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मेंहदी की कसम

  • Writer: Kishori Raman
    Kishori Raman
  • Aug 26, 2021
  • 1 min read

Updated: Sep 19, 2021


ये तो दुनिया का दस्तूर ही है कि प्यार करने वालो से दुनिया जलती है और आपसी रिस्तो में चाहे कितनी भी पवित्रता हो, ईमानदारी हो,उसे स्वीकार नही करती । कभी कभी ये भी लगता है कि जब एक दिन सब कुछ खत्म हो जाना है तो फिर ये शिकवा -शिकायत , प्यार- मुहब्बत , बहुत कुछ पाने की आशा या फिर कुछ न मिल पाने की निराशा क्यों ?

अपने गीत और उसकी आत्मा को अपने वजूद से जोड़ कर देखना बेमानी है क्योंकि कल तो सबको समय के जंझावतो में बह जाना है। तो प्रस्तुत है अपने इसी कशमकश से आप सबों को अवगत कराने का मेरा प्रयास कविता के रूप में जिसका शीर्षक है.....


मेंहदी की कसम मेंहदी की कसम न खाओ सनम गर देखेगी दुनिया तो जल जाएगी ये प्रीत न मुझ से बढाओ सनम जमाने की नीयत बदल जाएगी

तुम न बदलो सही हम न बदले सही दर्द होठों पे चाहे न मचले सही जख्म तो जख्म है कोई शिकवा नही गर पहलू में आकर मचल जाएगी चाँद तारे न होंगे तेरे राजदा आज रो लो बनेगी यही दास्ताँ वफ़ा तो वफ़ा है खुदा तो नही वफ़ाओं की मैयत निकल जायेगी ख्वाबो को क्यों मैं सिंदूरी करूँ अपने लिए क्यो नगमे लिखू है आंसू यहाँ और सैलाब भी कल होकर सब कुछ ये बह जायगी मेंहदी की कसम न खाओ सनम गर देखेगी दुनिया तो जल जायगी ये प्रीत न मुझ से बढाओ सनम जमाने की नीयत बदल जायेगी किशोरी रमण

2 Comments


Unknown member
Feb 09, 2022

very nice....

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sah47730
sah47730
Aug 27, 2021

प्रिय दोस्त रमण!

याद है मुझे कृषि महाविद्यालय में ये कविता मैंने सुनी थी।

मेंहदी की कसम जिस उम्र में तुतुम्हारे द्वारा लिखी गयी थी उस हिसाब से यह काफी उम्दी कविता है। इसकी जितनी सराहना की जाए कम है।

:-मोहन "मधुर"

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