लेकिन उसके पास कुछ भी नहीं था। तब उसे लगा कि सब व्यर्थ है। उसका जीवन व्यर्थ है। इस पृथ्वी पर सब व्यर्थ है। सब बातें जो भिक्षु ने कही थी व्यर्थ है। किसी बात का कोई अर्थ नहीं है। अंततः जीवन समाप्त ही होना है तो जीवित रह कर क्या फायदा ? जब वह यह सब सोच रहा था तो उसकी नजर छोटे से बक्से पर पड़ी जो उसे भिक्षु ने दिया था। उसने उसे खोला। उसमें एक पर्ची थी जिस पर कुछ लिखा था जिसे पढ़कर वह जोरों से हँसा। उस पर लिखा था यह वक्त भी गुजर जायेगा। उस बक्से में एक सोने का सिक्का था जिससे उसने एक नई जिंदगी की शुरुआत की। हो सकता है आपके पास सोने का कोई सिक्का ना हो लेकिन हिम्मत तो है ना ? फिर तो आप कुछ ना कुछ कर ही लीजिएगा। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




76 views4 comments

Recent Posts

See All
Post: Blog2_Post
bottom of page