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  • Writer's pictureKishori Raman

"शांति तो आपके अंदर है"



एक बार गौतम बुद्ध अपने कुछ मित्रों के साथ एक पर्वत से गुजर रहे होते हैं, इतने में एक व्यक्ति दौड़ कर आता है और उस पर्वत से छलांग लगाने का प्रयास करता है। उस व्यक्ति को देखकर बुद्ध उसकी ओर दौड़ते हैं और उसका हाथ पकड़ लेते हैं। वह व्यक्ति पर्वत से छलांग नहीं लगा पाता। वह व्यक्ति बुद्ध से अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करता है और बुद्ध से कहता है- छोड़ो मेरा हाथ। कौन हो तुम ? और तुम्हें क्या अधिकार है जो तुम मुझे रोक रहे हो। यह मेरा जीवन है और मैं इसे खत्म करना चाहता हूँ। बुद्ध उस व्यक्ति से कुछ नहीं कहते, बस उसका हाथ पकड़े रहते हैं। वह व्यक्ति कुछ देर तक अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करता है और कुछ क्षण के बाद प्रयास छोड़ देता है और रोने लगता है। बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं क्षण भर का आवेग था क्या अब वह आवेग शान्त हुआ ? वह व्यक्ति कहता है, नहीं, क्षणभर का आवेग तो वो था जो अब तक मैं भोगता आ रहा था। यह दुख तो सदैब मेरे भीतर रहता है। इसे खत्म करने का कोई उपाय नहीं। यह जीवन बहुत कुरूप है इसलिए मैं इसे खत्म कर देना चाहता हूँ , और तुम्हें कोई अधिकार नहीं जो तुम मुझे रोको। जीवन पर मेरा अधिकार है इसीलिए मैं इसे खत्म कर सकता हूँ। बुद्ध कहते हैं , नहीं इस जीवन पर केवल तुम्हारा अधिकार नहीं। इस जीवन पर उसका भी अधिकार है जिसने तुम्हें जन्म दिया है और उसका भी अधिकार है जो हर समय तुम्हारे लिए चिंतित रहता है। वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है- मेरे जीवन में इतना दुख है जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते। मैं एक वैश्य परिवार से हूँ। मेरे पास धन की कोई कमी नहीं है। हर सुख सुविधा है। कामवासना में भी मैं हर समय लिप्त रहा हूँ, पर कहीं भी मुझे वह शांति नहीं मिली जिसे खोजने का मैंने हर बार प्रयास किया। हर कोई झूठा है। हर कोई मतलबी है। मैं इस जीवन से तंग आ गया हूँ। मैंने जब भी अपने भीतर देखने का प्रयास किया मुझे एक गहरी पीड़ा ही मिली। बाहर से मैंने अपनी इच्छाओं को ना जाने कितनी बार पूरा किया पर भीतर से मैं फिर भी अशांत रहा। बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं- जब इच्छा हमे तड़पाती है तो हमें लगता है कि जब वह पूर्ण हो जाएगी तो हमारे मन को तृप्ति मिल जाएगी, शांति मिल जाएगी पर ऐसा नहीं होता। जब तक हमारी इच्छा पूरी नहीं होती तब तक हमारी इच्छा हमारे लिए सपना होती है पर जब वह इच्छा पूरी हो जाती है तब हमें पता चलता है कि वह वास्तव में ही सपना थी। हमारे मन में वही पीड़ा फिर से उत्पन्न हो जाती है किसी और चीज के लिए जो पहले थी। तो क्या जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो हमें उस शांति का अनुभव करा सके जो कभी खत्म नहीं होती, जिसके लिए हम तरह-तरह की इच्छाएँ पालते तो हैं और उन्हें पूरा भी करते हैं पर वह मिल नहीं पाती। बुद्ध कहते हैं- यह संभव है कि तुम उस शांति को पा सको जिसके बाद तुम्हें किसी भी चीज की इच्छा ही नहीं होगी। पर वह शांति तुम्हें वहां नहीं मिलेगी जहां तुम उसे खोज रहे हो। सबसे पहले तुम्हें एक बात समझनी होगी कि बाहर बहुत बहुत ढूंढ लिया है अब भीतर की ओर ढूंढना बाकी है। वह ब्यक्ति बुद्ध से पूछता है, तो मुझे क्या करना होगा ?बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं- किसी भी चीज की अति केवल तुम्हें दुख ही पहुंचाएगी। चाहे तुम बहुत खुश हो या बहुत दुखी, तुम दोनों ही स्थितियों में अंत में तुम दुख को ही पाओगे। अगर तुम मध्य में रहना सीख गए तो तुम्हें कोई दुखी नहीं कर सकता। इसलिए तुम्हारा प्रयास दुख और सुख दोनों की अतियों से ऊपर उठने का होना चाहिए। बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं -अपने चारों तरफ देखो, हर तरफ कितनी सुंदरता है। क्या तुम इस सुंदरता को देखना छोड़ कर मरने का विकल्प चुनोगे ? वह व्यक्ति अपने चारों और देखता है और उसे सब कुछ सुंदर नजर आता है मानो उसने ऐसी सुंदरता पहले कभी नहीं देखी हो। वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है- आप कौन हैं ? मैंने आज तक आप से सुंदर इंसान अपने पूरे जीवन में नहीं देखा। बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं- मैं बहुत देर से तुम्हारे साथ ही था पर तुम मुझे नहीं देख पाए, पर अब जब मैंने तुमसे कहा कि अपने चारों तरफ की सुंदरता को देखो तो तुम मुझे देख पाए। ऐसा इसलिए हुआ कि तुम्हारा मन सिवाय पीड़ा के तुम्हें और कुछ दिखाना नहीं चाहता था। अब तुम उस पीड़ा को छोड़कर कुछ भी देखने के लिए तैयार हो इसलिए तुम्हे सब सुन्दर नजर आ रहा है। वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है- हाँ, मैं आपकी बात समझ गया हूँ। मुझे अपना यह जीवन और यह सब कुछ जो मेरे चारों तरफ है सुंदर नजर आने लगा है। मैं अब मृत्यु को प्राप्त नहीं होना चाहता। मैं समझ गया हूँ कि मैं केवल अपने दुख को ही जीवन का केंद्र मान रहा हूँ जब कि यह गलत है। मेरे दुख के अलावा बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जो सुंदर है और जो मेरी खुशी का कारण बन सकती है। इसलिए मैं अपने प्राण का त्याग नही करूँगा। बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं - इस पृथ्वी पर जिस भी व्यक्ति ने जन्म लिया है उसे परम ज्ञान पाने का अधिकार है और तुम भी उन्ही ब्यक्तिओ में से एक हो। क़पर सबसे जरूरी बात यह है कि क्या तुम सच में उस परम ज्ञान को पाना चाहते हो ? अगर पाना चाहते हो तो पहला पग तुम्हें ही बढ़ाना होगा। वह व्यक्ति बुद्ध की बात समझ जाता है और अपने मन से मृत्यु का विचार खत्म कर देता है और जीवन को चुनता है। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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