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  • Writer's pictureKishori Raman

हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते है


हम अक्सर देखते है कि हमारे कुछ दोस्त या रिश्तेदार हमेशा हँसते और मुस्कुराते रहते है जब की बहुत सारे दोस्त जिनके पास सब कुछ होता है वे हमेशा ही उदास और दुखी रहते हैं। तो इसका कारण क्या है ? भगवान बुद्ध ने बताया है कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते है। हमारे सोंच और विचार ही हमारे जीवन की सच्चाई बन जाता है| इसी से संबंधित एक कथा जो तथागत बुद्ध ने अपने शिष्यों को सुनाई थी प्रस्तुत कर रहा हूँ। एक नगर में एक धनी सेठ रहता था। उसके पास धन की कोई कमी न थी फिर भी वह हर क्षण धन एकत्रित करने के बारे में ही सोचता था। एक बार उस सेठ का एक रिश्तेदार उसके पास आया। बातो के क्रम में रिश्तेदार ने सेठ को बताया कि उसके नगर में भी एक बहुत बडा सेठ था। सेठ ने आश्चर्य से कहा कि तुम था क्यों कह रहे हो ? रिश्तेदार ने बताया कि वे अब जीवित नहीं है बल्कि मर चुके है। सेठ धन इकठ्ठा करते करते भूल ही गया था कि मृत्यु नाम की कोई चीज भी होती है और वह सेठों को भी आती है। सेठ ने मृत्यु का कारण जानना चाहा। रिश्तेदार ने कहा कि कारण तो कुछ भी नही था। अचानक से उसका बुलावा आया और उसे जाना पड़ा। उसको कोई तो बीमारी होगी, सेठ ने पूछा। रिश्तेदार ने कहा - नही, उसे कोई भी बीमारी नही थी।वह तो अचानक ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। सेठ अपने रिश्तेदार की बात सुनकर हैरान रह जाता है। अब तक वह सोचता था कि मृत्यु या तो बुढ़ापे में आती है या किसी बीमारी के कारण आती है। अगले दिन उसका रिश्तेदार अपने घर चला जाता है, परन्तु सेठ को एक बड़ी समस्या दे जाता है। सेठ जो पहले दिन रात धन के बारे मे सोचता था अब केवल मृत्यु के बारे में सोचने लगता है। दिन रात उसे एक ही डर सताने लगता है कि कहीं मुझे मृत्यु न आ जाये। समय बीतता है और सेठ बहुत कमजोर होने लगता है क्योंकि वह अब न तो अच्छे से खाता है और न तो अच्छे से पीता है ,वह तो बस केवल मृत्यु के बारे में सोचता है। उसके अन्दर और बाहर केवल एक ही बात रहता है कि मुझे मृत्यु न आ जाय। वह बीमार हो जाता है। उसकी ऐसी स्थिति हो जाती है मानो कभी भी प्राण निकल जाये। सभी लोग सेठ की हालत देखकर बड़े आश्चर्य चकित होते है क्योंकि उन्होंने देखा था कि यह सेठ तो खुश रहता था। इसके पास धन की भी कोई कमी न थी पर अब इसको क्या हो गया ? अब सेठ कहीं आता जाता नही था बस एक जगह लेटा रहता था। उस सेठ का एक मित्र था। उसने अपने मित्र की ऐसी हालत देखकर कुछ करने की सोची। वह एक सन्यासी को उस सेठ के पास लाता है और कहता है कि ये बहुत पहुँचे हुए सन्यासी है। तुम अपनी समस्या बताओ, ये उसका अवश्य समाधान करेगें। वह सन्यासी सेठ से पूछता है कि तुम्हे क्या हुआ है ? मैंने तुम्हे पहले भी देखा है परन्तु तुम इतने कमजोर कैसे हो गये ? तुम्हे कौन सी चिन्ता खाये जा रही है ? सन्यासी की बात सुन सेठ कहता है कि मैं मृत्यु को प्राप्त नही होना चाहता हूँ। मै जीना चाहता हूँ। मुझे डर है कि मैं कहीं मृत्यु को प्राप्त न हो जाऊं। वह सन्यासी मुस्कुराता है और सेठ से कहता है , अच्छा तो तुम्हे मृत्यु का भय है। मैं इस समस्या का अभी समाधान निकाल देता हूँ। सेठ खुश हो जाता है और हाँथ जोड़कर कहता है कि मेरी समस्या का समाधान कीजिए।वह सन्यासी उस सेठ से कहता है कि मैं तुम्हे एक मंत्र देता हूँ। तुम बस इसका उच्चारण करना भीतर भी औऱ बाहर भी। याने कि मुँह से यही मंत्र बोलना और अपने भीतर मन मे यही मंत्र बोलना। यह मंत्र है ...जब तक मुझे मृत्यु नही आयेगी तब तक मैं जीऊँगा। तुम इस मंत्र को सात दिनों तक लगातार बोलो। मैँ सात दिनों के बाद आऊँगा और वह सन्यासी वहाँ से चला जाता है। सात दिनों के बाद वह सन्यासी वापस सेठ के पास आता है तो देखता है वह स्वस्थ होने लगा है। वह सेठ उस सन्यासी को देख कर उसके चरणों मे लेट कर उन्हें धन्यवाद देता है और कहता है कि आपके मंत्र ने कमाल कर दिया है। अब मैं मृत्यु से भयभीत नही हूँ क्योंकि जब तक मृत्यु नही आएगी तब तक मैं अपने जीवन को जीऊँगा। पहले मैं मृत्यु के डर के कारण जीवन जी ही नही पा रहा था। पर आपके मंत्र ने तो मेरा जीवन ही बदल दिया। भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को समझाते हुए कहा कि जब तक उस सेठ को दूसरे सेठ की मृत्यु के बारे में पता नही चला था तो वह केवल धन के बारे में सोचता था और दिन रात धन कमाने में लगा रहता था और उसका स्वास्थ भी ठीक था। परन्तु जब मृत्यु के बारे में उसने सोचना शुरू किया तो वह बिस्तर से लग गया और मृत्यु के करीब पहुँच गया। तो इस कहानी से ये निष्कर्ष निकलता है कि जो हम भीतर या बाहर सोचते रहते हैं वही हमारे जीवन की हकीकत बन जाता है। किशोरी रमण If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com


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